भू-माफिया बेखौफ बेच रहे तालाबों की जमीन
…मिट रहे तालाब सोये हैं जिम्मेवार
Ranchi: जनसंख्या बढ़ने के साथ ही झारखंड में नदी और तालाबों की संख्या सिमटती जा रही है. कुछ तालाबों का तो अस्तित्व ही खत्म हो गया, तो कइयों का आकार सिमट कर छोटा हो गया. यहां तक कि कई दशक पहले आंकड़ों में तालाबों की संख्या जितनी दिखाई गई है,अस्तित्व में उतने नजर भी नहीं आ रहे हैं. पूछने पर सम्बद्ध अधिकारी, कर्मचारी कहते हैं कि विभाग इस मामले में सजग है, दोषियों पर कार्रवाई जाएगी, लेकिन हकीकत में वैसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा है. कुछ जगहों पर स्थानीय लोगों की मदद के तालाबों को बचाने का प्रयास जरुर किया गया है. पर सरकारी स्तर पर तालाबों को लेकर ऐसी कोई सजगता नजर नहीं आ रही है कि इन जल स्रोतों को बचाने की कोशिश की जा रही है. अभी भी जितने तालाब या नदी हैं उन पर भू माफिया की नजर है. सरकार और जनता के स्तर अगर कारगर प्रयास नहीं किए गये, तो निकट भविष्य में बचे तालाबों का अस्तित्व भी खतरे में है. शुभम संदेश की टीम ने इस संबंध में विभिन्न जिलों से पड़ताल की है. पेश है रिपोर्ट.
जमशेदपुर
फ्लैट निर्माण के लिए सुंदरनगर के राजू तालाब की हो गई घेराबंदी
22 कट्ठे में फैले तालाब का विवाद पहुंचा अदालत
सुंदरनगर थानान्तर्गत ब्यांगविल मौजा में स्थित राजू तालाब का अस्तित्व अब समाप्त हो गया है. उक्त तालाब की घेराबंदी कर दी गई है. तालाब के भर जाने से वहां छोटे-बड़े पेड़ एवं झाड़ियां उग गई हैं. कभी उक्त तालाब का इस्तेमाल पूरे मौजा के लोग नहाने एवं कृषि कार्य के लिए करते थे, लेकिन जब से तालाब को भरकर उसकी घेराबंदी की गई है, तब से लोगों का वहां आना-जाना बंद हो गया है. स्थानीय लोगों की मानें तो उक्त तालाब से समीप के खेतों में पानी पटाने का कार्य भी होता था, लेकिन तालाब के चारों ओर घेराबंदी हो जाने से कृषि कार्य बंद हो गया है.
सरकारी तालाब को भरकर बनाया घर
सुंदरनगर बैंक ऑफ इंडिया के पीछे एक सरकारी तालाब था. उसे स्थानीय दबंगों ने भर दिया. तालाब के एक हिस्से में घर बन गया है, जबकि बाकी के हिस्से का इस्तेमाल लोग कचरा फेंकने के लिए कर रहे हैं. आने वाले दिनों में उक्त तालाब का अस्तित्व पूरी तरह समाप्त हो जाएगा. इस संबंध में गोलमुरी सह जुगसलाई के अंचलाधिकारी ने बताया कि सरकारी तालाब का अतिक्रमण एवं घर निर्माण कराए जाने की जांच करायी जाएगी. जांच में दोषी पाए जाने पर अतिक्रमणकारियों से तालाब को मुक्त कराया जाएगा.
तालाब का मामला पहुंचा अदालत
ब्यांगबिल पंचायत के पूर्व मुखिया प्रधान सिंह मुंडा ने बताया कि राजू तालाब का मामला इन दिनों न्यायालय में विचाराधीन है. तालाब के स्वामी ने फ्लैट निर्माण के लिए उक्त तालाब को भरवा दिया. इसमें एक बिल्डर ने उसका सहयोग किया. फ्लैट निर्माण के लिए पीलर खड़े किए गए. इसी बीच दूसरे बिल्डर ने उक्त जमीन पर दावा कर दिया. इसके कारण मामला विवादित हो गया. वर्तमान में अदालत में मामला विचाराधीन है.
