Dr. Santosh manav
गुजरात के सूरत शहर की आबादी लगभग 70 लाख है. इसमें चालीस फीसदी लोग बिहार-यूपी मूल के हैं. मानकर चलिए, हर दूसरा आदमी बिहार या यूपी का है. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में हर चौथा आदमी बिहार या यूपी का. बिहारी मुंबई और सूरत छोड़ दें, तो दोनों शहर ठहर जाएं! कांग्रेस के अभी के प्रदेश प्रमुख हार्दिक पटेल ने तीन साल पहले कहा था :’ बिहार वाले गुजरात छोड़ देंगे, तो गुजरात के कल-कारखाने बंद हो जाएंगे. बावजूद इसके सूरत-मुंबई में प्रताड़ित होते हैं बिहारी. आखिर क्यों? जिनके खून से रौशन हैं, सूरत-मुंबई के चिरागों के लौ, वे उन्हीं पर जीकर उन्हें मिटाना चाहते हैं, वाली बात मुंबई-सूरत में क्यों है? ताजा मामला कश्मीर का. इस साल अक्टूबर के 15 दिनों में दस गैर मुस्लिमों की हत्या कश्मीर में हुई, इसमें दो बिहारी. पहले भागलपुर के वीरेंद्र पासवान और अब बांका के अरविंद शाह. दोनों बिहारी, दोनों पानीपुरी यानी गोलगप्पा कहें या फुचका की रेहड़ी लगाने वाले. अपने घर से लगभग 1800 किलोमीटर दूर. पेट की आग बुझाने के लिए. बाल-बच्चों के लिए बाल-बच्चों से दूर! तब भी जब कश्मीर की हवा में बारूद की गंध थी. सड़कों पर मौत नाचती थी. आतंकियों का राज था. ऐसे हालात में भी श्रीनगर की गलियों में गोलगप्पे खा लो की हांक, कोई बिहारी ही लगा सकता है. मतलब नहीं निकालिए, बिहारियों की हिम्मत देखिए. साहस जानिए. बिहारी बारूद और गोलियों से भयभीत नहीं होते. बारूदी गंध के बीच अपने हिस्से की रोटी ले आते हैं. इसलिए आतंकियों के टारगेट पर बिहारी हैं. बिहारी कश्मीर से भाग गए, तो टिकेगा कौन? जम्मू-कश्मीर में सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को छोड़कर लगभग तीन लाख मेहनतकश लोग दूसरे राज्यों के हैं. इसमें बड़ा हिस्सा बिहारियों का है.
दुनिया में 206 के आसपास देश हैं. अपने देश में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं. इनमें शायद ही कोई देश या राज्य हो, जहां बिहारी नहीं होंगे. यूं ही जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि की तर्ज पर कहां जाता है- जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंच जाए बिहारी. यानी बिहारी अदम्य जिजीविषा के धनी होते हैं. श्रम में उनका सानी नहीं. मेहनत ही इनकी दौलत है. सूरत का हीरा उद्योग हो या मुंबई की अट्टालिकाएं, बिहारियों के पसीने के बगैर अधूरी हैं. यह बिहारियों की ताकत है कि मुंबई की अट्टालिकाओं में 18 घंटे लिफ्ट चलाकर उसी के बेसमेंट में खाना पकाए, खाएं और सो जाएं. एक टीन के बक्से में सिमटी दुनिया. कोई साथी साथ छोड़ जाए, तो वहीं के श्मशान में निर्गुण गाते हुए विदा कर दें- छुटी गइले महल अटरिया, घोड़ा के सवरिया, छूटल ए राम, चली देहलन काशी नगरिया, त केकर नजरिया लागल हे राम. और घर लौटती है लोटे में मुट्ठी भर राख. कश्मीर से बिहारी वीरेंद्र पासवान की राख ही लौटी. बिहारी जिस जमीन पर रहे, उसे ही जन्नत मान लेते हैं. मुंबई को काशी मान, दूसरे के महलों में वॉचमैन की नौकरी करते हुए स्वर्गिक आनंद में जीने वाले श्रमशक्ति के कुबेर यानी बिहारी. पुचकार दो, तो जान लुटा देने वाले भइया. अति स्वाभिमानी.
