Shyam Kishore Choubey
15 नवंबर को 22वें झारखंड दिवस के मौके पर सरकार ने मुख्यमंत्री सारथी योजना, मुख्यमंत्री शिक्षा प्रोत्साहन योजना, एकलव्य प्रशिक्षण योजना और गुरुजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना लांच कर युवाओं में जो आकर्षण पैदा किया, इसके सापेक्ष एक शाश्वत सवाल चस्पां है. ये तमाम योजनाएं फलीभूत तभी होंगी, जब राज्य में शिक्षा की आदर्श व्यवस्था हो. अभी स्कूली स्तर पर 50 हजार और कॉलेज स्तर पर 22 सौ शिक्षकों की बहाली की जरूरत से स्पष्ट हो जा रहा है कि पढ़ने-पढ़ाने का माहौल गड़बड़ है. प्राइमरी से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक शिक्षकों की भारी कमी पब्लिक स्कूलों और निजी विश्वविद्यालयों के लिए कितनी अच्छी खाद-खुराक है, यह समझाने की बात नहीं.
हाल के दिनों में आई खबरों पर गौर करें:-
-राज्य में प्रति एक लाख आबादी पर 106 प्राइमरी और मिडिल स्कूल, जबकि इतनी ही आबादी पर हाईस्कूल और प्लस टू स्कूल आठ ही हैं.
– राज्य में चल रहे 87 मॉडल स्कूलों में से 81 में 2022-23 सत्र में छठी क्लास में एक भी छात्र न मिला, 63 मॉडल स्कूलों की 11वीं कक्षा में किसी ने नामांकन नहीं कराया. प्लस टू कक्षाओं में साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स के पीजीटी नहीं के बराबर. बिजली-पानी और अन्य आधारभूत संरचनाओं का अभाव.
-प्रतिष्ठित नेतरहाट विद्यालय में शिक्षकों के 47 पदों में से 19 रिक्त. तृतीय श्रेणी के 46 पदों में 30 रिक्त. दो साल से डिफंक्ट नेतरहाट विद्यालय समिति और सामान्य निकाय का 29 नवंबर को पुनर्गठन.
– 58 डिग्री कालेजों में चल रही इंटर की पढ़ाई. इंटर स्तर पर राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र, मनोविज्ञान और जनजातीय भाषाओं के शिक्षकों का पद ही नहीं.
-राज्य के सभी छह सरकारी विश्वविद्यालयों के 63 कंस्टीच्यूएंट कॉलेजों में 51 प्रभारी प्राचार्य के भरोसे.
-राज्य के इंजीनियरिंग कालेजों में दो चरणों की काउंसेलिंग के बाद कुल 4,898 में से 1834 यानी 37.5 फीसद सीटें खाली रह गईं.
अगले सत्र से राज्य में नई शिक्षा नीति लागू की जानी है. इसके लिए वांछित सुधार बड़ी चुनौती है. इंटर स्तर पर पढ़ाई डिग्री कॉलेजों से अलग की जानी है. इसी में व्यवस्था का पसीना छूट रहा है. बाकी, प्राइमरी से लेकर ऊपर तक ढांचागत परिवर्तन आवश्यक होगा. जब वर्षों से चली आ रही घिसी-पिटी शिक्षा व्यवस्था में ही रोज-रोज धरना-प्रदर्शन और किसी भांति तुष्टीकरण का दौर चल रहा है तो बिलकुल नया तौर-तरीका कैसे आजमाएंगे? यह सवाल पता नहीं क्यों नीति नियंताओं और उन पर अमल करनेवाले बाबुओं और यहां तक कि सिविल सोसाइटी को परेशान नहीं करता. 19 नवंबर को हजारों स्कूली शिक्षकों ने नियमितीकरण की मांग लेकर राजधानी रांची में प्रदर्शन किया. व्यवस्था कान में तेल डाले रही.