धनबाद
लापता हो गए कई तालाब, सिकुड़ कर दम तोड़ रहा लाल कोठी तालाब
जिले भर में करीब ढाई हजार सरकारी और निजी तालाब हैं. इनमें से कई तालाब का अस्तित्व समाप्त चुका है. लेकिन विभाग कागज़ों पर सभी तालाबों के सुरक्षित होने का दावा करता है. घर बनाने की होड़ में जामताड़ा शहरी व ग्रामीण इलाकों में तालाबों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. करमाटांड़ बाजार अंतर्गत लालकोठी के समीप कभी तालाब हुआ करता था, जहां आज मकान खड़े हो गये हैं. जामताड़ा नगर पंचायत की बात करें तो कोर्ट रोड के समीप तालबगान तालाब के मेढ़ पर मकान का निर्माण कर दिया गया है. वहीं पाल बगान, प्रेमधाम सहित अन्य मोहल्लों में भी तालाब पर मकान बने हैं. इन जगहों पर रिकॉर्डेड तालाब को ढूंढने पर अता-पता नहीं चल पाएगा.
तालाबों का अस्तित्व बचना चाहिए
अपर समाहर्ता सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि तालाब का अस्तित्व बचना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोगों की शिकायत मिलती है, तो तालाब पर होने वाले निर्माण पर रोक लगाई जाती है. कहा कि जामताड़ा में ग्रामीण इलाकों के तालाब की देखरेख जिला परिषद करती है. जबकि शहरी क्षेत्र में तालाब की देखरेख नगर पंचायत कर रही है. जिला भूमि संरक्षण विभाग, कृषि विभाग, नगर पंचायत व नगर परिषद की ओर से तालाबों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है. वहीं अमृत सरोवर योजनान्तर्गत तालाब का निर्माण कराया जा रहा है.
जागरूकता की वजह से कुछ तालाब बचे हुए हैं
हालांकि शहरी क्षेत्रों में लोगों की जागरूकता से कुछ तालाब बचे हुए हैं. लेकिन यहां भी तालाब के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ हुआ है. तालाब के मेढ़ के चारों ओर बड़े-बड़े घर बन चुके हैं. शहर में कई तालाबों को भरकर मकान बनाया गया है. बावजूद इसके तालाब के अस्तित्व को बचाने के लिए कोई सरकारी प्रयास नहीं हो पा रहा है. लोगों की शिकायत पर अधिकारी हरकत में आते हैं. कुछ दिन के लिए निर्माण कार्य को रोक दिया जाता है. उसके बाद विभाग सो जाता है. इस दिशा में कारगर कदम उठाने की जरुरत है. यानी समय रहते अगर बचे हुए तालाबों को बचाने के लिए अगर कदम नहीं उठाए गए तो वे भी खत्म हो जाएगे.
घाटशिला
अधिकतर निजी तालाबों का अतिक्रमण, खड़ी हो गई इमारतें
तालाब और नदी जल स्रोत बने रहे, इसके लिए गांवों में तालाब और नदी आदि का संरक्षण वर्षों से किया जा रहा है. लेकिन, हाल के दिनों में भू माफिया की गिद्ध दृष्टि तालाबों पर पड़ गई है. घाटशिला प्रखंड के के अधिकांश निजी तालाबों का अतिक्रमण कर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार जमीन के स्वरूप को बदलना अवैध है. इसके बावजूद पदाधिकारियों की मिलीभगत से भू माफिया अधिकांश तालाब की प्लॉटिंग कर बेच चुके हैं. वैसे घाटशिला में सरकारी तालाब का धीरे-धीरे नामोनिशान मिट जा रहा है. कई तालाब भूमि संरक्षण विभाग तो कई तालाब मत्स्य विभाग की है. वर्षों पहले इसकी बंदोबस्ती कर मत्स्य पालन किया जाता था, परंतु अब वह भी बंद हो गया है, जिसके कारण धीरे-धीरे अतिक्रमण की गिरफ्त में आता जा रहा है. घाटशिला मुख्य शहर में राजा जगदीश चंद्र धवल देव का तीन तालाब लगभग 10 एकड़ से अधिक जमीन में बना तालाब पूरी तरह अतिक्रमण की भेंट चढ़ गया है.
