LagatarDesk : लोकआस्था का महापर्व छठ की शुरुआत 17 नवंबर को नहाय-खाय से हो गयी है. इसके अगले दिन 18 नवंबर को खरना होता है. जिसे लोहंडा भी कहा जाता है. इस दिन व्रतियों ने दिन भर उपवास रखकर खरना का प्रसाद बनाया. इसके बाद रात में व्रती प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटे के निर्जला उपवास में हैं. आज (19 नवंबर) को छठ का पहला अर्घ्य है. पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है. इस दिन सूर्यास्त 5 बजकर 30 मिनट पर होगा.
तांबे लोटे में दूध व गंगा जल मिलाकर सूर्य देवता को देना चाहिए अर्घ्य
पहला अर्घ्य के दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रती दिन भर निर्जला व्रत रखते हैं और शाम में किसी तालाब, नदी या जलकुंभ में जाकर सूर्य की उपासना करते हैं. इसके बाद डूबते हुए सूर्य को दूध और पानी से अर्घ्य देते हैं. शास्त्रों के अनुसार, तांबे के लोटे में दूध और गंगा जल मिलाकर सूर्य देवता को अर्घ्य देना चाहिए.
केवल छठ में होती है डूबते सूर्य की उपासना
बता दें कि अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य की उपासना केवल छठ पूजा में ही होती है. ऐसा माना जाता है कि इस समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसीलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य दिया जाता है. शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है. अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने से हर तरह की परेशानी दूर होती है.
दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को दिया जाता अर्घ्य
छठ पूजा के अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को होता है. इस दिन सूर्योदय के समय उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन सूर्योदय 06 बजकर 47 मिनट पर होगा. अर्घ्य देने के बाद व्रती पारण कर निर्जला उपवास को पूरा करती है. परंपरा के अनुसार, छठ के दूसरे दिन सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य देकर धन, धान्य और आरोग्य की कामना की जाती है.