Ranchi : कोरोना के बदलते रूप से लोग डरे हुए हैं. दरअसल कोरोना के नये वैरिएंट ओमीक्रॉन ने विश्व की चिंता बढ़ा दी है. दक्षिण अफ्रीका समेत कई देशों में नये वैरिएंट के मरीजों के मिलने के बाद से वैज्ञानिकों की भी चिंता बढ़ी हुई है. वहीं भारत में ओमीक्रॉन के चार मामले सामने आ चुके हैं. देश में ओमीक्रॉन के दस्तक के बाद झारखंड स्वास्थ्य विभाग भी अलर्ट पर है. लेकिन राज्य में फिलहाल जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन की व्यवस्था नहीं है. अभी वैरिएंट का पता लगाने के लिए सैंपल आईएलएस लैब भुवनेश्वर भेजा जाता है.
गौर करने वाली बात है कि इस मशीन की खरीददारी के लिए रिम्स ने अपनी जीबी से करीब 8 माह पहले ही प्रस्ताव को स्वीकृत कर दिया था, बावजूद अब तक रिम्स मशीन नहीं खरीद सका है.
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दो मशीन के खरीद की स्वास्थ्य मंत्री ने भरी थी हामी
वहीं 30 नवंबर को आयोजित रिम्स कि 53वीं शासी परिषद की आपात बैठक के दौरान स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा था कि कोरोना के वैरिएंट की जांच के लिए दो जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन की खरीदारी होगी. एक मशीन रिम्स और एक मशीन एमजीएम जमशेदपुर में लगाया जाएगा.
रैंडम सैंपलिंग के जरिए होती है सिक्वेंसिंग
माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एक्सपर्ट डॉक्टर का कहना है कि कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन कितना संक्रामक या घातक होगा, इसकी जानकारी सिक्वेंसिंग के जरिए ही होती है. इसके लिए कोरोना संक्रमित व्यक्ति के सैंपल की सिक्वेंसिंग के लिए रैंडम सैंपलिंग किया जाता है.
वैरिएंट का जल्द पता लगने पर ही लग सकेगा रोक
झारखंड में सिक्वेंसिंग की व्यवस्था होने पर कोरोना के वैरिएंट का पता जल्द लगाया जा सकता है. साथ ही एहतियाती कदम उठाते हुए इसके प्रसार को भी रोका जा सकता है. जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए सैंपल आईएलएस लैब भुवनेश्वर भेजा जाता है. रिपोर्ट आने में 1 महीने से भी अधिक समय लग जाता है, यदि राज्य में सिक्वेंसिंग की व्यवस्था होती तो 1 सप्ताह में रिपोर्ट मिल जाता और इसके प्रसार पर लगाम भी लगता. वहीं उपायुक्त के निर्देश पर जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए 28 संक्रमितों के सैंपल को आईएलएस लैब भुवनेश्वर भेजा गया है.
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