ढोल चाहे जितना पीटा जाए, शिक्षा सरकारों की प्राथमिकता रही ही नहीं. लोग शिक्षित और जागरूक हो जाएंगे तो वोट के समय नीर-क्षीर विवेक से काम लेने लगेंगे. याद करें, योजना आयोग ने सभी प्रखंडों में पब्लिक स्कूल की तर्ज पर मॉडल स्कूल स्थापित करने की नीति लागू की थी. झारखंड में इस पर अमल शुरू हुआ तो महज 87 स्थानों पर जमीन मिल सकी. बाकी ब्लॉकों में जमीन की समस्या आन खड़ी हुई. तबतक व्यवस्था बदल गई. योजना आयोग को भंग कर नीति आयोग ले आया गया. उसने मॉडल स्कूल का मॉडल ही खत्म कर दिया.
जो मॉडल स्कूल चल भी रहे हैं, उनका सूरतेहाल यह कि साधन-सुविधाओं के अभाव में गोड्डा के दो मॉडल स्कूल बंद हैं. पालकोट के तीन शिक्षकों वाले मॉडल स्कूल में सिर्फ पांच छात्र हैं, जबकि बसिया में 12 छात्र और महज एक शिक्षक की उपलब्धता है. पश्चिम सिंहभूम के सारबिल स्कूल में 33 कमरे; 40 बच्चे; चार शिक्षक हैं. इन चार शिक्षकों में तीन प्रतिनियुक्ति पर हैं. मॉडल स्कूल में 6ठी और 11वीं दर्जा में नामांकन होता है. मॉडल स्कूलों का यह हाल है तो सामान्य स्कूलों की दशा-दिशा बताने की जरूरत ही नहीं. यह ठीक है कि वर्तमान हेमंत सरकार ने हर प्रखंड में मिशन मोड में मॉडल स्कूलों की स्थापना का लक्ष्य रखा है. फिलहाल नये 80 मॉडल स्कूलों का निर्माण किया जा रहा है. लेकिन केवल सदिच्छाएं ही काम नहीं करतीं, पेट भरने के लिए जैसे अन्न चाहिए, स्वस्थ रहने के लिए पौष्टिक भोजन चाहिए, वैसे ही जीवन संवारने के लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था चाहिए.
प्राइमरी स्तर से ही योग्य शिक्षक रहें, समय पर कक्षाएं चलें, छात्र और शिक्षक होम वर्क करें, परीक्षाएं समय पर और साफ-सुथरी हों तो सरकार ने झारखंड दिवस पर जो घोषणाएं कीं, उनकी सार्थकता में शक-शुबहा की गुंजाइश नहीं बचेगी. ग्रेजुएशन स्तर तक पढ़ाई का सुदृढ़ सिलसिला जमा दिया जाय तो युवा वर्ग आगे का अपना रास्ता खुद भी बना सकेगा. इसके सापेक्ष आलम यह कि हमारे सरकारी शैक्षणिक संस्थान डिग्रियां बांटने और राजनीति के कारखाने बनकर रह गए हैं.
फिलहाल, 50 हजार में से प्रथम चरण में जिन 25 हजार स्कूली शिक्षकों की बहाली की प्रक्रिया शुरू की जानेवाली है, उसके पहले ही एक दूर की कौड़ी 1932 की खतियान आधारित स्थानीयता नीति लेकर सरकार सामने आ गई. बहालियों पर इसके असर के संबंध में शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने 18 नवंबर को धनबाद में कहा, यह नीति लागू होने तक नियुक्ति को रोका नहीं जाएगा, लेकिन यह भी ध्यान रखा जाएगा कि ‘प्रावधान’ के तहत ही नियुक्ति हो. जो नीति लागू ही नहीं है, उस पर कैसे अमल किया जाएगा, यह राजनीति करनेवाले ही बता सकते हैं. इन्हीं शिक्षा मंत्री ने पहले जोर देकर कहा था कि 15 नवंबर तक बहालियां हो जाएंगी. राज्य की जो राजनीतिक स्थिति-परिस्थिति है, आगे का अहवाल राम ही जानें. शिक्षा प्राथमिकता होती तो इससे जुड़े सवाल उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.