Soumitra Roy
भारत की अर्थव्यवस्था दिन-ब-दिन बदहाली की तरफ बढ़ती जा रही है. लोग कंगाल होते जा रहे हैं. गरीब और गरीब होता जा रहा है. लेकिन दिखाया यह जा रहा है कि सब चंगा है और अब कुछ ही दिनों में हम महाशक्ति बनने वाले हैं. लेकिन बहुत कम लोगों को ही इसकी चिंता है. कहीं न कहीं इकॉनमी का अल्पज्ञान और बाजार की चमक-दमक उन्हें उलझाती है.
देश का औद्योगिक उत्पादन अक्टूबर के त्योहारी सीजन में सिर्फ 2% बढ़ा
राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान (NSO) ने दो दिन पहले औद्योगिक उत्पादन के चौंकाने वाले आंकड़े दिए, लेकिन किसी का ध्यान नहीं गया. आंकड़े कै मुताबिक देश का औद्योगिक उत्पादन अक्टूबर के त्योहारी सीजन में भी सिर्फ 2% बढ़ा. यह बढ़ोतरी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में थोड़े इजाफे के कारण रही. पूंजीगत उत्पादों का निर्माण (निवेश का सूचक) 1.1% सिकुड़ गया है. अक्टूबर में ही उपभोक्ता सामग्री का उत्पादन 6.1% सिकुड़ा है. फैक्ट्री उत्पादन अगस्त के बाद 3.1% गिरा है.
नौकरियां 5 करोड़ से 2.50 करोड़ पर आ गई
विश्व बैंक के आंकड़े के मुताबिक जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का हिस्सा 15 से घटकर 12% पर आ गया है और वर्ष 2017 के बाद से इस सेक्टर में नौकरियां 5 करोड़ से 2.50 करोड़ पर आ गई हैं. यानी 2.50 करोड़ लोग बेरोजगार हो गये. जो बेरोजगार हुए उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने में किसी को दिलचस्पी नहीं.
महंगाई का ग्राफ नीचे नहीं उतर रहा
रूपया की स्थिति सबसे खराब है. एशिया में वर्स्ट परफॉर्मिंग करेंसी बन गया है. यही कारण है कि गोल्डमैन सैक्स और नाम्यूरा दोनों ने भारत की रोटिंग घटा दी है. विदेशी निवेशक पिछले वित्तीय तिमाही में 4 लाख डॉलर निकाल चुके हैं. लेकिन हमें इस भ्रम में रखा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था में कोई दिक्कत नहीं है.
अलबत्ता किसे फ़र्क़ पड़ता है. महंगाई का ग्राफ नीचे नहीं उतर रहा. देश 2022 में जा रहा है. यकीनन ये कसौटी का साल है. राजनीतिक और आर्थिक दोनों रूपों में. अगर अगले एक साल में हालात नहीं सुधरे तो समझें सब ख़त्म. कहीं न कहीं हम सभी को उसी का इंतज़ार है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.