बनके तेरा साया मैं तुझको थाम लूं…
उठ के रब से पहले मैं तेरा नाम लूं…
मां..ओ मेरी मां…
मैं तेरा लाडला….
Ranchi : उपरोक्त गाने के बोल इस बेटे की कहानी पर बिल्कुल सटीक बैठती है. क्योंकि ये बेटा दीपांशु भले ही नाबालिग है, लेकिन अपनी मां के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है. लेकिन क्या कोई बेटा अपनी मां के लिए किडनी बेचने को तैयार होगा. सबका जवाब तो ना ही होगा. लेकिन दीपांशु मां की खातिर ऐसा ही करने चला था. बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ गया. ऐसे में अचानक मां के कंधों पर बड़ी जिम्मेवारी आ गयी. फिर भी मां ने दीपांशु को कठिन परिस्थितियों में मजदूरी करके पाला, उसे कमाने लायक बनाया. दीपांशु भी बचपन से मां के संघर्ष को देख रहा था. इसलिए मां का बोझ कम करने के लिए गया से रांची आ गया. रांची में दीपांशु दिहाड़ी मजदूरी का काम करने लगा. सोचा कि पैसे कमाके जल्दी ही मां के लिए भेज देगा.
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मां का पैर टूटते ही
मगर किस्मत का खेल भी अजीब है. दीपांशु के रांची आते ही मां का पैर टूट गया. आर्थिक तंगी से जूझ रही मां अपना इलाज भी नहीं करा पा रही थी. इधर रांची में दीपांशु के पास भी इतने पैसे नहीं थे कि मां को इलाज के लिए भेज सके. ऐसे में परेशान दीपांशु ने एक बड़ा और कड़ा फैसला लिया. वह रांची के एक निजी अस्पताल गया. वहां उसने अपनी किडनी के लिए ग्राहक खोजना शुरू किया. अस्पताल में दीपांशु लोगों से जाकर पूछने लगा, क्या कोई किडनी खरीदना चाहता है. तो वो उसे बेचने के लिए तैयार है. वहां मौजूद कुछ युवकों को जब इसकी जानकारी लगी, तो उन्होंने उसे समझाया, साथ ही बताया कि किडनी बेचना गैरकानूनी है. इस पर दीपांशु ने कहा कि उसे मां के इलाज के लिए पैसे की बहुत जरूरत है. फिर युवकों ने रिम्स के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉ. विकास कुमार से संपर्क किया.
किडनी बेचने की बात सुनकर कचोटने लगा मन
डॉ. विकास ने कहा कि नाबालिग युवक द्वारा किडनी बेचने की जानकारी मेरी टीम के लोगों से मुझे मिली है. यह काफी अफसोसजनक है. मैंने दीपांशु को समझाया कि तुम्हें किडनी बेचने की जरूरत नहीं है. मैं और मेरी पूरी टीम मदद करने के लिए तैयार है. डॉ. विकास ने कहा कि यदि दीपांशु अपनी मां को रिम्स लाता है तो हम सब लोग मिलकर इलाज करेंगे. इलाज के अतिरिक्त दवाओं का भी इंतजाम करेंगे.