घाटशिला में तालाब की संख्या
निजी तालाब 15
सरकारी तालाब 3
राजा का तालाब 3
कितना बचा है 10
कितने लुप्त हैं 13
कितने अतिक्रमित हैं 20
अब तक किसी ने शिकायत नहीं की है, मुक्त कराया जाएगा
तालाब अतिक्रमण को लेकर अभी तक किसी ने भी शिकायत नहीं की है. लिखित शिकायत मिलते ही तालाब को अतिक्रमण मुक्त कराया जाएगा. बीच-बीच में निजी तालाब के जीर्णोद्धार को लेकर सरकार के पास अनुशंसा भेजी गई है. वैसे राजा के तालाब हस्तांतरित नहीं होने कारण उस पर सरकारी राशि खर्च कर जीर्णोद्धार कर पाना संभव नहीं है.
राजीव कुमार अंचलाधिकारी (सीओ) घाटशिला.
रामगढ़
थाना चौक स्थित तालाब का अस्तित्व भी खतरे में, 3 एकड़ 34 डिसमिल का तालाबा सिकुड़कर 2 एकड़ का रह गया है
सुप्रीम कोर्ट के तालाबों को नहीं भरने के आदेश की रामगढ़ जिले में धज्जियां उड़ाई जा रही है. शहर में ऐसे कई तालाब हैं जिसे या तो भर दिया गया है या फिर भरने का कार्य चल रहा है. इतना ही नहीं कई तालाबों के अस्तित्व भी मिटा दिये गये हैं. थाना चौक के तालाब के कोने में अतिक्रमण कर बाउंड्री खड़ी कर दी गई है. जानकार बताते हैं कि कभी यह तालाब 3 एकड़ 34 डिसमिल में फैला था लेकिन वर्तमान में यह सिकुड़ कर 2 एकड़ से भी कम बचा रह गया है. गोला रोड झंडा चौक स्थित तालाब का अस्तित्व भी खतरे में दिख रहा है. तालाब का आकार काफी बड़ा था. लेकिन तालाब को भरते भरते इतना छोटा कर दिया गया है कि देखने से ही यह तालाब जैसा नहीं लगता .जानकार बताते हैं कि यह तालाब भी कभी एकड़ में फैला हुआ था . जिले में ऐसे कई तालाब हैं जिनका अस्तित्व आज मिट चुका है. कुछ बचे तालाबों का अस्तित्व मिटाने में लोग लगे हुए हैं. कई बार स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से तालाब के मूल स्वरूप को बचाने की गुहार लगाई. लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. पूरे मामले पर रामगढ़ अनुमंडल पदाधिकारी मोहम्मद जावेद हुसैन कहते हैं कि थाना चौक स्थित तालाब में कोर्ट का कुछ आर्डर आया है. कोर्ट का डायरेक्शन भी अंचल को दिया गया है. इस पर मैं एक बार देख लेता हूं कि कोर्ट का क्या आर्डर है, उसके बाद ही करवाई करेंगे. बाकी जिन तालाबों में अगर सरकारी जमीन का अतिक्रमण किया गया है तो जो आमतौर पर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण की जो कार्रवाई होती है, वही कार्रवाई की जाएगी. जल्द ही जांच करा कर कर्रवाई की जाएगी.
