Kiriburu : सारंडा के छोटानागरा में स्थित प्रथम वर्गीय पशु चिकित्सालय सारंडा वासियों के लिए वर्ष-2015 से सफेद हाथी साबित हो रहा है. इस अस्पताल में नियुक्त पशु चिकित्सक और कम्पाउंडर के निरंतर गायब रहने की वजह से ग्रामीणों के पालतू बीमार जानवरों का सही समय पर इलाज नहीं होता है. इससे उनकी मौत हो रही है, जिससे ग्रामीणों का सबसे बड़ा आय का स्रोत प्रभावित हो रहा है. छोटानागरा पंचायत के तमाम गांवों में ग्रामीणों के पालतू पशुओं में निरंतर फैलने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियों की चपेट में आकर दर्जनों बकरियां, मुर्गी, गाय, बैल आदि की मौतें हो रही हैं. लेकिन इस अस्पताल में नियुक्त पशु चिकित्सक व कम्पाउंडर गदहे की सींग की तरह वर्षों से हमेशा गायब रहते हुए अपने घरों में बैठ हाजिरी बनाकर सरकारी वेतन का लाभ ले रहे हैं. ये सरकारी चिकित्सक सरकार से पशुओं के इलाज हेतु मिलने वाली मुफ्त दवाइयों को भी बेचकर भारी लाभ उठा रहे हैं. लाखों रुपए की लागत से बना उक्त पशु अस्पताल को छोटानागरा में बनाने का आखिर क्या उद्देश्य था. यह बड़ा सवाल सारंडा के विभिन्न गांवों के तमाम ग्रामीण सरकार व पशुपालन विभाग से पूछ रहे हैं. इस अस्पताल को न बनाकर इसके निर्माण में खर्च हुई राशि का इस्तेमाल पालतू जानवर ही खरीदकर अगर ग्रामीणों को वितरित कर दिया गया होता तो शायद अब तक दर्जनों ग्रामीण उससे हजारों रूपए की आर्थिक आमदनी कर लेते.
बीमारियों से मर चुकी हैं ग्रामीणों की कई बकरियां
मारंगपोंगा निवासी महादेव बहंदा ने बताया कि उनके अलावे गांव के बरजूराम बहंदा, सुखनाथ बहंदा, गुरदीप बहंदा आदि लोगों की कई बकरियां विभिन्न बीमारियों से मर चुकी हैं. पशु चिकित्सा विभाग के लोगों से शिकायत करने के बावजूद वे इलाज हेतु नहीं आते. सारंडा पीढ़ के मानकी लागुड़ा देवगम, बहदा के मुंडा रोया सिधू, जोजोगुटू के मुंडा कानूराम देवगम, राजाबेड़ा के मुंडा जामदेव चाम्पिया आदि गांवों के ग्रामीणों ने बताया कि उक्त अस्पताल कभी खुलता ही नहीं है और चिकित्सक व कम्पाउंडर चाईबासा या अन्य शहरों में बैठकर मुफ्त का वेतन उठाकर सरकार के राजस्व के साथ-साथ जनता को नुकसान पहुंचा रहे हैं. इस संबंध में खबर छपने के बाद कभी कम्पाउंडर आए भी तो ग्रामीणों के पालतू जानवरों के इलाज व सरकारी दवा देने के नाम पर मोटी रकम वसूल चले जाते हैं. ऐसी व्यवस्था से ग्रामीणों को लाभ के बजाए नुकसान ही होता है. सरकार कम से कम सप्ताह में तीन दिन भी इस अस्पताल में चिकित्सक व कम्पाउंडर के बैठने की व्यवस्था सुनिश्चित करे. ऐसा ही हाल अन्य पशु अस्पतालों में नियुक्त चिकित्सकों का भी है.
सारंडा में बेरोजगारी अधिक इसलिए ग्रामीण पालते हैं पशु
उल्लेखनीय है कि सारंडा में बेरोजगारी भारी पैमाने पर है जिससे निजात पाने हेतु लगभग प्रत्येक ग्रामीण बकरी, मुर्गी, गाय, बैल आदि पालते हैं जिसको समय-समय पर बेचकर अपना जरूरी खर्च चलाते हैं. महादेव बहंदा की तरह सारंडा के विभिन्न गांवों के दर्जनों ग्रामीणों के पास बीस से चालीस तक बकरियां है जिसे समय-समय पर बेच वह पूरे परिवार का सालों भर जीविका चलाते हैं. लेकिन यह अज्ञात बीमारी ऐसे ग्रामीणों को भारी नुकसान पहुंचा रही है.
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