Lagatar Desk : पारसनाथ या मरांग बुरु अधिकार पर तकरारसम्मेद शिखर पर अब आदिवासियों ने दावा ठोंक दिया है. पारसनाथ सम्मेद शिखर को संतालियों का धार्मिक स्थल मरांग बुरु बताया जा रहा है. सरकार से मांग की जा रही है कि इसे शीघ्र संथाल आदिवासियों को सौंप कर भूल सुधार कर लिया जाए. इधर, जैन समाज के लोग पहले से आंदोलित हैं. मगर अब संथाली भी आंदोलन चलाने की बात कह रहे हैं. इस विवाद के बीच कुछ लोगों का कहना है कि यह राजनेताओं की चाल है. नेता अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना चाहते हैं. दो समुदाय के बीच मामले को उलझाने के लिए यह मुद्दा उठाया गया है. शुभम संदेश ने इसे लेकर दोनों समुदाय के लोगों से बात की है. प्रस्तुत है उनकी प्रतिक्रिया :
रांची : आदिवासियों की राय
मुनि का निधन हुआ, तो समाधि बनी, पूरा पहाड़ उनका कैसे : डॉ प्रवीण
राजी पाड़हा सरना प्रार्थना सभा, भारत के राष्ट्रीय धर्म गुरु डॉ प्रवीण उरांव ने कहा कि आदिवासी दयालु होते हैं. वहां पर एक जैन मुनि तप करने आए थे. इस बीच उनका निधन हो गया. इसके बाद वहां पर उनका समाधि स्थल बन गया. इसका मतलब यह नहीं है कि पूरा पहाड़ और परिसर जैनियों का हो गया. पारसनाथ पहाड़ संथाली और उरांव जनजातियों का तीर्थ स्थल रहा है, जिसे मरांग बुरू भी कहते हैं.
आदिवासियों को हाशिए पर धकेलने का जैन समाज का षड्यंत्र : लक्ष्मी
सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण मुंडा ने कहा कि पारसनाथ पर्वत परपंरागत और ऐतिहासिक रूप से आदिवासियों को धार्मिक आस्था और विश्वास का केंद्र है. पारसनाथ शिखर सम्मेद पर्वत पर जैनियों का पूरा दावा करना हास्यास्पद ही नहीं आदिवासियों के नैसर्गिक और परंपरागत हक अधिकारों पर हमला है. जैन समुदाय द्वारा यह पूरी तरह आदिवासियों को हाशिए में ढकेलने की षड्यंत्र है.
टीएसी की बैठक में मरांग बुरु की बातें रखी गयी थीं : रतन
सामाजिक कार्यकर्ता एवं पूर्व टीएसी सदस्य रतन तिर्की ने कहा कि यह मामला पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित हो गया है. पारसनाथ को पर्यटन स्थल घोषित तो भाजपा की पिछली सरकार ने बकायदा कैबिनेट में लाकर किया था. जनजातीय परामर्शदातृ परिषद में संताल समाज ने एक ज्ञापन मुझे सौंपा था और हमने बैठक में बात भी रखा था.
क्या कहते हैं जैन समाज के लोग
हमारे जैन धर्म की आस्था को चोट पहुंच रही है : आयुष
रांची के आयुष काशलीवाल ने बताया कि किसी भी तीर्थ स्थल में नशीले पदार्थ नहीं मिलने चाहिए. ऐसे में सम्मेद शिखर पर ये चीज खुलेआम हो रही है. इससे हमारे जैन धर्म की आस्था को चोट पहुंच रही है. केंद्र और राज्य की सरकार से बस यही गुहार है कि वो सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थल ही रहने दे, उसे टूरिस्ट स्पॉट न बनाए. टूरिस्ट स्पॉट बनने से सम्मेद शिखर की की शुद्धता खत्म हो जाएगी.
इस नए विवाद को सरकार जल्द सुलझाए : अमरचंद बैगानी
रांची के अमरचंद बैगानी ने बताया कि जैन समाज की धरोहर सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थल ही रहने दिया जाए. सरकार को सभी धर्म के बारे में सोचना चाहिए. ऐसे में सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थल ही रहने दिया जाए. सम्मेद शिखर के कण-कण में जैन धर्म में भगवान बसते हैं. वहां से हमारी आस्था जुड़ी हुई है. अब इस नए विवाद को सरकार जल्द सुलझाए. किसी की भावना आहत नहीं होनी चाहिए.
किसी भी धर्म की रक्षा करना सरकार का कर्तव्य : रिचा जैन
रांची की रिचा जैन बेनारा ने कहा कि किसी भी धर्म की रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है. सम्मेद शिखर जैन समाज का तीर्थ स्थल है. किसी भी तीर्थ स्थल पर मांस-मदिरा नशीली पदार्थ बिकना या उसका सेवन करना अच्छा नहीं है. हमारी सरकार से बस यही विनती है कि वो सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थल ही रहने दे. उसे पर्यटक स्थल न बनाएं.
पारसनाथ को तीर्थ स्थल ही बना रहने दे राज्य सरकार : संजीव विजयवर्गीय
रांची । जैन समाज के जन भावनाओं को देखते हुए रांची के उप-महपौर संजीव विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री से पत्राचार कर पारसनाथ को तीर्थस्थल ही रहने देने की मांग की. उप महापौर ने कहा कि गिरिडीह में पारसनाथ की पहाड़ी पर स्थित सम्मेद शिखर जैन समुदाय की आस्था से जुड़ा हुआ है. यहां दर्जनों जैन मुनियों तीर्थकारों ने तपस्या की ओर मोक्ष की प्राप्ति की है. सम्मेद शिखर जैन धर्म को मानने वालों का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है. झारखंड सरकार द्वारा सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थान से परिवर्तन कर पर्यटन स्थल की श्रेणी में लाए जाने के कारण पूरे जैन समाज में अंसतोष देखा जा रहा है. राज्य सरकार जन भावनाओं को देखते हुए पारसनाथ को तीर्थ स्थल ही रहने दे.
सम्मेद शिखरजी को पर्यटन तीर्थ स्थल घोषित करे राज्य सरकार : संजय पोद्दार
रांची। श्री महावीर मंडल डोरंडा, केंद्रीय समिति के अध्यक्ष संजय पोद्दार ने जैन समाज के जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पारसनाथ को पर्यटन स्थल नहीं तीर्थ स्थल ही रहने देने की मांग की है. पारसनाथ जैन समुदाय के करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र रहा है, यहां दर्जनों जैन मुनियों तीर्थंकरों ने तपस्या की और मोक्ष की प्राप्ति की है. श्री सम्मेद शिखरजी की पवित्रता को बनाए रखने के लिए झारखंड सरकार को अपना फैसला वापस लेना चाहिए. राज्य सरकार द्वारा पर्यटन क्षेत्र घोषित किए जाने के बाद से ही जैन समाज में रोष है. पूरे देशभर के जैन समाज सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. पारसनाथ सहित जैन समाज की पूजा विधि स्वच्छ व पवित्रता पूर्ण है.
पारसनाथ मामले में सर्वदलीय बैठक बुलाए सरकार : रालोजपा
गिरिडीह। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार राज ने पारसनाथ मामले में अविलंब सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग झारखंड सरकार से की है. कहा है कि किसी भी तीर्थ का विकास श्रद्धा व आस्था के अनुरूप हो, न कि पर्यटन केंद्र के रूप में. श्री सम्मेद शिखर जी (पार्श्वनाथ पर्वत) की पवित्रता के रक्षार्थ जैन समाज की चिंता से रालोजपा वाकिफ है. पार्टी का मानना है कि तीर्थ स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए. भारत सरकार एवं झारखंड सरकार अलग से स्वतंत्र तीर्थाटन मंत्रालय का गठन करे. पारसनाथ को पवित्र क्षेत्र घोषित कर मांसाहार और नशाखोरी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाए.
गिरिडीह : जैनियों की राय
पारसनाथ पहाड़ पर जैनियों का ही अधिकार : पवन जैन
जैन समाज के पवन जैन का कहना है कि दुनिया जानती है कि श्री सम्मेद शिखर जी (पारसनाथ पहाड़) आदिकाल से जैनियों का तीर्थ स्थल रहा है. दुनिया के जैन यहां दर्शन करने आते हैं. पारसनाथ पहाड़ पर जैनियों का ही अधिकार है.
सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करे : राजेश जैन
राजेश जैन का कहना है कि पारसनाथ पहाड़ विश्व भर के जैनियों का धार्मिक स्थल है. संथाल आदिवासी आखिर क्यों इसे अपना तीर्थ स्थल मरांग बुरु बता रहे हैं? सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करे.
पारसनाथ पर जैन समाज का अधिपत्य रहे : अनीता जैन
अनीता जैन का कहना है कि यह जगजाहिर है कि पारसनाथ पर्वत जैनियों का तीर्थ स्थल है. इस लिहाज से इस पवित्र जगह पर जैन समाज का आधिपत्य होना चाहिए. सरकार को इसका ख्याल रखना चाहिए.
आदिवासियों का पक्ष
पारसनाथ सदियों से मरांग बुरु नाम से प्रसिद्ध : रूपलाल
रूपलाल सोरेन का कहना है कि पारसनाथ पर्वत सदियों से मरांग बुरु के नाम से जाना जाता है. यह जगह संथाल आदिवासियों का धार्मिक स्थल है. हमारे पूर्वज इस पहाड़ को देवता मानते थे. जैन समाज इस पहाड़ को क्यों अपने आधिपत्य में रखना चाहते हैं?
हमारे पूर्वजों ने इस पहाड़ की आराधना शुरू की थी : प्रदीप
छात्र प्रदीप मुर्मू का कहना है कि पारसनाथ पहाड़ आदिवासियों का धार्मिक स्थल मरांग बुरु है. हमारे पूर्वजों ने इस पहाड़ की आराधना शुरू की थी. इसलिए इस पहाड़ पर आदिवासियों का अधिकार होना चाहिए.
हमारे पूर्वज पारसनाथ पहाड़ की पूजा करते आ रहे : सुनील
किसान सुनील मरांडी का कहना है कि आदिवासी पहाड़, जंगल और पत्थर की पूजा करते हैं. हम इन्हें ही अपना देवता मानते हैं. सदियों से हमारे पूर्वज पारसनाथ पहाड़ की पूजा करते आ रहे हैं. संथाल आदिवासी तीर्थक्षेत्र होने के कारण इस पर हमार हक है.
‘यह हमारा धार्मिक स्थल है मरांग बुरु, आंदोलन छेड़ने की चेतावनी’
गिरिडीह। जिले के पीरटांड़ प्रखंड स्थित श्री सम्मेद शिखर जी (पारसनाथ पहाड़) पहले से ही विवाद में है. अब विवाद में एक और नया अध्याय जुड़ गया है. जैन समाज पहले से ही इस धार्मिक स्थल पर अपना दावा जता रहे हैं. इस बीच संथाल आदिवासियों ने भी इस जगह को धार्मिक स्थल मरांग बुरु बताकर दावा ठोका है. जेएमएम के बेंगाबाद प्रखंड अध्यक्ष नुनूराम किस्कू उर्फ टाइगर ने बताया कि पारसनाथ पहाड़ संथाल आदिवासियों का धार्मिक स्थल है. इस जगह को किसी अन्य समाज का धार्मिक स्थल बताना गलत है.
आदिवासी नेता महलाल सोरेन का कहना है कि पारसनाथ पहाड़ प्राचीन समय से आदिवासी समाज का धर्म स्थल रहा है. संथाल आदिवासी इस पहाड़ की पूजा करते रहे हैं. जैन समाज इसे अपना धर्म स्थल बताकर आदिवासियों के साथ सौतेला व्यवहार कर रहे हैं. इसे लेकर बहुत जल्द आंदोलन छेड़ा जाएगा.
पीरटांड़ के पूर्व प्रखंड प्रमुख सिकंदर हेंब्रम का कहना है कि पारसनाथ पहाड़ संथाल आदिवासियों की परंपरा और संस्कृति से जुड़ा है. पारसनाथ पहाड़ को ब्रिटिश काल में आदिवासी धार्मिक स्थल के रूप में गजट में शामिल किया गया था. जैन समाज का दावा गलत है.
