Faisal Anurag
‘सीने में जलन आंखों में तूफ़ान सा क्यूं है,
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूं है’
मशहूर शायर शहरयार की इन पंक्तियों का इस्तेमाल लगभग चार दशक पहले फिल्म ‘गमन’ में फारूख शेख के माध्यम से एक पूरी परेशानहाल पीढ़ी की त्रासदी और बदहाली के बतौर किया गया था. इन पंक्तियों की याद मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक की उन आलोचनाओं के संदर्भ में ताजा हो जाती है. जिसका निशाना सीधे नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ओर है. यह दीगर बात है कि एक राज्यपाल पूरी शिद्दत के साथ उन बातों को उजागर कर रहा है, जिसे लेकर मीडिया शोर मचाने के बजाय खमोशी का चादर ओढ़ लेती है. पिछले दो महीनों के भीतर ही सत्यपाल मलिक जिन बातों का हवाला दे रहे हैं, उसे संज्ञान में लेकर एक निष्पक्ष जांच की जरूरत है. जिसे देश की अदालतें और केंद्र की सरकार नजरअंदाज कर रही है. तंग आकर सत्यपाल मलिक ने तो अब साफ-साफ कह दिया है कि वे उन्हीं लोगों के खिलाफ बोल रहे हैं, जिन्होंने उन्हें राज्यपाल बनाया है. मलिक ने कहा है कि दिल्ली दो तीन प्रभावशाली लोगों को ध्यान में रख कर ही वे अपनी बात साफगोई से यह जानते हुए कह रहे हैं कि उनसे इस्तीफा भी मांगा जा सकता है.
मलिक के सीने की जलन और शब्दों के शोले बता रहे हैं कि भाजपा के किसान नेताओं में नाराजगी बढ़ रही है. सुप्रीम कोर्ट ने भी सोमवार को कह दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार की लखीमपुरखिरी किसान जनसंहार की जांच से वह संतुष्ट नहीं हैं. सर्वोच्च अदालत ने किसी अन्य राज्य के जज से जांच की निगरानी कराने की भी चेतावनी दिया है.
जयपुर में एक समारोह में बोलते हुए सत्यपाल मलिक ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह का बिना नाम लिए ही तल्ख हमला किया है. उन्होंने कहा कि उनकी बातों से दो तीन लोगों को ही दिक्कत हो सकती है. इन दो तीन लोगों का मललब नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं. मलिक एक ऐसे राज्यपाल हैं, जिनकी बातों से केंद्र सरकार और भाजपा नेतृत्व की एक तरह से किरकिरी ही हो रही है. सत्यपाल मलिक बिहार, जम्मू और कश्मीर,गोवा के बाद अब मेघालय के राज्यपाल हैं. सत्यपाल मलिक ने अपनी राजनीति समाजवादी के रूप में शुरू किया और बाद में भारतीय जनता पार्टी की लहर में शामिल हो गए. जम्मू और कश्मीर से धारा 370 उनके ही कार्यकाल में खत्म किया गया और पूर्ण राज्य का दर्जा समाप्त किया गया था.
सत्यपाल मलिक ने किसान आंदोलन के समर्थन में केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी के विचारों से अलग स्वतंत्र राय प्रकट किया है. मलिक ने कहा है कि किसानों का दमन नहीं किया जा सकता. उन्होंने जयपुर में कहा कि किसान आंदोलन में अब तक 600 किसान अपनी शहादत दे चुके हैं. उन्होंने व्यंग्य किया कि दिल्ली के नेता एक दो लोगों की मौत पर भी ट्वीट करने से नहीं हिचकते, लेकिन 600 किसानों की शहादत के बाद भी जिस तरह की सरकारी चुप्पी है. वह दुखी करने वाला है. इस सदंर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस टिप्पणी को याद किया जा सकता है. जिसमें उन्होंने कहा था कि कार के नीचे पिल्ले के आ जाने से भी दुख होता है. मलिक का यह साहस है या फिर किसानों की व्यथा से पैदा हुआ दर्द जो उनकी बातों को हर दिन तल्ख बनाता जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि पहले दिन जब मैं किसानों के हक़ में बोला था, यह तय करके बोला था कि मैं फौरन पद छोड़ दूंगा और किसानों के धरने में आकर बैठ जाऊंगा.
सत्यपाल मलिक ने कुछ ही दिनों पहले यह सनसनीखेज बयान दिया था कि जब वे जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल थे. तब एक नेता ने उन्हें दो फाइलों पर हस्ताक्षर करने के बदले 300 करोड़ की रिश्वत की पेशकश किया था. उन्होंने आरएसएस के एक प्रभावी व्यक्ति का हवाला बिना नाम लिए दिया था. तब कहा गया था कि उनका इशारा राम माधव की ओर था. हालांकि दो दिनों बाद उन्होंने आरएसएस के उल्लेख पर माफी तो मांग लिया, लेकिन रिश्वत की पेशकश के आरोप को वापस नहीं लिया. मलिक ने एक फाइल का संबंध अंबानी के बताया था और दूसरी का आरएसएस के एक बड़े व्यक्ति की ओर इशारा किया था. यह गैर-मामूली आरोप एक राज्यपाल ने लगाए. लेकिन इसपर मीडिया और राजनीतिक गलियारों की चुप्पी बताती है कि किस तरह डर का माहौल हावी है.
इसके तुरंत बाद ही मलिक ने यह कह कर विरोधी दलों के आरोपों में ही स्वर मिलाया था कि इडी, इनकम टैक्स और सीबीआई का इस्तेमाल लोगों को चुप कराने और डराने के लिए किया जा रहा है. मलिक ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि किसानों की मांगों को नहीं माना जाएगा तो केंद्र सरकार दुबारा चुनाव नहीं जीत पाएगी. किसान आंदोलन के एक साल पूरे हो रहे हैं. उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी को किसान आंदोलन वाले हरियाणा,राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में न केवल हार का सामना करना पड़ा, बल्कि हिमाचल और राजस्थान में तो भाजपा कम से कम तीन सीटों पर जमानत भी नहीं बचा सकी या फिर तीसरे चौथे स्थान पर रही.