Dr. Santosh Manav
वही हुआ जो गांधी परिवार की इच्छा थी. सोनिया-राहुल की चाहत हो और कांग्रेस के नेता उस चाहत का ‘सम्मान’ नहीं करें, यह कैसे हो सकता है? वोटरों ने ‘साहब’ के इशारे को समझा और मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुन लिए गए. उन्होंने भारी अंतर से शशि थरूर को परास्त किया. थरूर परास्त तो उस दिन ही हो गए थे, जिस दिन दिग्विजय सिंह ने कहा था कि खड़गे उनके नेता हैं और वे उनके खिलाफ चुनाव नहीं लड़ सकते. यह सब दिग्विजय सिंह नहीं बोल रहे थे! जुबान उनकी थी और शब्द किसी और के. जो राजनीति को समझते हैं, वे जानते हैं कि राजनीति में यह सब बहुत सामान्य बात है. इसलिए जब कोई नेता बोले, तो सोचिएगा कि जुबान इनकी है, तो शब्द किसके हो सकते हैं? ऐसा सोचेंगे, तो बयान के मायने सही पकड़ पाएंगे.
साहब का इशारा तब भी समझ में आया, जब मल्लिकार्जुन खड़गे के स्वागत के लिए विधानसभाओं में कांग्रेस के नेता, प्रदेश अध्यक्ष आदि खड़े मिले, जबकि थरूर को पूछने वाला कोई नहीं था. समझ तब भी आया, जब खड़गे ने कहा कि गांधी परिवार कांग्रेस के लिए अपरिहार्य है. सवाल उठे तो खड़गे को कहना पड़ा कि वे ‘ऑफिसियल’ उम्मीदवार नहीं हैं. किंतु-परंतु के बावजूद मान लेना चाहिए कि गांधी परिवार की पहली पसंद अशोक गहलोत थे. गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं गंवाना चाहते थे. सो, विधायकों के बवाल के बहाने अपनी पसंद जाहिर कर दी. दूसरी पसंद दिग्विजय सिंह थे. सलाहकारों ने साहब को समझा दिया कि दिग्गी बनेंगे, तो हिंदू-मुस्लिम वाली बीजेपी की लाइन मजबूत होगी. ऐसे में आधी रात के बाद का फैसला था- मल्लिकार्जुन खड़गे. रात को निर्णय हुआ और सुबह दिग्विजय सिंह खड़गे को अपना नेता बता रहे थे. उनके खिलाफ चुनाव लड़ने में खुद को असमर्थ बता रहे थे. खैर, यह सब बीस दिन पुरानी बात है, आज की बात यही है कि अस्सी पार के खड़गे डेढ़ सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष हैं. ऐसे भी कह सकते हैं कि पार्टी के डेढ़ सौ साल के इतिहास में छठवें निर्वाचित अध्यक्ष होंगे.
मुद्दों की जगह जाति-धर्म-समूह-वर्ग की प्रधानता वाली राजनीति में कांग्रेस, माफ कीजिएगा सोनिया-राहुल गांधी अब कह पाएंगे कि उन्होंने दलित अध्यक्ष दिया. इससे पहले बिहार के जगजीवन राम 1970 से 72 तक कांग्रेस अध्यक्ष थे. सोनिया-राहुल के पास इठलाने के लिए सिर्फ यही है. दूसरा यह है कि उन्हें पता है कि खड़गे उनसे बाहर नहीं हैं. खड़गे हर फैसले से पहले ‘आका’ से पूछ लेंगे या वही करेंगे, जो आका कहेंगे. यानी अध्यक्ष तो होंगे खड़गे और सिक्का राहुल के नाम का चलेगा. तीसरा यह कि बीजेपी राहुल पर परिवारवाद का आरोप अब मजबूती से नहीं लगा पाएगी.
ऐसा नहीं है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के पास खुद का कुछ नहीं है. वे पढ़े-लिखे हैं. बीए-एल. एल. बी हैं. वकालत कर चुके हैं. लगातार नौ बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं. 2009 और 2014 में लोकसभा के लिए चुने गए. 2019 में हार गए, तो कांग्रेस ने राज्यसभा में भेज दिया. मनमोहन सिंह की सरकार में श्रम और रोजगार फिर रेल मंत्री रहे. अभी राज्यसभा में कांग्रेस के नेता हैं. दस करोड़ से ज्यादा की संपति के स्वामी हैं. पर सबसे बड़ी बात है कि सोनिया-राहुल गांधी के अनुकूल हैं.
अब जब मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष हो गए हैं, तो यह जान लेना मुनासिब होगा कि खड़गे कांग्रेस का क्या करेंगे? मल्लिकार्जुन खड़गे उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जहां सक्रियता की बहुत गुंजाइश नहीं रहती. पर यह कहना नाइंसाफी होगी कि वे कुछ नहीं करेंगे या नहीं कर पाएंगे. वे अच्छे योजनाकार [प्लानर] माने जाते हैं, तो मान सकते हैं कि वे वोटों के जुगाड़ के लिए बढ़िया योजना बना सकते हैं. यह अलग बात है कि योजना सफल होगी या नहीं? इसलिए कि योजना बनाना और उसे सफल करना या करवाना अलग-अलग बात है. खड़गे के विपक्षी नेताओं शरद पवार, ममता बनर्जी आदि से मधुर संबंध हैं, तो मान सकते हैं कि राहुल गांधी को पीएम पद के लिए विपक्षी उम्मीदवार बनाने में वे सहायक हो सकते हैं.
खड़गे कर्नाटक से आते हैं, तो यह भी मान सकते हैं कि दक्षिण भारत में कांग्रेस के आधार वोट में एक-दो प्रतिशत की बढ़ोतरी करवा देंगे. इससे ज्यादा वे क्या कर पाएंगे? यह भी सच है कि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जताई है. लेकिन सब को पता है कि आज की तारीख में कांग्रेस के आसार नहीं हैं और वहां राहुल पीएम इन वेटिंग हैं. निचोड़ यह कि खड़गे से यह उम्मीद करना नाइंसाफी होगी कि वे जादू की छड़ी घुमाएंगे और कांग्रेस सत्ता में आ जाएगी. इस चुनाव के जरिए यह बताने की कोशिश हुई है कि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र है. लेकिन, यह आंख में धूल डालने [आईवाश] की तरह है. हुआ वही, जो चाहा गया. क्या यह कहा जा सकता है कि चुनाव से गांधी परिवार तटस्थ रहा? क्या गड़बड़ी नहीं हुई? आरोप खुद थरूर लगा रहे हैं. कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्रवादी वही लोग हैं, जिन्होंने शशि थरूर को वोट दिए. वे कितने हैं, यह आप जान चुके. अधिकतर तो जो हुकुम मेरे आका वाले लोग हैं. ऐसे कितने लोग हैं, इसका अक्श मल्लिकार्जुन खड़गे को मिले वोटों में देख सकते हैं. इसलिए खड़गे साहब को शुभकामना जरूर दीजिए पर किसी खुशफहमी में नहीं रहिए.