Ranchi: लातेहार के तुबेद गांव में डीवीसी की कोयला खनन परियोजनाओं को कई बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. परियोजना के विरोध में आदिवासी संगठन एकजुट होने लगे हैं. संगठनों का कहना है कि खनन के प्रभाव से आदिवासियों के विलुप्त होने का खतरा है और उनकी संस्कृति और परंपरा भी मिट जाएगी. नामकुम के बगैचा में आदिवासी संगठनों ने बैठक कर परियोजना के खिलाफ आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गयी है. आदिहक भूमि रक्षा मोर्चा, आदिवासी सेना, झारखंड राज्य विशिष्ट पूर्णवासी जन आयोग और झारखंड बचाओ आंदोलन खनन परियोजनाओं का पुरजोर विरोध करने की तैयारी में है.
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9 अक्टूबर को आदिवासी संगठन करेंगे तुबेद का दौरा
संगठनों का कहना है कि डीवीसी उरांव आदिवासियों की जमीन कोयला निकालने के लिए अधिग्रहित करना चाहता है, लेकिन वह न तो आदिवासियों के पुनर्वास की बात कर रहा है और न ही सरकार के 5000 करोड़ के बकाये का भुगतान कर रहा है. 9 अक्टूबर को संगठनों ने तुबेद कोल प्रोजेक्ट एरिया का दौरा करने की योजना बनायी है. वहीं, 11 अक्टूबर को झारखंड विधानसभा की उप समिति के अध्यक्ष स्टीफन मरांडी ने एक प्रतिनिधिमंडल को इस मुद्दे पर बातचीत के लिए विधानसभा बुलाया है. इसके बाद झारखंड की राजधानी में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया जाएगा.
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संबद्ध परियोजनाओं से भी 750 गांव होंगे प्रभावित
पश्चिम बंगाल के थर्मल पावर के लिए लातेहार में तुबेद कोल प्रोजेक्ट की योजना है. इस प्रोजेक्ट के पहले चरण में 6 गांव के 7 हजार लोग प्रभावित होंगे. इनमें अंबाझरण, धौनीझारण, डिही, नवारी, मांगरा और तुबेद शामिल हैं. इसके अलावा विभिन्न चरणों में परियोजना के तहत विभिन्न संबद्ध योजनाओं से 750 गांव प्रभावित होंगे. इन योजनाओं में सुकरी नदी के मार्ग को मोड़ना, 20 फीट सड़कों का निर्माण और परियोजना के लिए रेलवे ट्रैक बिछाने जैसे कार्य शामिल हैं.
परियोजनाओं में होगा हर साल 1300 करोड़ खर्च
पश्चिम बंगाल में 1000 मेगावाट बिजली परियोजना और चंद्रपुरा में 250 मेगावाट बिजली परियोजना की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस कोयला परियोजना की स्थापना की जा रही है. इस परियोजना में 750 एकड़ भूमि के शामिल होने की संभावना है, जिस पर हर साल 1300 करोड़ रुपये खर्च किए जाने की संभावना है.