रांची
70 के दशक में मिट गया भुताहा तालाब का अस्तित्व
राजधानी रांची के सेंटर में अभी जहां जयपाल सिंह मुंडा स्टेडियम और अटल वेंडर मार्केट हैं, वहां कभी एक तालाब हुआ करता था. जिसे भुताहा तलाब के नाम से जाना जाता था. यह तलाब 19 60 के दशक में अस्थित्व में था, लेकिन 70 के दशक के शुरूआती वर्षों में ही इसे भरने का खाम शुरू कर दिया गया था. पहले इस तलाब का इस्तेमाल लोग शौच के लिए किया करते थे. तालाब हमेशा गंदगी से भरा रहता था. तलाब से सटा हुआ एक पार्क भी हुआ करता (जहां अब महात्मा गांधी हॉल बन गया है, यह टाऊन हॉल के नाम से भी जाना जाता है) जिसे बारी पार्क मैदान कहा जाता था. भुताहा तालाब में गंदगी के अंबार को देख कर लोगों को ख्याल आया कि इसे तालाब को भर कर इसे बच्चों के खेल के मैदान के रूप में विकसित किया जाए.
श्रमदान कर भरा गया यह तालाब
उस वक्त इस तलाब को भरने के लिए सरकारी स्तर पर भी प्रयास किए गये थे. लेकिन आधुनिक सुविधा मौजूद नहीं थी. इसलिए उसे भरना बेहद मुश्किल था. उस समय स्कूली बच्चों द्वारा श्रमदान का कार्यक्रम शुरू किया गया और ट्रकों के गिरायी गयी मिट्टी को स्कूली बच्चों द्वारा फैलाने का काम शुरू हुआ. श्रमदान का यह काम 1973-74 में शुरू किया गया था. इस काम में रांची के सभी स्कूलों के बच्चों ने सहयोग किया.
जयपाल सिंह को दिया गया सम्मान
मैदान बनाने के साथ यह भी प्रयास किया गया कि प्रतिभावान खिलाड़ियों का नाम देकर उन्हें सम्मानित किया जा सके. तभी इस मैदान को हॉकी धुरंधर खिलाड़ी जयपाल सिंह के नाम से रखने का निर्णय लिया गया. ताकि बच्चे जयपाल सिंह से प्रेरित होकर खेलों में दिल्चस्पी ले और देश का नाम रोशन करें. इसलिए मैदान का नाम जयपाल सिंह स्टेडियम रखा गया. उस वक्त लोगों को लगा था कि समय के साथ इस स्टिडियम को और भव्य रूप दिया जाएगा.
क्रिकेट, फुटबॉल कब्बड़ी खेले जाते थे,अन्य कार्यक्रम भी होते थे
1980 के दशक में इस स्टेडियम में क्रिकेट, फुटबॉल, कबड्डी शुरू हो गये थे. रांची जिला क्रिकेट के लीग मैच और जिला फुटबॉल के मैच के साथ मीडिया कप क्रिकेट प्रतियोगिता भी इस स्टेडियम में होती थी. बाद में इसके एक हिस्से को काटकर अटल वेंडर भवन बना दिया गया. इससे स्टेडियम का क्षेत्रफल थोड़ा छोटा हो गया है. वर्ष 2000 के बाद नगर प्रशासन द्वारा इसका इस्तेमाल कई तरह से किया जाने लगा है. कभी इसे खुले जेल के रुप में इस्तेमाल किया जाता था, तो कभी इसमें प्रदर्शनी लगा दी जाती है, तो कभी पोटाला मार्केट. इस समय स्टेडियम में स्पोर्टोस कांपलेक्स बनाए जा रहे हैं,वहीं दूसरी ओर मार्केट भी बना दिए गये हैं. नगर निगम को इसकी देख रेख का जिम्मावारी सौपी गई है. स्पोर्टोस कांपलेक्स का उद्घाटन नहीं होने से खेल गतिविधियां एक तरह से ठप हैं. इससे देख खेल प्रेमी काफी आहत हैं.
