Ranjeet Kumar
Ranchi : पिछले साल लॉकडाउन के बाद से ही देशभर के स्कूल बंद हैं. झारखंड में बेहद कम समय के लिए आठवीं क्लास के ऊपर के बच्चों के लिए स्कूल खुले. जबकि कोरोना की दूसरी लहर के कारण सरकार को दोबारा स्कूल बंद करने का निर्णय लेना पड़ा. आनन-फानन में स्कूलों को ऑनलाइन क्लासेस का सहारा लेना पड़ा. ऑनलाइन क्लास के आरंभ होने के एक साल से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी रांची डीपीएस के प्रिंसिपल डॉ राम सिंह कहते हैं कि समय के साथ ऑनलाइन क्लासेस लेने के तरीके में कई सुधार किए गए हैं. इसमें और भी सुधार की आवश्यकता है. स्कूलों को इनोवेट करने की जरूरत है कि क्या वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है.
उन्होंने बताया कि हमलोगों ने बच्चों के मोबाइल स्क्रीन टाइम को कम करने की दिशा में कदम उठाया है. बच्चों को होमवर्क और एक्टिविटी इस प्रकार दी जा रही है कि बच्चे मोबाइल पर सिर्फ सवालों को देखें और फिर कॉपी पर उसे प्रैक्टिस करें. साथ ही शिक्षकों को भी यह निर्देश दिया गया है कि बच्चों का ध्यान सिर्फ मोबाइल पर नहीं रहे. लेकिन ऑनलाइन क्लास लेने के तरीके में और क्या सुधार हो, सभी स्कूलों को यह सोचना चाहिए.
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कई खामियों के बारे में भी बताया
डॉ राम सिंह ने ऑनलाइन क्लास की कई खामियां भी उजागर की. वे कहते हैं कि ऑनलाइन क्लास में एग्जाम और टेस्ट फेयर तरीके से नहीं हो पा रहे हैं. साथ ही बच्चों में बच्चों में सिरदर्द की भी समस्या हो जाती है, जिससे उनकी दिनचर्या प्रभावित हो रही है. डॉ राम सिंह कहते हैं कि कोविड के कारण ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था करनी पड़ी है, लेकिन यह कभी भी फिजिकल क्लासरूम की जगह नहीं ले सकता. क्योंकि एजुकेशन का मतलब सिर्फ सब्जेक्ट पढ़ाना नहीं होता है. पर्सनैलिटी डेवलेपमेंट और अंदर एक्टिविटी भी एजुकेशन का ही हिस्सा है. यह सिर्फ फिजिकल क्लास रूम में ही संभव है.
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सभी बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है – एसके सिंह
बूटी मोड़, रांची के पास स्थित आरटीसी हाईस्कूल के प्रिंसिपल एसके सिंह कहते हैं कि उनके शिक्षक स्कूल आकर स्मार्ट क्लास और गूगल मीट जैसे माध्यम का इस्तेमाल कर बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से ही पढ़ाई करा रहे हैं, ताकि उन्हें क्वालिटी एजुकेशन मिल सके. लेकिन उनके यहां कई बच्चे निम्न- मध्यमवर्गीय और ग्रामीण परिवार से आते हैं. कई बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है. वहीं कई ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क की भी समस्या रहती है. विद्यालय अगर क्वालिटी एजुकेशन का अपने स्तर से प्रयास भी कर रहा है, लेकिन अन्य कारणों से उतना सफल नहीं हो पा रहा है. इसलिए फिजिकल क्लास रूम का कोई विकल्प नहीं है. साथ ही उन्होंने कहा कि ऑनलाइन माध्यम से दिए जाने वाले कार्य को भी कई बच्चे सही प्रकार से नहीं कर रहे हैं और नकल का सहारा ले रहे हैं. इसकी मॉनिटरिंग ऑनलाइन माध्यम से नहीं हो पा रही है. कई ऐसे लेशन होते हैं, जो टीचर सामने रहकर ही बच्चों को सिखा सकते हैं. वह ऑनलाइन माध्यम से नहीं हो पा रहा है. अगर कोरोना का दौर लंबा चलता है, तो बच्चों की पढ़ाई और कैसे बेहतर तरीके से हो, सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए.