New delhi : भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोविड-19 की वैक्सीन पर काम चल रहा है. अब तक कुछ सफलता जरूर मिली है लेकिन वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर चिंता भी जतायी जा रही है, क्योंकि यह टीका कोई जादू का घोल नहीं होगा. हर दवा की तरह इसके भी साइड इफेक्ट हो सकते हैं. जरूरी नहीं कि यह हर व्यक्ति पर बुरा असर करे, लेकिन कुछ खास किस्म की एलर्जी रखने वालों को इससे खतरा हो सकता है.
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सिनोवैक
ब्राजील में चीन की कंपनी सिनोवैक की वैक्सीन पर ट्रायल चल रहे थे जिन्हें 9 नवंबर को रोकना पड़ा. ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बेहद गंभीर घटना को इसके लिए जिम्मेदार बताया है लेकिन इस पर और जानकारी नहीं दी है. इन ट्रायल के दौरान एक व्यक्ति की मौत होने के बाद से इस पर विवाद खड़ा हुआ.
जॉन्सन एंड जॉन्सन
11 अक्टूबर को जॉन्सन एंड जॉनसन को भी अपने ट्रायल रोकने पड़े. इस वैक्सीन पर चल रहे शोध में हिस्सा लेने वाले 60 हजार वॉलंटियर में से एक की तबियत बिगड़ने के बाद यह फैसला लिया गया. हालांकि जॉन्सन एंड जॉन्सन ने यह भी बयान दिया कि यह ब्रेक भी उनके शोध का ही हिस्सा है.
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एली लिली
यह वही कंपनी है जिसकी एंटीबॉडी कॉकटेल अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को उनके इलाज के दौरान दी गयी थी. ट्रंप ने इसकी काफी तारीफ भी की थी लेकिन दूसरे चरण की टेस्टिंग के बाद इसे भी रोका गया. कंपनी ने सुरक्षा कारणों को इसकी वजह बताया था.
ऑक्सफोर्ड एस्ट्रा जिनेका
इस वैक्सीन से काफी ज्यादा उम्मीदें लगाई गयी थीं. भारत में भी इस पर ट्रायल चल रहे थे. लेकिन टेस्टिंग के दौरान एक वॉलंटियर ने कुछ अस्पष्ट लक्षणों के बारे में बताया, जिसके बाद ट्रायल को रोकना पड़ा.
बायोनटेक+फाइजर
जर्मन कंपनी बायोनटेक और अमेरिकी कंपनी फाइजर ने दावा किया है कि उसने तीसरे चरण की टेस्टिंग को सफलतापूर्वक पूरा किया है और उन्हें 90 फीसदी से ज्यादा नतीजा मिला है. इस शोध में 43 हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया और 28 दिनों में 93 फीसदी लोग वायरस से सुरक्षित पाए गए.
स्पुतनिक
रूस की वैक्सीन स्पुतनिक शुरू से ही विवादों में रही, लेकिन फाइजर की खबर आने के बाद राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि उनकी वैक्सीन ने भी 90 फीसदी का असर दिखाया. उन्होंने कहा कि रूस में बनी हर वैक्सीन विश्वसनीय है. स्पुतनिक वैक्सीन पर भारत में भी टेस्ट किया जा रहा है.
लैब से बाजार आने में कितना समय
कोरोना वायरस से निपटने के लिए सब कंपनियां आनन फानन में नतीजों तक पहुंचने की कोशिश में तो लगी हैं लेकिन कोई भी वैक्सीन कितनी कारगर है यह समझने में सालों लगता है. बायोनटेक और फाइजर के टीके को लेकर भी अभी यह पता नहीं है कि अलग अलग लोगों पर इसके क्या अलग अलग असर देखने को मिलेंगे. यूरोपीय संघ में जनवरी 2021 से लोगों को वैक्सीन देने की बात की जा रही है. लेकिन पहले वैक्सीन किसे मिलेगी, इस पर नियम तय होना बाकी है. अगर जनवरी से टीका बाजार में आता भी है, तो भी पूरी जनता तक पहुंचने में साल भर लग सकता है.
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