पलामू
गोदामी पोखरा की जमीन पर घर बनाकर रह रहे हैं लोग
सुप्रीम कोर्ट ने तालाब को भरने या अतिक्रमण करने पर रोक लगा दी है. फिर भी अतिक्रमणकारियों द्वारा हुसैनाबाद के गोदामी पोखरा की जमीन पर कई वर्षो से अवैध कब्जा कर घर बनाकर रह रहे हैं. इनकी संख्या कितनी है यह तो जांच करने पर पता चलेगा. यही कारण है कि हुसैनाबाद नगर पंचायत अंतर्गत गोदामी पोखरा अतिक्रमण का मार झेल रहा है और इसकी सुध लेने वाले कोई नहीं है. इस पोखरा की जमीन का अतिक्रमण छोटे से बड़े लोगों ने कर रखा है. गोदामी पोखरा की जमीन में ही सड़क बनी हुई है.साथ ही विभिन्न प्रकार के सरकारी भवन भी बने हुए हैं. साथ ही अतिक्रमणकारियों ने कूड़ा करकट से गोदामी पोखरा को पाटने का काम कर रहे हैं. लेकिन इन सभी समस्याओं को न तो स्थानीय प्रशासन और न ही नगर पंचायत सुध ले रहा है. जिसका नतीजा है कि अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद हैं. विभिन्न अतिक्रमणकारियों द्वारा गोदामी पोखरा के भूमि को अपने नाम बंदोबस्त कराने के लिए मुकदमा भी लड़े हैं. इसमें बड़े-बड़े पूंजीपति भी शामिल हैं. इस संबंध में जब जब नगर पंचायत के कार्यपालक पदाधिकारी के द्वारा पूछा गया कि गोदामी पोखरा को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए क्या कार्रवाई की गई है, तो नगर पंचायत कार्यपालक पदाधिकारी ने कहा कि जब गोदामी पोखरा का सुंदरीकरण का निविदा फाइनल किया जाएगा. उस वक्त गोदानी पोखरा को अतिक्रमण मुक्त कराया जाएगा.
नगर पंचायत को राजस्व की हानि
वैसे तो हुसैनाबाद नगर पंचायत अंतर्गत गोदामी पोखरा और छठी यारी पोखरा को मत्स्य पालन के लिए पूर्व में नीलामी की जाती थी . इससे नगर पंचायत को राजस्व के रूप में काफी रकम प्राप्त होती थी लेकिन अब पोखरा में पानी नहीं रहने के कारण मछली पालन के लिए नीलामी लेने वाले लोग भी कतराने लगे हैं. जिससे नगर पंचायत को राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है.
जनप्रतिनिधि भी अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं
हुसैनाबाद नगर पंचायत के जनप्रतिनिधि भी अपना उल्लू सीधा करने के लिए अतिक्रमण को लेकर किसी भी प्रकार की आवाज नहीं उठाते हैं. जिसके चलते सभी अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद है. साथ ही नगर पंचायत के जनप्रतिनिधियों का किसी न किसी रूप में अतिक्रमणकारियों को साथ मिलता है. अब जब गोदामी पोखरा को आने वाले समय में अतिक्रमण मुक्त कराया जाएगा तो अतिक्रमणकारियों के द्वारा आश्रय देने के नाम पर हंगामा करने का अंदेशा प्रबल हो गया है.
लातेहार
आधा दर्जन तालाबों को भर दिया गया
लातेहार जिला मुख्यालय में लगभग आधा दर्जन तालाब एवं अन्य जल स्त्रोतों को भर कर सरकारी भवनों का निर्माण कराया गया है. विडंबना है कि इनमें से कई भवनों का निर्माण दस वर्षों में भी पूरा नहीं हुआ. शहर के धर्मपुर इलाके में नर्सिंग प्रशिक्षण भवन का निर्माण कार्य दस वर्ष पूर्व शुरू किया गया था. इसके लिए थेथर अहरा को भरा गया. तीन मंजिला यह इमारत आज तक अधूरा है. दो मंजिलों की ढलाई हो चुकी है और कमरों का निर्माण कराया जा चुका है. विशेष प्रमंडल के द्वारा दो करोड़ रूपये की लागत से इस भवन का निर्माण कार्य कराया जा रहा था. बताया जाता है कि इस प्रशासनिक स्वीकृत लिए बगैर ही कार्य प्रारंभ कर दिया गया था. इसी प्रकार धर्मपुर मुहल्ले में ही भितियाही अहरा को भर कर सिविल सर्जन का कार्यालय सह आवास का निर्माण भी दस वर्ष पूर्व शुरू किया गया था. यह भवन भी आज तक अधूरा है. इसकी भी प्रशासनिक स्वीकृति नहीं ली गयी थी. धर्मपुर मुहल्ले में ही गुहड़ी आहर को भर कर स्थानीय लोगों ने काफी विरोध किया था.
