Surjit Singh
सेंट्रर फॉर मोनिटरी इकोनॉमी (सीएमआई) की ताजा सर्वे रिपोर्ट बताती है कि मोदी राज में बेरोजगारी के हालात कोरोना महामारी से भी ज्यादा बड़ी महामारी साबित होने वाले हैं. पिछले पांच साल में देश में बेरोजगारी की स्थिति पहले खराब हुई और अब और ज्यादा खराब होती जा रही है. जो आंकड़े सामने आये हैं, वह भयावह हैं. कोरोना महामारी की चपेट में आने पर आप अस्पताल जा सकते हैं, लेकिन बेरोजगारी की महामारी से निकलने का कोई रास्ता बनाने में मोदी सरकार फेल रही है.
सीएमआई ने सितंबर 2016 और अगस्त 2021 के हालात की तुलना की है. जो स्थिति सामने आयी है, वह हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है. लेकिन हमारी सरकार तो हिन्दू-मुसलिम, राष्ट्रवाद और अंधभक्ति में डूबी है. उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता और उनके समर्थक इसमें भी गर्व तलाश रहे हैं. हम यहां खराब हालात के पांच मानकों को बता रहे हैं.
काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी, काम घटा
हमारे देश में काम शुरू करने वालों की संख्या की गणना उम्र के हिसाब से करते हैं. 15 साल से अधिक उम्र वाले को काम करने के लायक उम्र मानी जाती है. सीएमआई के आंकड़े के अनुसार सितंबर 2016 की तुलना में अगस्त 2021 में 15 साल से अधिक उम्र के लोगों की आबादी में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. लेकिन नौकरी में 05 प्रतिशत की कमी आ गयी है. इतना ही नहीं नौकरी करने वाले लोगों की संख्या में 38 प्रतिशत की कमी आयी है.
नौकरी मांगने वालों में बेरोजगारी दर 50 प्रतिशत
आंकड़े के मुताबिक सितंबर 2016 में अगर 100 लोग नौकरी मांग रहे थे, तो उनमें से 68 लोगों को नौकरी मिल जाती थी. यानी 32 लोगों को नौकरी नहीं मिलती थी. लेकिन सितंबर 2021 में स्थिति बहुत खराब हो गयी है. आज अगर 100 लोग नौकरी मांग रहे हैं, तो उनमें से 50 लोगों को ही नौकरी मिल पा रही है. 50 लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है. मतलब नौकरी मांगने वालों की बेरोजगारी दर 50 प्रतिशत हो गयी है.
पढ़-लिख कर भी नौकरी नहीं मिलती
वर्षों से हमें सिखाया जाता रहा है. अच्छी पढ़ाई-लिखाई करके ही अच्छी नौकरी हासिल की जा सकती है. लेकिन अब यह नियम भी काम नहीं आ रहा है. आप जितना भी पढ़ लिख लो, नौकरी मिलनी मुश्किल है. सीएमआई के ताजा आंकड़े बताते हैं कि सितंबर 2016 में अगर 100 ग्रेजुएट लोगों को काम मिल रहा था, तो अब अगस्त 2021 में 91 लोगों को ही नौकरी मिल पा रही है. नौकरी की कमी का इसका असर शिक्षा पर भी पड़ा है. पांच साल पहले अगर काम करने वाले 100 लोग ग्रेजुएशन कर रहे थे, तो अब सिर्फ 98 लोग ही ग्रेजुएशन कर रहे हैं. मतलब 15 साल से अधिक उम्र वाले लोगों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन ग्रेजुएशन करने वाले लोगों की संख्या में कमी आ गयी है.
मासिक वेतन वाली नौकरी में भारी कमी
सैलरी (मासिक वेतन) वाली नौकरी बहुत कम हो गयी है. आंकड़े के मुताबिक सितंबर 2016 में अगर 100 लोगों को सैलरी वाली नौकरी मिल रही थी, तो सितंबर 2021 में यह घट कर 91 हो गयी है.
शहरी रोजगार में 50 प्रतिशत की कमी
रोजगार में अब उल्टी गंगा बहने लगी है. उदारीकरण के बाद विकसित और विकासशील देशों में लोगों की रुचि खेती में कम होती गयी औऱ नौकरी में बढ़ी. लोग गांव से शहर की ओर जाने लगे. इससे लोगों को जीवन स्तर ऊपर उठा. खेती पर निर्भर परिवार के कुल सदस्यों संख्या कम होने से गांवों में भी जीवन स्तर में सुधार आया. लोग गरीबी रेखा से बाहर आयें. लेकिन अब हालात अलग है. अब शहरों से पलायन तेजी से हो रहा है. यानी रिवर्स माईग्रेशन.
सीएमआई के आंकड़े के अनुसार सितंबर 2016 में 100 लोग खेती में काम कर रहे थे तो फैक्टरी या कंपनी में 37 लोग. अब अगस्त 2021 का आंकड़ा बताता है कि खेती में काम करने वालों की संख्या 105 हो गयी है और फैक्टरी या कंपनी में काम करने वालों की संख्या सिर्फ 19 रह गयी है. मतलब शहरी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या आधी रह गयी है.