Ranchi:1965 में योहेई सासाकावा अपने पिता के साथ दक्षिण कोरिया के एक कुष्ठ उपचार केंद्र में गए. वहां कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों द्वारा सामना किये जाने वाले भेदभाव को देखकर कुष्ठ रोग उन्मूलन के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. पिछले 40 सालों से विश्व भर में कुष्ठ उन्मूलन के लिए वे काम कर रहे हैं. उनकी इस सेवा भावना को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने उन्हें सद्भावना राजदूत घोषित किया है. पिछले 3 साल से कोरोना महामारी की वजह से उनका अभियान धीमा हो गया था. महामारी का दौर खत्म हुआ तो वे भारत पहुंचे. शनिवार को झारखंड की राजधानी रांची में उन्होंने संवाददाता सम्मेलन के दौरान कुष्ठ रोगियों के लिए चलाई जा रही योजना और इसके नियंत्रण को लेकर जानकारी दी.
पिता के महिला मित्र को कुष्ठ रोग के कारण एकांत में रहने के लिए भेजा
83 साल के योहेई ने कहा कि पिता रयोइची की एक महिला मित्र को कुष्ठ रोग था. वो उनके घर के पास ही रहती थीं. अचानक वो गायब हो गयी. काफी खोजबीन के बाद पता चला कि उन्हें इस रोग की वजह से एकांत में रहने के लिए भेज दिया गया है. इस घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. जिसके बाद योहेई ने कुष्ठ रोगियों के लिए काम करने का संकल्प लिया.
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एमडीटी से कुष्ठ का इलाज संभव
योहेई ने कहा कि कुष्ठ अनुवांशिक बीमारी नहीं है. यह बैक्टीरिया के से होने वाली बीमारी है. कुष्ठ के मरीजों से भेदभाव नहीं होनी चाहिए. मल्टी ड्रग थेरेपी (एमडीटी) से बीमारी का इलाज संभव है.
प्रारंभिक लक्षण दिखने पर कराएं इलाज- डॉ कृष्ण कुमार
निदेशक प्रमुख स्वास्थ सेवा डॉ कृष्ण कुमार ने कहा कि कुष्ठ रोग अभिशाप नहीं है. प्रारंभिक लक्षण दिखने पर अपने आसपास के स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर जांच कराएं. इस बीमारी का इलाज संभव है. उन्होंने कहा कि सरकारी केंद्र पर निशुल्क दवा दी जाती है. दवा के सेवन से मरीज स्वास्थ हो जाते हैं. कुष्ठ के मरीजों से भेदभाव नहीं होनी चाहिए.
5 एकड़ में बन रहा कुष्ठ रोगियों के लिए कॉलोनी
वहीं कुष्ठ रोगियों के लिए काम करने वाले जमशेदपुर निवासी मोहम्मद जैनुद्दीन ने कहा कि रांची के आनी टोला में 5 एकड़ में कुष्ठ रोगियों के लिए तीन कॉलोनी बनाई जा रही है. यहां 256 परिवारों को घर दिया जाएगा. इसी के साथ कुष्ठ रोग से ग्रसित 1824 परिवार को आवास दिलाने का भी प्रयास किया जा रहा है.
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झारखंड में कुष्ठ रोगियों की संख्या में आयी कमी
नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल अभियान 1 जुलाई से 14 जुलाई के बीच चलाई गई. इस दौरान झारखंड में 2688 कुष्ठ के नए मरीज मिले हैं. वहीं नेशनल लेप्रसी इरेडिकेशन प्रोग्राम रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2000 में दस हजार की जनसंख्या पर 14.9 के अनुपात से कुष्ठ रोगियों की संख्या थी. वहीं 31 मार्च 2022 में दस हजार की जनसंख्या पर कुष्ठ रोगियों का अनुपात 0.80 है.
कुष्ठ रोग के लक्षण
–घाव जो लंबे समय तक ठीक नहीं होते हैं
-पैरों के तलवों में छाले
-मोटी, सख्त या सूखी त्वचा
-गंभीर दर्द
-हाथ और पैरों में सूनापन
-बढ़ी हुई नसें (विशेषकर कोहनी और घुटने के आसपास)
-आंखों की समस्याएं जिससे अंधापन हो सकता है