बहुदेश्यीय भवन का निर्माण विशेष प्रमंडल के द्वारा कराया गया था. गुहड़ी आहर में हमेशा पानी रहता था. इसे भरे जाने का स्थानीय लोगों ने काफी विरोध किया था, बावजूद तालाब को भर दिया गया था. हालांकि बहुउदेश्यीय भवन शहर के लिए काफी उपयोगी साबित हुआ. विभिन्न अवसरों पर यहां सरकारी कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. लेकिन विगत चार-पांच वर्षों से यह भवन बंद है. भवन की स्थिति काफी दयनीय हो गयी है. धर्मपुर मुहल्ले में ही कैनाल अहरा को भर कर खेल छात्रावास का निर्माण कराया गया है. धर्मपुर मुहल्ला के निवासियों का कहना है कि जब तक ये तालाब यहां थे, धर्मपुर मुहल्ले का जल स्तर काफी ऊंचा रहता था. महज 10-12 फीट मिट्टी खोदने पर ही पानी निकल जाता था. लेकिन आज स्थिति ऐसी है कि 60 से 80 फीट खोदने पर पानी मिल रहा है. कहीं-कहीं तो इससे अधिक खुदाई के बाद पानी मिलता है. जिस तेजी से तालाबों को भरा गया, उस अनुपात में शहर में तालाबों का निर्माण नहीं कराया गया.
धनबाद
बरमसिया छठ तालाब के आधे हिस्से पर कर लिया अवैध कब्जा, भू-माफिया ने बना लिया मकान
धनबाद के बरमसिया स्थित छठ तालाब का अस्तित्व खतरे में है. पिछले करीब 30 वर्षों में भू-माफिया ने तालाब के आधे हिस्से पर कब्जा कर लिया है. 4 एकड़ में फैला तालाब सिकुड़कर 2 एकड़ में आ चुका है. अतिक्रमणकारियों ने आधे हिस्से में कचरा व मिट्टी भरकर मकान खड़ा कर लिया है. लेकिन जिम्मेदार अधिकारी अनजान बने हुए हैं. बाकी हिस्से में कचरा व गंदगी फैली हुई है. यदि यही स्थिति रही, तो छठ तालाब नाम से प्रसिद्ध इस तालाब पर छठ व्रतियों के लिए जगह नहीं बचेगी. स्थानीय निवासी 70 वर्षीय सुदामा पंडित बताते हैं कि तलाब के आसपास रह रहे कुछ लोगों ने कूड़ा-कचरा व मिट्टी डाल तालाब के किनारे की जमीन का अतिक्रमण कर लिया है. बाकी हिस्से पर कुछ दबंगों ने कब्जा कर रखा है.
2300 में से 1102 तालाबों का कहीं पता नहीं
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, धनबाद में कुल 2300 तालाब थे, लेकिन 1102 तालाब अब नक्शे से गायब हो चुके हैं. इसमें मत्स्य विभाग, जिला परिषद, नगर निगम व रेलवे के तालाब शामिल हैं. जिले में अब सिर्फ 1198 तालाब बचे हुए हैं. भू माफियाओं की इन पर भी नजर है. जिला प्रशासन ने यदि अतिक्रमणकारियों के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाया, तो बचे तालाबों का अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा.
