Anand Kumar
अस्पताल से दो लाशें निकलीं. एक हिन्दू-एक मुसलमान. एक ने कहा अलविदा मेरी जान. हमारा साथ बस यहीं तक था…अब तुम श्मशान जाओगे और मैं कब्रिस्तान. इसपर दूसरी लाश बोली, पागल हो क्या, अब तो हम वहां मिलेंगे, जहां न कोई मजहब है, न राजनीति… वहां सब एक बराबर हैं.. न किसी को पैसों का पहाड़ खड़ा करना है, न बेटे-पोतों का जुगाड़ करना है.. न कुर्सी का खेल है न राजनीति की रेल..जहां न बेटी-बेटे का फर्क है न ऊंच-नीच का भेद..न जमीन- न मकान.. न घरबार न व्यापार
मेरे यार.. वहां कुछ नहीं है.. बस शून्य है.. अनंत..अपार..
इस दुनिया में हमारा साथ होकर भी नहीं था, और उस दुनिया में हम शरीर के बिना भी एक साथ रहेंगे.
वो देखो, हमारे जैसे कई और भी जा रहे हैं. कोई चुनाव रैली में झंडा थामे दौड़ रहा था, कोई पाप धोने गंगा में गया था…
देखो उस बेचारे को अस्पताल में बेड नहीं मिला था..और उसने इसलिए दम तोड़ दिया कि डॉक्टर मंत्री जी की अगवानी में बिजी था..उसके पास मरीज देखने का टाइम नहीं था.. वो.. देखो, उसे तो मास्क लगाने में आती थी शर्म..और उसके तो खोटे थे कर्म..
देखो उस लड़के ने ज्यादा सटने की सजा पाई है.. और इस बेचारे बाबा ने तो अपनों से चोट खाई है… उन्होंने अपनी बीमारी छिपाई और इसे लगाई.. मगर अब ये सब हमारी तरह सभी झंझटों से मुक्त हैं.. स्वच्छन्द हैं.. उन्मुक्त हैं…
जो नीचे रह जायेंगे, वो मंदिर-मस्जिद पर खून बहाएंगे, सर्जिकल स्ट्राइक पर इतरायेंगे, वोट के लिए बरगलायेंगे, ऑक्सीजन, बेड और वेंटिलेटर में कमीशन खायेंगे.. बेटी जलायेंगे, बेरोजगारों को उकसायेंगे.. बेकसों को सतायेंगे.. और एक दिन ये भी अपनी मौत मर जायेंगे..
तब तक सब्र करो मेरे भाई.. वक़्त आयेगा.. ये भी हमारे पास ही आयेंगे.. और तब हम दोनों मिलकर इनकी मौत पर कहकहे लगायेंगे… और हो सका तो इनका गला भी दबायेंगे..