Abhilasha Shahdeo
LagatarDesk : सरकार ने 60 साल पुरानी अपनी सबसे कीमती धरोहर एलआईसी को आखिरकार बेच ही दिया. सरकार ने आईपीओ के जरिये अपनी 3.5 फीसदी हिस्सेदारी बेची. आज इसके शेयरों की लिस्टिंग बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्चेंज (एनएसई) में हुई, जो काफी निराशाजनक रही. यह इश्यू प्राइस की तुलना में करीब 8.62 फीसदी के डिस्काउंट के साथ 867 रुपये पर लिस्ट हुआ. जिससे निवेशकों को पहले ही दिन काफी नुकसान झेलना पड़ा. अभी भी इसके शेयरों में 5.86 फीसदी की गिरावट देखी जा रही है.
एलआईसी ने भरोसेमंद दोस्त की तरह सरकार का दिया साथ
बता दें कि सरकार को जब भी पैसे की जरूरत पड़ी एलआईसी का सहारा लिया गया. एलआईसी ने भी भरोसेमंद दोस्त की तरह साथ दिया. इसके लिए उसने कई बार नुकसान झेला है. एलआईसी ने कई बार बैंकों और गिरते शेयर बाजार को डूबने से बचाया है. लेकिन अब सवाल यह है कि जब एलआईसी में लगातार गिरावट आ रही है. तो इसको कौन संभालेगा.
कर्ज में डूबे बैंकों को एलआईसी ने दिया था सहारा
मालूम हो कि खस्ताहाल आईडीबीआई बैंक को संकट से उबारने के लिए एलआईसी के पैसे का इस्तेमाल किया गया था. 2019 में आईडीबीआई बैंक जब कर्ज के बोझ तले डूबी थी, तो एलआईसी ने ही उसे सहारा दिया. एलआईसी के पास पहले से ही बैंक की 7 से 7.5 फीसदी हिस्सेदारी थी. लेकिन इसे डूबने से बचाने के लिए एलआईसी ने करीब 13,000 करोड़ में आईडीबीआई बैंक में 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी.
यस बैंक की डूबती नैया को भी एलआईसी ने बचाया
2015 में जब ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) विनिवेश में असफल होने की कगार पर था तो एलआईसी ने ही इसे कामयाब बनाया. एलआईसी ने ओएनजीसी में 1.4 अरब डॉलर निवेश किया था. वहीं जब 2020 में यस बैंक डूब रहा था, तब सरकार ने एलआईसी से मदद मांगी थी. एलआईसी ने बैंक में अपनी हिस्सेदारी को 0.75 फीसदी बढ़ाकर 4.98 फीसदी कर दिया था. 2009 से जब सरकार ने राजस्व घाटा कम करने के लिए सरकारी कंपनियों को बेचना शुरू किया तो एलआईसी सबसे आगे रही. 2009 से 2012 तक सरकार ने विनिवेश से 9 अरब डॉलर हासिल किये. इसमें एक तिहाई हिस्सा एलआईसी का था.
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