अतिक्रमणकारियों को चिह्नित कर जल्द कार्रवाई की जाएगी : सीओ
धनबाद के सीओ प्रशांत लायक ने कहा कि तालाबों की जमीन का अतिक्रमण और वहां अवैध रूप से हो रहे निर्माण को लेकर विभाग सजग है. अतिक्रमणकारियों को चिह्नित कर जल्द ही उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
गिरिडीह
गुम हो गए शहर के कई तालाब, 24 तालाबों का ही अस्तित्व बचा
गिरिडीह नगर निगम क्षेत्र में फिलहाल 24 तालाबों का अस्तित्व बचा हुआ है. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार नगर निगम क्षेत्र में रानी तालाब, लखारी तालाब, बरमसिया तालाब, महादेव तालाब, जागृत तालाब, मानसरोवर तालाब, बुधवा तालाब, शहीद सीताराम उपाध्याय पार्क तालाब, मैगजीनया में हरिजन टोला और ललकी तलाब, जोरबाद तालाब, धोबिया तालाब, चूरचूरवा तालाब, हरिजन टोला तालाब, मोहालीचूहा तालाब, बख्शी तालाब, झरियाडीह तालाब, बुढ़वा आहार तालाब शामिल हैं.
बरगंडा समेत 6 जगहों में बड़े आकार के तालाब थे : कभी शहर के हृदय स्थल में अरगाघाट, पावर हाउस और बरगंडा समेत 6 जगहों में बड़े आकार के तालाब हुआ करते थे. इन तालाबों का अस्तित्व मिटा दिया गया. तालाबों को खत्म करने में बड़े उद्योगपति, तथाकथित नेता और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत है. आलम यह है कि नगर निगम की सूची में इन तालाबों का जिक्र नहीं है. फिलहाल कई तालाबों का अतिक्रमण बदस्तूर जारी है.
देवघर
निमियाबांध तालाब को भू-माफिया की चंगुल से बचाया, फर्जी रजिस्ट्री हुई थी
देवघर नगर निगम शहर के तालाबों को बचाने के प्रति उदासीन है. इसका प्रमाण वार्ड नंबर 11 के पुरंदा मोहल्ले स्थित निमियाबांध तालाब है. इस तालाब पर भूमाफिया की नजर थी. यहां तक कि भू माफियाओं ने तालाब की फर्जी रजिस्ट्री करा ली थी. करीब एक साल पूर्व तालाब में मिट्टी भराने की कोशिश की गई. स्थानीय लोगों ने फर्जी रजिस्ट्री रद्द कर तालाब को बचाने के लिए मंत्री समेत उपायुक्त कार्यालय में आवेदन दिए. उपायुक्त ने फर्जी रजिस्ट्री रद्द कर तालाब के आसपास धारा 144 लगाने का बोर्ड लगवा दिया. लोगों ने मशक्कत कर इस तालाब को बचाया. यह तालाब कभी शहर में जलस्रोत का बड़ा साधन हुआ करता था. पुरनदाहा मोहल्ले में करीब दो सौ घरों को पानी मिलता था. फिलहाल तालाब सूखने के कगार पर पहुंच चुका है. पानी काफी कम है. यह इलाका ड्राईजोन में तब्दील हो चुका है. तालाब पानी से भरा रहने पर आपपास भू जल स्तर बना रहता था. इस तालाब का नवीनीकरण कर जल संरक्षित करने से पानी की किल्लत दूर होगी.
हजारीबाग
8 एकड़ में फैला कृष्णापुरी तालाब अतिक्रमण के कारण डेढ़ एकड़ में सिमटा
1. हजारीबाग में कागज पर हैं 3990 तालाब, सरकारी 1274, निजी 2716
2. हजारीबाग जिले में 1274 सरकारी और 2716 निजी समेत कुल 3990 तालाब हैं.
3. इनमें कई तालाबों के वजूद मिटा दिए गए और कई तालाबों के अस्तित्व पर संकट के बाद मंडरा रहे हैं.
