हिमकर श्याम, वरिष्ठ पत्रकार
Lagatar Desk: देवाधिदेव महादेव के भक्तों के लिए महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है. महाशिवरात्रि को लेकर मान्यता है कि इसी दिन महादेव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था. शिव आदिदेव हैं. झारखंड में सदियों से शिव उपासना की परंपरा रही है. यह राज्य पूर्व मध्यकाल या प्रारंभिक मध्य काल में शैव मतावलंबियों का एक प्रमुख केंद्र रहा है. राज्य की जनजातियों में तो शिव का महत्व सबसे अधिक है. शिव की पूजा जनजातीय समाज के लोग अपनी परंपरा एवं लोक संस्कार के आधार पर करते आ रहे हैं. यहां की अधिकांश जनजाति शिव को परिवार के सदस्य के रूप में देखती है. यहां शिवलिंगों और शिवमंदिरों की बहुतायत है. रांची के पंच परगना क्षेत्र में शिव के अनेक प्राचीन मंदिर हैं. बेनीसागर में पुरातत्व विभाग को पांचवीं से सत्रहवीं शताब्दी तक के कई अवशेष मिले हैं. यह भी साक्ष्य मिलता है कि नागवंशी राजाओं के लिए भगवान शिव आस्था के केंद्र रहे हैं. नागवंशी राजाओं के प्रभाव वाले क्षेत्र में कई शिव मंदिर के अवशेष मिलते हैं. राज्य में शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं जो आस्था के बड़े केंद्र माने जाते हैं. घर शिव की नगरी है, तो रांची बाबा पहाड़ी की धरती. आइए, शिवरात्रि के मौके पर इन मंदिरों का करें दर्शन-वर्णन….
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देवघर का बैद्यनाथ धाम
देवघर को बाबा की नगरी कहा जाता है. यह ऐसा पवित्र स्थल है जहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों एक साथ है. यहां स्थित ज्योर्तिलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. इसे कामना लिंग भी कहा जाता है. इस मंदिर का पुनरोद्धार गिद्धौर राजवंश के दसवें राजा पूरमल ने कराया था. यहां शिवलिंग की स्थापना रावण ने की थी इसलिए इसे ‘रावणेश्वर’ महादेव कहते हैं. इस मंदिर के परिसर में और 21 बड़े मंदिर है. इस मंदिर के मुख्यद्वार के पास ही ‘बैजू मंदिर है. एक मान्यता यह भी है कि बैजू नामक एक चरवाहे ने इस ज्योतिर्लिंग की खोज की थी और उसी के नाम पर इस जगह का नाम बैद्यनाथ धाम पड़ा.
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दुमका का बासुकीधाम
दुमका के जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है बाबा बासुकीनाथ धाम. यहां भगवान शिव, बासुकीनाथ के रूप में पूजे जाते हैं. मान्यता है कि जब तक बासुकीनाथ के दर्शन न किए जाएं तब तक देवघर स्थित बाबा बैजनाथ के दर्शन अधूरे ही माने जाएंगे. यह अतिप्राचीन मंदिरों में से एक है. मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में हुई. मंदिर के पास ही एक तालाब स्थित है जिसे वन गंगा या शिवगंगा भी कहा जाता है. बासुकीनाथ में भगवान शिव का स्वरूप नागेश का है.
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गिरिडीह का हरिहर धाम
बाबा हरिहर धाम मंदिर गिरिडीह के बगोदर में स्थित है. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां जो शिवलिंग है, वह 65 मी ऊंचा है. लगभग 25 एकड़ क्षेत्र में फैला हरिहर धाम चारों ओर नदी से घिरा हुआ है. इस शिवलिंगनुमा मंदिर को बनाने में 30 साल लगे थे. मुख्य शिवलिंग ही मंदिर है. इसके अंदर छोटा सा एक और शिवलिंग स्थापित है, जिसकी पूजा की जाती है.
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खखपरता शिवधाम, लोहरदगा
लोहरदगा जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर दूर स्थित खखपरता को शिव नगरी के नाम से भी जाना जाता है. इस गांव में जगह-जगह पर शिवलिंग बिखरे पड़े हैं. 11वीं सदी में बना खखपरता शिवधाम में पूजा का विशेष महत्व है. इस मंदिर का निर्माण बिना नींव खोदे, सीधे पहाड़ी के ऊपरी सतह पर किया गया है. मंदिर में एक मीटर ऊंचाई का एक संकरा द्वार है, जो पूर्वाभिमुख है. गर्भगृह के अंदर शिवलिंग स्थापित है. मंदिर की निर्माण शैली उड़ीसा के देऊल मंदिरों की तरह है जो मध्यकाल में निर्मित हुए थे. मान्यता है कि इस शिव धाम में जलाभिषेक करने वाले भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं.
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कोडरमा का ध्वजाधारी धाम
कोडरमा का ध्वजाधारी धाम भी प्राचीन है. ध्वजाधारी धाम में 777 सीढ़ी चढ़कर बाबा भोलेनाथ के दर्शन होते हैं. कभी यह क्षेत्र बहुत ही घने जंगलों तथा पहाड़-पठार से घिरा था. मान्यता है कि प्राचीन भारत में यहां के ध्वजाधारी पर्वत पर ब्रहा पुत्र कर्दम ऋषि निवास करते थे. यहां ध्वज और त्रिशूल चढ़ाने का विशेष महत्व है. अयोध्या के निर्मोही अखाड़ा से यहां महंत की नियुक्ति की जाती है.
