Chandil / Ichagarh : पिछले तीन दिन से जारी बारिश रविवार को थमी जरूर है, लेकिन चांडिल डैम के डूब क्षेत्र में आने वाले गांवों में अब भी तीन फीट तक पानी भरा हुआ है. जिसके कारण डैम विस्थापितों के कई परिवारों ने पातकुल पुल पर तंबू डाल दिया है और पानी उतरने का इंतजार कर रहे हैं. गौरतलब है कि चांडिल डैम का जलस्तर बढ़ जाने के कारण शनिवार को ईचागढ़, कुकड़ू व नीमडीह के दर्जनों विस्थापित गांव जलमग्न हो गया था. चांडिल डैम का जलस्तर घटने के बावजूद गांवों से पानी नहीं निकला है और विस्थापितों की परेशानी बनी हुई है.
जायदा शिव मंदिर जाने का सड़क मार्ग भी डैम के पानी के कारण डूबा
चांडिल डैम का फाटक खुल जाने से चांडिल के प्राचीन कालीन जायदा शिव मंदिर का सड़क मार्ग से सीधा संपर्क कट गया है. एनएच 33 को जायदा शिव मंदिर से जोड़ने वाली पुलिया डूब जाने के कारण श्रद्धालु मंदिर तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. यदि नदी का जलस्तर नहीं घटा तो कल यानी दूसरी सोमवार को श्रद्धालु जायादा शिव मंदिर में भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक करने से वंचित रह जाएंगे.
बारिश रुकने और गेट खोले जाने से डैम का जलस्तर 1 मीटर घटा
पिछले तीन दिनों से हो रही लगातार बारिश थमने और चांडिल डैम के 13 रेडियल गेट में से 9 रेडियल गेट को खोल दिए जाने के बाद चांडिल डैम के जलस्तर में करीब 1 मीटर की कमी आई है. रविवार दोपहर 3 बजे तक चांडिल डैम का जलस्तर 181.95 मीटर पर पहुंच गया है. वहीं चांडिल डैम के 9 रेडियल गेट को 4-4 मीटर खोल दिया गया है. चांडिल डेम का 9 रेडियल गेट 4-4 मीटर खोलने से सुवर्णरेखा नदी उफान पर आ गई है. वही चांडिल डैम का जलस्तर घटने से ईचागढ़ समेत दर्जनों गांव में घुसे डैम के पानी में कमी आई है. जिससे विस्थापितों को गांवों से पानी निकलने की आस जगी है.
रोजी रोजगार के लिए ईचागढ़ नहीं छोड़कर जाना चाहते विस्थापित
ईचागढ़ में हर साल चांडिल डैम का पानी बढ़ने से गांव में पानी घुस जाता है, जिससे विस्थापितों के घरों और उनमें रखे सामानों को काफी क्षति पहुंचती है. उसके बावजूद ईचागढ़ के विस्थापित अपने इन कच्चे-पक्के घरों को छोड़ना नहीं चाहते. इनमें से कई विस्थापितों को मुआवजा व पुनर्वास की सुविधा मिल चुकी है, लेकिन रोजी-रोजगार के लिए विस्थापित ईचागढ़ गांव में ही डेरा डाले हुए हैं. विस्थापितों का कहना है चार दशक पहले चांडिल डैम का निर्माण हुआ. ओने-पौने दाम पर जमीन ले ली गई. साथ ही विस्थापितों को नौकरी भी नहीं मिली, केवल नाम के लिए कुछ लोगों को नौकरी दे दी गई. विस्थापित परिवार अपने रोजी-रोजगार को लेकर अपने गांव में ही जान जोखिम में डालकर डेरा डाले हुए हैं. विस्थापित अपने गांव में रहकर खेतीबाड़ी, मछली पकड़ने, दुकानदारी कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. सरकार की ओर से विस्थापितों को अब तक संपूर्ण मुआवजा व नौकरी नहीं दी गई है.