जमशेदपुर : आदिवासियों की राय
आदिवासियों के ईश्वर हैं : बीमो मुर्मू
बीमो मुर्मू का कहना है कि पारसनाथ पहाड़ मरांग बुरू हैं. वे आदिवासियों के ईश्वर हैं. वह पवित्र स्थल है. जाहेरगढ़ है. ब्रिटिश प्रीवि काउंसिल की ओर से सत्यापन किया गया था. कहा गया था कि यह धर्मगढ़ है. जैन धर्मावलंबियों की ओर से इसे मंदिर बनाकर धार्मिक तीर्थ स्थल बनाने की कोशिश की जा रही है. इसे स्वीकार और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
आदिवासियों को अधिकार मिले : ईश्वर सोरेन
आदिवासी नेता ईश्वर सोरेन ने कहा कि पारसनाथ पहाड़ी पर पहले से ही आदिवासी पूजा पाठ करते थे. बाद में जैन धर्म के लोगों ने पूजा पाठ करना शुरू किया. आदिवासियों को अधिकार मिलना चाहिये. उनका अधिकार बरकरार रखने की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं है तो इसके लिये सरकार दोषी है. शहीद का मामला हो या धर्म का मामला हो.
जैनियों की प्रतिक्रिया
धर्मस्थल के लिए राजनीति नहीं हो : हेमेंद्र जैन
टाटानगर ओसवाल जैन संघ के महासचिव हेमेंद्र जैन हनु ने कहा कि राज्य सरकार को किसी भी धार्मिक स्थल को लेकर राजनीति नहीं करनी चाहिए. कोई भी धर्मस्थल अथवा तीर्थस्थल से लोगों की आस्था जुड़ी होती है. आस्था को ठेस पहुंचा कर कोई योजना सफल नहीं हो सकती है. जिस तरह हेमंत सरकार सम्मेद शिखर को लेकर राजनीति कर रही है, वह सरासर गलत है.
सम्मेद शिखर तीर्थ स्थल ही बना रहे : चेतन
जमशेदपुर के व्यवसायी चेतन जैन ने कहा कि जैन समाज की आस्था का केंद्र सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थल ही बने रहने देना चाहिए. सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के निर्णय पर सरकार को पुन: विचार करना चाहिए. पर्यटन स्थल बनने से वहीं की पवित्रता भंग होगी, जो जैन समाज की आस्था के साथ खेलवाड़ करना होगा.
विरोध : पारसनाथ को लेकर जैन समाज में उबाल, मौन जुलूस निकाला
संवाददाता। गिरिडीह
जैनियों के प्रमुख तीर्थ स्थल श्री सम्मेद शिखर जी (पारसनाथ) को लेकर सकल जैन समाज ने 5 जनवरी को गिरिडीह शहर में मौन जुलूस निकाला. शहर के बड़ा चौक स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर से शुरू मौन जुलूस रेलवे स्टेशन, कालीबाड़ी चौक, कचहरी रोड होते हुए बीटी फील्ड पहुंचा. जुलूस का नेतृत्व श्री दिगंबर जैन समाज गिरिडीह के मंत्री नोकेश जैन ने किया. हाथों में तख्तियां थामे करीब दो हजार की संख्या में बच्चे, महिलाएं व पुरुष इसमें शामिल हुए. तख्तियों में श्री सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल घोषित नहीं किए जाने का स्लोगन लिखा था. जुलूस में गिरिडीह, देवघर, धनबाद, रामगढ़, हजारीबाग, कोडरमा, रांची समेत झारखंड के अन्य जिलों से भी जैन समाज शामिल हुए. जुलूस को लेकर दिगंबर जैन मंदिर में शुरू से ही गहमागहमी थी. जुलूस समाप्त होने के बाद समाहरणालय पहुंचकर देश के पीएम व झारखंड के सीएम के नाम डीसी को ज्ञापन सौंपा गया. जुलूस में महेश जैन, उमेश जैन, दिलीप जैन, अविनाश जैन, अजय जैन, रश्मि जैन समेत समाज से जुड़े बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबी शामिल हुए.
अन्य समाज ने भी दिया समर्थन : जैनियों के आंदोलन को अन्य समाज ने भी समर्थन दिया है. जुलूस में भी समर्थन देने वाले समाज के लोग शामिल हुए. समर्थन देने वालों में मारवाड़ी समाज, बर्णवाल समाज और पंजाबी समाज शामिल है. बर्णवाल समाज की अध्यक्ष ललिता बर्णवाल ने कहा कि पारसनाथ जैनियों का विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल है. इसकी गरिमा का ख्याल रखते हुए इस जगह को पर्यटन स्थल घोषित नहीं किया जाना चाहिए. पंजाबी समाज के अमरजीत सिंह सलूजा ने कहा कि सभी धर्म के अनुयायियों को अपने धर्म स्थल की रक्षा करने का अधिकार है.
‘आरोप-प्रत्यारोप छोड़कर सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान करने की दिशा में प्रयास हो’
संवाददाता। रांची
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेता आलोक कुमार दूबे, लाल किशोर नाथ शाहदेव व डॉ राजेश गुप्ता छोटू ने भी सम्मेद शिखर पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. अपने बयान में इन्होंने कहा है कि सरकार हो या राजनीतिक दल जैन समुदाय की भावनाओं का सम्मान करते हुए एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप छोड़कर समाधान करने की दिशा में प्रयास होना चाहिए. इस संदर्भ झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जैन समुदाय को विश्वास भी दिलाया है. वैसे यह बात सर्वविदित है कि पर्यटन स्थल विकसित करने का फैसला किसने लिया और गजट किसने प्रकाशित किया, लेकिन अभी यह वक्त नहीं है कि हम एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करें. कांग्रेस नेता आलोक कुमार दूबे ने कहा सम्मेद शिखर पारसनाथ तीर्थ स्थल सदियों से जैन धर्म के अनुयायियों का पवित्र स्थल रहा है. झारखंड के लिए यह सौभाग्य की बात है कि विश्वभर के श्रद्धालु यहां आते हैं और शीश झुकाकर खुद को धन्य समझते हैं. केंद्र व राज्य सरकार को मिलकर समस्या के समाधान की दिशा में गंभीर प्रयास करना चाहिए और जैन समुदाय को विश्वास में लेकर आंदोलन भी समाप्त कराना चाहिए.कांग्रेस नेता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा जैन समाज अहिंसा परमो धर्म: के मार्ग पर चलने में विश्वास करता है. यह बात सही है कि पर्यटन स्थल बनने से कई प्रकार की बुराइयों के पनपने का जैन समाज की शंका बहुत हद तक सही है. इसलिए सम्मेद शिखर पारसनाथ तीर्थ स्थल को जैन समुदाय की इच्छाओं के अनुरूप ही रहने दिया जाए.
कांग्रेस नेता डॉ राजेश गुप्ता छोटू ने कहा कि अनंत काल से ही पारसनाथ मधुबन जैन धर्म का सबसे बड़ा केंद्र रहा है, उनके सभी भगवान यहीं से गए हैं. जैन समाज की यह मांग कि तीर्थराज को सरकार संरक्षित करें और सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थल के रूप में ही रहने दिया जाए. पर्यटन स्थल किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं होगा.
मारंग बुरु आदिवासी और मूलवासी समाज का है और हमेशा रहेगा : विजय शंकर
संवाददाता। रांची
मारंग बुरु आदिवासी और मूलवासी समाज का है और रहेगा. अगर सरकार या फिर कोई इससे छेड़छाड़ करेगा, तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. उपरोक्त बातें झारखंडी सूचना अधिकार मंच के केंद्रीय अध्यक्ष सह झारखंड बचाओ मोर्चा के केंद्रीय संयोजक सह हटिया विधानसभा क्षेत्र के पूर्व प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने कही. उन्होंने कहा कि पारसनाथ पहाड़ी और उसके आसपास रहने वाले आदिवासी मूलवासी पारसनाथ को मारंग बुरू के नाम से ही जानते हैं. पारसनाथ की पाहड़ियों पर एक आदिवासी मंदिर भी है, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. गैजेटियर ऑफ बिहार (हजारीबाग जिला, 1932) में इस पूरी पर्वत शृंखला को मारंग बुरू के नाम से जाना जाता था. हर सरहुल के समय यहां पूजा की जाती थी और आदिवासी मूलवासी लोग यहां शिकार किया करते थे. परंतु, जैन संप्रदाय के लोगों का वर्चस्व बढ़ने के बाद यहां सब बंद हो गया. श्री नायक ने आगे यह भी कहा कि यह बहुत अजीब बात है कि सालों से जैन धर्म को मानने वाले लोग इस जगह का इस्तेमाल कर रहे हैं. आदिवासी मूलवासी के जमीन पर बड़ी-बड़ी इमारत, मंदिर और आश्रम बना रहे हैं, लेकिन आदिवासियों को इससे नुकसान के सिवाय कुछ नहीं मिल रहा. जबकि संविधान की 5वीं और 6वी अनुसूची के अनुसार आदिवासियों मूलवासी के स्वामित्व वाली जमीन को गैर-आदिवासी नहीं खरीद सकते, लेकिन यहां धड़ल्ले से जैन संप्रदाय के लोग जमीन खरीद रहे हैं व ऊंचे-ऊंचे आश्रम बना रहे हैं.
श्री नायक ने आगे कहा कि पारसनाथ पर चढ़ते हुए आपको कई बोर्ड दिखेंगे कि यह पवित्र स्थल है. यहां मांस, मछली, मदिरा पीना या धूम्रपान करना सख्त मना है. यह देखने में चाहे आपको डरावने न लगे, परंतु आप सोचिए जिन आदिवासियों की जमीन पर पारसनाथ खड़ा है, उन आदिवासियों की पूजा-पाठ में ही बलि का विधान है. इस तरीके से जैन लोग जो बाहर से यहां आए हैं, उन्होंने यहां अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया.
जैन धर्म की धार्मिक आस्था के साथ खेलवाड़ कतई नहींं होने देंगे : धनंजय कुमार पुटुस
संवाददाता। रामगढ़
श्री सम्मेद शिखरजी ‘पारसनाथ पहाड़’ को पर्यटन स्थल घोषित करने के बाद उत्पन्न विवाद थमने का नाम नही ले रहा है. जैन समुदाय के लोग लगातार इस फैसले के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. रामगढ़ जिला में ज्वलंत मुद्दों पर मुखर होकर आवाज उठाने वाले नेता आरबीएसएस के केंद्रीय अध्यक्ष धनंजय कुमार पुटुस भी जैन समाज के समर्थन में खुल कर सामने आ गए हैं. गुरुवार को धनंजय कुमार पुटुस ने रामगढ़ डीसी के माध्यम से राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को आवेदन देकर जैन समुदाय के हित में निर्णय लेने की मांग की है.मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को दिए आवेदन में धनंजय कुमार पुटुस ने कहा है कि जैन धर्म को मानने वालों का एक पवित्र स्थल झारखंंड के गिरिडीह जिला में श्री सम्मेद शिखरजी ‘पारसनाथ पहाड़’ पर स्थित है. जैन धर्म को मानने वाले लोगों की यहांं गहरी धार्मिक आस्था है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि, श्री सम्मेद शिखर जी ‘पारसनाथ पहाड़’ जैन धर्म के 20 तीर्थंकर भगवानों की मोक्ष स्थली है. हजारों वर्षों से जैन समुदाय के लोग शाकाहार का पालन करते हुये यहां अपने रीति-रिवाज से पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं. जैन समुदाय को बिना विश्वास में लिए श्री सम्मेद शिखर जी ‘पारस नाथ पहाड़’ को पर्यटन स्थल के रूप में घोषित कर दिया गया है, जो कि सही नहीं है.