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सतगावां का घोड़सीमर धाम
सतगावां प्रखंड के घोड़सीमर धाम में शिवलिंगों की भरमार है. यह देवघर धाम के नाम से भी प्रसिद्ध है. सकरी नदी के तट पर स्थित यह मंदिर लगभग 2200 सौ वर्ष पुराना है. यहां लगभग एक मीटर की गोलाई वाला चार फीट लंबा शिवलिंग है. समीप ही बटेश्वर नामक स्थान पर इसी आकार का एक अन्य शिवलिंग है. भव्य शिवलिंग श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. पहाड़ पर शिव-पार्वती की प्रस्तर की मूर्तियां विराजमान हैं.
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रांची का पहाड़ी मंदिर
राजधानी रांची में स्थित पहाड़ी मंदिर शिव भक्तों और श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है. शिखर पर विराजमान भगवान शिव पहाड़ी बाबा कहलाते हैं. पहाड़ी मंदिर 300 फीट की ऊंचाई पर है. मंदिर तक पहुंचने के लिए 468 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. 1905 के आसपास पहाड़ी के शिखर पर शिव मंदिर का निर्माण हुआ था. इसे रांची हिल के नाम से भी जाना जाता है. मूल रूप से इसका नाम रिचि बुरु है. ब्रिटिश हुकूमत के समय यह फाँसी टुंगरी में परिवर्तित हो गया था. यहां स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी जाती थी.
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पिठोरिया का शिव मंदिर
पिठोरिया का शिव मंदिर बाजार टांड में स्थित है. यह शिव मंदिर सैकड़ों वर्षों से लोगों का आस्था का केंद्र बना हुआ है. इसे पिठोरिया का पहला मंदिर माना जाता है. इस मंदिर के शीर्ष पर दशानंद रावण की आकृति बनी हुई है. मंदिर की बाहरी दीवारों से लेकर चोटी तक कई देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं. मंदिर के अंदर शिवलिंग, नाग देवता, नंदी, पार्वती, ब्रह्मा, गरुड़ आदि की मूर्तियां हैं. शिवलिंग के ऊपरी हिस्से पर खूबसूरत नक्काशी की गई है. ये प्राचीन वास्तुकला का नायाब उदाहरण है.
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महादानी मंदिर, बेड़ो
बेड़ो प्रखंड स्थित ऐतिहासिक महादानी मंदिर के निर्माण काल को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं. कुछ के अनुसार इसका निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था. कुछ के अनुसार 1048 से 1100 ईसवी के बीच इस मंदिर का निर्माण हुआ. दंत कथाओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने खुद अपने हाथों से महादानी मंदिर की रचना की है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां का पुजारी कोई पंडित न होकर गांव का पाहन है. भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर की अनुकृति में बने महादानी मंदिर में द्रविड़ व नागर शैली का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है.
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आम्रेश्वर धाम, खूंटी
खूंटी के पास स्थित आम्रेश्वर धाम मंदिर को अंगराबाड़ी और मिनी देवघर के नाम से भी जाता है. आम्रेश्वर धाम का स्वयंभू शिवलिंग प्राचीन शिवलिंगों में से एक है. कहा जाता है कि आम के पेड़ के धड़ से यह शिवलिंग निकला है. अंगराबाड़ी का नामकरण जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने आम्रेश्वर धाम किया था. शिव के अतिरिक्त गणेश, हनुमान एवं राम-सीता की मूर्तियां भी यहां स्थापित हैं.
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कैथा शिव मंदिर, रामगढ़
रामगढ़ का कैथा शिव मंदिर आस्था के साथ ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जाना जाता है. गोला-रजरप्पा मुख्य मार्ग कैथा में स्थित इस मंदिर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है. यह मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है. मंदिर की भव्य इमारत बंगाल, राजपूत और मुगल तीनों की मिश्रित कला पर आधारित है. जानकारों के अनुसार रामगढ़ महाराज ने 1670 में इसका निर्माण कराया था. इस मंदिर की विशेषता है कि यहां एक साथ दो शिवलिंग की पूजा होती है. मुख्य शिवलिंग 12 फीट की ऊंचाई पर है. माना जाता है कि एक शिवलिंग स्थापना काल से ही मंदिर में मौजूद है और दूसरा बाद में स्थापित किया गया. मंदिर को ले कर लोगों में यह विश्वास है कि जो भी यहां सच्चे मन से मन्नत मांगता है, वह निश्चित तौर पर पूरी होती है.
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टांगीनाथ धाम, गुमला
गुमला से करीब 75 किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच स्थित है. कहा जाता है कि टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने यहां शिव की घोर उपासना की थी. यहीं उन्होंने अपने परशु यानी फरसे को जमीन में गाड़ दिया था. इस फरसे की ऊपरी आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती-जुलती है. यहां श्रद्धालु इस फरसे की पूजा के लिए आते हैं. फरसे को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम टांगीनाथ धाम पड़ा है.
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