Faisal Anurag
क्या कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी कांग्रेस में शामिल होने जा रहे हैं. इन दोनों नेताओं की राहुल गांधी से मुलाकात की खबरें तो यही इशारा कर रही हैं. द क्विंट की खबर बताती है कि कन्हैया कुमार और राहुल गांधी की मुलाकत इसी मंगलवार को हुई है. इस मुलाकात के बाद यह लगभग तय बताया जा रहा है कि कन्हैया और जिग्नेश दोनों ही कांग्रेस में जाने का फैसला ले चुके हैं. 2016 के बाद देश में तीन युवा नेता मीडिया के आंख का तारा बन गए थे. कन्हैया और जिग्नेश के साथ हार्दिक पटेल की तिकड़ी की देशभर में पहचान इसी दौर में बनी. हार्दिक पटेल ढाई साल पहले ही कांग्रेस में शामिल हो गए थे और इस समय गुजरात प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. कन्हैया ने 2019 का लोकसभा चुनाव बिहार के बेगूसराय से लड़ा था और हाईप्राफाइल बने इस चुनाव कर खूब चर्चा हुई थी. हालांकि वे चुनाव हार गए. 2017 में जिग्नेश मेवानी गुजारात विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के बतौर लड़कर जीत हासिल की थी.
प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने की खबरों के बाद से ही यह चर्चा जोरों से थी कि देर सबेर देश में पहचान बना चुके युवा नेताओं के लिए कांग्रेस के दरवाजे खोल दिए जाएंगे.राहुल गांधी के नजदीक के युवा नेता का कांग्रेस से पलायन की घटनाओं के बीच उनका बयान आया था कि देश में ऐसे अनेक लोग हैं, जो नरेंद्र मोदी से डरते नहीं हैं. राहुल ने यह भी कहा था कि ऐसे लोगों को कांग्रेस में शामिल होने का निमंत्रण हैं. जो डरते हैं और लड़ नहीं सकते वे कांग्रेस को छोड़कर जाने के लिए स्वतंत्र हैं. कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं को रोकने का भी राहुल गांधी ने कभी प्रयास नहीं किया. केवल सचिन पायलट को मनाने का प्रयास हुआ था. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मिलकर सचिन पायलट के विद्रोह की आग को ठंडा किया.
कन्हैया कुमार और जिग्नेश दोनों वामपंथी पृष्ठभूमि से उभरे. कन्हैया तो सीपीआई की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य भी हैं. पिछले तीन माह से जारी चर्चा के बावजूद कन्हैया ने इस सवाल पर रहस्यमयी चुप्पी साध रखी है.सीपीआई के महासचिव डी. राजा से जब खबरों के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में उन्होंने भी केवल अटकले सुन रखी हैं. राजा ने कहा मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि वह इस महीने की शुरुआत में हमारी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मौजूद थे. उन्होंने बात की और विचार-विमर्श में भाग लिया. लेकिन राजा ने भी अटकलों का खंडन नहीं किया. सवाल है कि जिस सीपीआई ने कन्हैया कुमार को महत्वूपर्ण नेता बनाया, अब उसी पार्टी को वे क्यों छोड़ रहे हैं? कन्हैया को जेएनयू विवाद के बाद देश से समर्थन मिला था और उनके ‘लाल सलाम और जय भीम’ के नारे ने अंबेडकरवादियों और वामपंथियों के सलहकार का सपना गढ़ा था.
दरअसल प्रशांत किशोर के साथ 2020 में भी बिहार में कन्हैया के साथ मिल कर एक मोर्चा बनाने की खबरों को लेकर अटकलें जोरों पर थीं. उस समय प्रशांत किशोर नीतीश कुमार से जुदा होकर बिहार की राजनीति में हस्तक्षेप करने का इरादा रखते थे. लेकिन बिहार विधानसभा के चुनावों में प्रशांत किशोर ने भाग नहीं लिया. कन्हैया कुमार ने नागरिकता कानून और एनपीआर के खिलाफ बिहार के सभी जिलों की यात्रा की. उनकी सभाओं में जबरदस्त भीड़ उमड़ी और बिहार की राजनीति में वे सेंटर स्टेज बन गए. 2019 के लोकसभा चुनाव के समय ही राजद के साथ कन्हैया के मतभेद बढ़ गए थे और विधानसभा में महागठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव ने मंच शेयर नहीं किया.
कांग्रेस नेता राहुल गंधी भाजपा आरएसएस के खिलाफ तनकर खड़े होने का साहस दिखा रहे हैं. लेकिन कांग्रेस की चुनौती सिर्फ इतनी भर नहीं हैं. आक्रामक आर्थिक नीति के दौर में जब उसका मानवीय चेहरा पूरी तरह धुमिल हो कर कॉरपारेट नियंत्रण की भयावहता की और तेजी से अगसर है कैसे निपटेगी. हालांकि अब कांग्रेस निजीकरण या फिर एकाधिकारवादी पूंजीनिवेश को लेकर कोई अलग नजरिया नहीं अपना सकी है. दरअसल नरसिंह राव और मनमोहन सिंह ने जिस आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू किया था.
वही अब फलफूल कर पूरी तरह परवान है. श्रमिकों और किसानों का आंदोलन जहां इस आक्रामक आर्थिक नीति के खिलाफ है, वहीं कांग्रेस इसे लेकर दुविधाग्रसत ही है. ऐसे में मेवानी या कन्हैया दोनों के लिए इन नीतियों की पैरोकारी क्या होगी यह देखना दिलचस्प होगा. सीपीआई छोड़ कर कुमार मंगलम जैसे नेता भी कांग्रस में शामिल हुए थे. तब इंदिरा गांधी के राष्ट्रीयकरण वाले समाजवाद का दौर था. लेकिन जल्द ही मोहन कुमारमंगलम जैसे नेता भी कांग्रेस संस्कृति का हिस्सा बन गए थे. क्या कन्हैया उसी इतिहास को तो दोहराने नहीं जा रहे ? लोग तो सवाल पूछेंगे कि आखिर कामरेड आप की ‘लालसलाम जय भीम’ वाली राजनीति का क्या होगा?