Nilay Singh
Ranchi : राज्यसभा में भाजपा सांसद किरोड़ीमल मीणा ने यूनिफॉर्म सिविल कोड ( समान नागरिक संहिता) पर निजी विधेयक पेश किया जिसका विपक्ष ने विरोध किया. इस विधेयक से देश में एक बार फिर से समान नागरिक संहिता पर बहस का दौर शुरू हो गया है. इसके लागू होने से आदिवासी समुदाय के समक्ष क्या खतरा हो सकता है? इस पर गंभीरता से चिंतन-मनन करना जरूरी है. हमने इस मुद्दे पर आदिवासी समुदाय के नेताओं और जानकारों से बात की.
आदिवासियत खत्म हो जाएगी
शिक्षाविद और आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ डॉ. करमा उरांव का कहना है कि अगर समान नागरिक संहिता आई तो आदिवासियत खत्म हो जाएगी, क्योंकि आदिवासी समाज कस्टमरी तरीके से चलता है. आदिवासियों में संपत्ति का कानून, उत्तराधिकार का कानून जैसे कई कानून ऐसे हैं जो अन्य समाज से अलग और विशिष्ट हैं. जैसे हमारे यहां बेटियों को भी उत्तराधिकारी बनाया जाता है. एक समान कानून बनने से आदिवासी व्यवस्था चरमरा जाएगी और इसका बुरा प्रभाव आदिवासी समुदाय पर पड़ेगा. हालांकि इस विधेयक पर अभी बहस होना बाकी है लेकिन आदिवासी समाज को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है.
आदिवासी रीति-रिवाज पर हमला
झारखंड बचाओ मोर्चा और जनजातीय सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य प्रेमचंद मुर्मू कहते हैं कि ये सीधे-सीधे आदिवासी रीति-रिवाज पर हमला है. इससे आदिवासियों की जो विशिष्टता है वह समाप्त हो जाएगी. आदिवासियों के रीति-रिवाज, भाषा, संस्कृति और पहचान पर किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. अभी देखिए आदिवासी समुदाय के लोग अलग-अलग राज्यों में रह रहे हैं तो वहां का असर उनपर होने लगा है. हालांकि समान नागरिक संहिता का मैं पूरी तरह विरोध नहीं कर रहा हूं लेकिन आदिवासियों के जो विशेष कानून हैं उनकी भी रक्षा हो सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. नहीं तो आदिवासी समुदाय के लिए ये दूरगामी संकट होगा.
सभी विशिष्ट कानून समाप्त हो जाएंगे
आदिवासी नेता लक्ष्मी नारायण मुंडा का मानना है कि समान नागरिक संहिता आदिवासी जनसमुदाय के लिए आने वाले खतरे का संकेत है. इस कानून के लागू होने से आदिवासी समुदाय को चौतरफा संकटों का सामना करना पड़ सकता है. इससे आदिवासी जन समुदाय की रीति-रिवाज, संस्कृति, विरासत, धार्मिक- सामाजिक पद्धति, उपासना, अंतिम संस्कार आदि प्रथा पर चोट तो पड़ेगा ही इससे भी बढ़कर आदिवासियों की जमीन, जंगल, आदिवासियों के लिए बने सभी विशिष्ट कानून स्वत: समाप्त हो जाएंगे. ऐसी स्थिति में यूनिफॉर्म सिविल कोड को देश में लागू करना आदिवासी समुदाय के हित में कतई उचित नहीं होगा.
पूरी तरह से आदिवासी विरोधी
आदिवासी जन परिषद के संयोजक प्रेम शाही मुंडा ने इस कानून को पूरी तरह से आदिवासी विरोधी बताते हुए कहा कि राज्य सभा में आया ये बिल आदिवसियों से जल, जंगल, जमीन और उनके अधिकारों को छीनने की एक साजिश है. भाजपा का एक देश एक कानून की बात आदिवासियों के 781 समुदाय, जो देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं, को समाप्त करने का प्रयास है. आदिवासी जन परिषद इसका पुरजोर विरोध करती है.
हम इसका पूरा विरोध करेंगे
सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि राज्यसभा में जो समान नागरिक संहिता विधेयक पेश हुआ है वह आदिवासियों के खिलाफ है. आज हालत ये हैं कि पूरे देश में आदिवासियों का हक छीना जा रहा है. हम इसका भरपूर विरोध करेंगे जो रांची और झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश स्तर पर होगा.
बिल पर सोच समझकर काम हो
साहित्यकार ज्योति केरकेट्टा ने कहा कि इस बिल पर सोच समझ कर और ग्राउंड लेवल पर काम होना चाहिए और लोगों को इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए. 1857 की क्रांति से पहले झारखंड में बाबा तिलका मांझी और सिद्धू कान्हू ने आजादी की लड़ाई लड़ी और आज ये बिल जो लोग लेकर आ रहे हैं इन लोगों ने क्या आजादी की लड़ाई लड़ी है.
आदिवासियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
साहित्यकार चंद्रमोहन किस्कू का कहना है कि इस बिल से आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. आदिवासी सभ्यता और संस्कृति कल भी थी आज भी है और कल भी रहेगी.