4. इन तालाबों पर भू-माफिया की नजरें गड़ीं और फिर उसमें मिट्टी भरकर मैदान में तब्दील कर दिया गया. बाद में उसे बेच दिया गया. वहीं कई तालाबों के किनारे पर अतिक्रमण कर उसका वजूद संकट में डाल दिया गया है.
5. नगर निगम क्षेत्र अंतर्गत वार्ड नंबर-7 स्थित कृष्णापुरी तालाब दो दशक पहले तक यहां विशाल आकार का तालाब हुआ करता था, जिसका क्षेत्रफल चार 4.5 एकड़ था.
6. साढ़े चार एकड़ में लगभग तीन एकड़ जमीन अतिक्रमणकारियों की भेंट चढ़ गई और तालाब सिकुड़ कर मात्र एक डेढ़ एकड़ में सिमट गई.
7. तालाब के अतिक्रमण को लेकर कई बार शिकायत पर जांच वगैरह की कागजी कार्रवाई भी हुई. यहां तक कि नगर निगम ने एक बार वृहद रूप से मापी वगैरह करके अतिक्रमित क्षेत्र को चिह्नित किया और अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी किया.
हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया
मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया, कई वर्ष हो गए, मामले में कोर्ट का निर्णय नहीं आया है, अभी भी विचाराधीन ही है. इस बीच नगर निगम से योजना पास करा कर बचे हुए तालाब के चारों तरफ पीसीसी रोड और नाली बना कर एक तरह से संकुचित हो चुके तालाब की सीमा तय कर दी गई.
जीर्णोद्धार की योजना
अमृत सरोवर योजना काल में हजारीबाग नगर निगम की ओर से कृष्णापुरी तालाब का जीर्णोद्धार कराने की योजना के तहत तालाब की सफाई कराने के साथ गहरीकरण तथा अन्य कार्य शामिल हैं. इसमें मुख्य रूप तालाब के चारों तरफ लोहे का पोल लगा कर उसमें छह फीट ऊंचाई तक तार की जाली लगाने के अलावा फव्वारा और लाइट की सजावट शामिल है.
अन्य कई तालाब और नदियों पर कब्जा
50 फीट चौड़ी नदी का पाट बन गया 10 फीट का नाला
हजारीबाग शहर के बीचोबीच बहनेवाला कुम्हारटोली नाला कभी 50 फीट चौड़ी नदी थी. अब वह सिमटकर 10 फीट चौड़ा नाला बन चुका है. आसपास जमीन भी बेच दी गई और मकान भी बना लिए गए. इसकी जमीन को लेकर हाई कोर्ट का आदेश 2007 से फाइलों में धूल फांक रहा है. वहां छठ घाट पर भी भू-माफिया कब्जा है. समाजसेवी मनोज गुप्ता ने इसके लिए पीआईएल किया था. हाई कोर्ट के निर्देश पर आनन-फानन में जमीन की मापी कर चिह्नित किया गया, परंतु इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया.
कई तालाबों की हालत दयनीय बनीं हुई है
हजारीबाग स्थित ओकनी तालाब की हालत दयनीय है. आने वाले कुछ वर्षों में इसका अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा. जहां दो तरफ इस तालाब को अतिक्रमण कर सड़क बना दिए गए है वहीं बाकी दो तरफ से अतिक्रमण कर पक्के मकान बना लिए गए हैं.हजारीबाग का धोबिया तालाब की हालत भी किसी से छिपी नहीं है. संत कोलंबा के पास झिंझरिया नाला अब एक लकीर में बदल गया है.हजारीबाग पुलिस लाइन हॉस्पिटल के सामने का तालाब जिसकी बाउंडरी करते समय ही अतिक्रमित भू-भाग को छोड़ कर दीवार खड़ी कर दी गई.
अतिक्रमण कर खड़ी कर दी इमारतेंं
विनोबा भावे विश्वविद्यालय के समीप कभी बहुत चौड़ी नदी हुआ करती थी, परंतु आज नदी ने संकरे नाले का रूप ले लिया है. नदी के किनारे अतिक्रमण कर कई भवन बना लिए गए.