अगर इस स्थल को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जायेगा, तो पर्यटकों द्वारा यहां मांस-मदिरा आदि का भी सेवन करने की पूर्ण संभवाना है, इससे जैन धर्म के लोगों की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचेगी और पवित्र स्थल अपवित्र होगी. पुटुस ने श्री सम्मेद शिखर जी को पर्यटन क्षेत्र ना बनाकर जैन समुदाय की धार्मिक स्थल रखने की मांग की है. पुटुस ने कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो रामगढ़ बचाओ संघर्ष समिति के हजारों सदस्य जैन समुदाय के हित को देखते हुए उनकी धार्मिक आस्था के सम्मान में उन्हें न्याय दिलाने तक शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करने को बाध्य होगा.
मौन विरोध : विरोध-प्रदर्शन किया गया कोडरमा से भी जैन समाज के लोग हुए शामिल
कोडरमा | पारसनाथ स्थित सम्मेद शिखर तीर्थ स्थल को पर्यटन स्थल बनाये जाने का देश में विरोध हो रहा है. इसको लेकर 5 जनवरी को जैन समाज ने मौन जुलूस निकाला. जैन समाज के मंत्री ललित जैन सेठी और राष्ट्रपति पुरस्कार सम्मानित सुरेश झाझंरी ने इसका नेतृत्व किया. इस जुलूस में कोडरमा सहित पूरे झारखंड के जैन समाज के लोग शामिल हुए. पूरे नगर में घूमते हुए जुलूस डीसी ऑफिस पहुंचा. इसके बाद राज्य के जैन समाज के प्रतिनिधिमंडल ने संयुक्त रूप से डीसी को ज्ञापन सौंपा.
झारखंड के सभी जिलों से मौन जुलूस में शामिल हुए जैन समाज के लोग
बता दें कि झारखंड के कोडरमा, गिरिडीह, रांची, धनबाद, चतरा, चौपारण, इटखोरी , कतरास, हजारीबाग देवघर, रामगढ़, झरिया, मिहिजाम, गोमिया, पेटरवार सहित कई जगहों से जैन धर्म के हजारों लोग मौन जुलूस में हिस्सा लेने पहुंचे थे. लोग सुबह से ही गिरिडीह पहुंचने लगे थे. गिरिडीह के पंजाबी समाज और अन्य कई समाज के लोगों ने जुलूस में भाग लिया और जैन समाज के लोगों का समर्थन किया.
तीर्थ स्थल घोषित करने पर मर्यादा और गरिमा रहेगी विद्यमान
जैन धर्म के लोगों का कहना है कि सम्मेद शिखर पर्वत किसी भी परिस्थिति में पर्यटन क्षेत्र स्वीकार नहीं होगा. यह तीर्थ स्थल पूरे भारत के करोड़ों जैन धर्मावलंबियों की आस्था और संस्कृति का केंद्र है. सरकार इसे धार्मिक अहिंसक पवित्र तीर्थ क्षेत्र घोषित करे. निवर्तमान पार्षद पिंकी जैन ने कहा कि जैन समाज सभी धर्मों का सम्मान करती है. सत्य, शांति और अहिंसा में ही विश्वास रखती है. राष्ट्र निर्माण में जैन समाज का भी बहुमूल्य योगदान रहता है. झारखंड और भारत के सभी जैन समाज सरकार से निवेदन करते हैं कि जैन धर्म का सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखर पारसनाथ को जैन धर्म के अनुरूप ही पवित्र तीर्थ क्षेत्र घोषित किया जाये. जिससे धर्म क्षेत्र की मर्यादा और गरिमा विद्यमान रह सके.
ये लोग मौन जुलूस में रहे शामिल
इस मौन जुलूस में जैन समाज के उप मंत्री नरेंद्र झाझंरी, उपाध्यक्ष कमल जैन सेठी, सुरेश सेठी, मनीष सेठी, जैन महिला समाज की अध्यक्ष नीलम सेठी, मंत्री आशा गंगवाल, किरण ठोलिया, प्रेम झाझरी, सोना सेठी, दिव्या छाबड़ा, बबीता जैन, सीमा जैन, अलका शेट्टी,उषा कासलीवाल, मुकेश सेठी, टुन्नूअजमेरा, सुशील काला ,ममता काला, अजय गंगवाल, संजू ठोलिया, जैन समाज के मीडिया प्रभारी नवीन जैन राजकुमार अजमेरा सहित कई लोग मौजूद रहे.
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