स्वाभिमान से समझौता नहीं. ऐसे मुंबईया भइया यानी यूपी, बिहार, झारखंडियों को कोई बाल ठाकरे ‘ एक बिहारी, सौ बीमारी कहे’, तो क्या कहा जाए? सिवाए इसके कि तूने वोट के चक्कर में हमारी कदर न जानी! पति मुंबई के किसी कारखाने में खून जलाते हुए मनीआर्डर करे. गांव में साल-दो साल बिदेशिया के सहारे बिहारी युवतियों के दिन कटे- दिनवा गिनत मोरी घिसली उगरिया, कि रहिया तकत नैना घुरे रे विदेसिया—. यह त्याग बिहारी बालाएं ही कर सकती हैं.
देश के हालात क्या हैं? मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश ऐसे ही और एक – दो राज्यों को छोड़ दें, शेष राज्यों में बिहारियों की क्या दशा है? बंगाल में वे बहिरागत हैं, कश्मीर में बाहरी, महाराष्ट्र में पर प्रांतीय!
ज्यादा दिन नहीं हुए. गुजरात से लाखों बिहारियों का पलायन हुआ. अक्टूबर 2018 की बात है. गुजरात के साबरकांठा जिले में एक किशोरी से जबरदस्ती हुई. अल्पेश ठाकौर नामक विधायक ने पूरे बिहारी समाज के सिर दोष मढ़ दिया. परिणाम रहा, गुजरात के छह जिलों में आगजनी, मारपीट, हत्या, पलायन. लाखों बिहारी गुजरात से भागे. यह स्थिति तब थी, जबकि उस समय वहां के मुख्य सचिव श्रीमान जे एन सिंह, बिहारी थे. वहां के डीजीपी श्रीमान शिवानंद झा, बिहारी थे.चालीस फीसदी IAS, IPS अधिकारी बिहार, यूपी के थे. बिहारी कहां सताए नहीं जाते, पंजाब, हरियाणा, असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, बंगाल, दिल्ली–. इसी साल चुनाव के समय पीएम बनने का सपना देखने वाली ममता बनर्जी बार-बार बिहारी गुंडा बोल, नफरत के बोल से वोट की फसल उगा रही थीं. पंजाब के किसानों की फसल बिहारी मजदूरों के पसीने से लहलहाती हैं, तो क्या पंजाब में बिहारी नहीं सताए गए? असम में तिनसुकिया है. पटना से 1400 किलोमीटर दूर. तिनसुकिया क्या है, पूरा बिहार है. वहां के लोग असम के बिहू नृत्य के साथ बिहारी जटजटिन, डोमकच को भी जीते हैं. तो क्या बिहू को जीने वाले बिहारियों पर हमले नहीं होते? उनका पलायन नहीं होता? 2009 में राज ठाकरे ने नफरत की आग फूंकी, तो हजारों बिहारियों को मुंबई छोड़ना पड़ा. त्रिपुरा के सुदूर जिलों में रोजी-रोटी कमाने वाले बिहारी, चैता, कजरी, फगुआ, झूमर को जिंदा रखने वाले बिहारी, क्या वहां की अर्थव्यवस्था में योगदान नहीं देते. दरअसल, बिहारी या कहें काऊ बेल्ट (बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ ) के लोग साहसी, अदम्य जिजीविषा वाले, प्रभावी व्यक्तित्व के धनी, मेहनती, मेधावी, प्रयोगधर्मी, नेतृत्व गुण से भरे, स्वाभमानी हैं. यही गुण लोगों को अखरता है. इसीलिए बाल ठाकरे कहते थे-एक बिहारी, सब पर भारी. लेकिन, जब सत्ता की बात हो, बिहारी, भाई हो जाते हैं. जब दिल्ली की सत्ता पानी हो. जब मुंबई, सूरत में चुनाव हो. जब असम —– . आज बिहार-यूपी को किनारे कर कौन सत्ता पा लेगा? पर बिहारियों की दुर्गति के असल दोषी हैं, सत्ता में बैठे लोग. सिर्फ आज के सत्ताधीश नहीं, दशकों से बैठे लोग. जिन्होंने बिहार नहीं, अपनी चिंता की. अगर वे रोजगार के साधन पैदा करते, तो कौन छोड़ना चाहता है घर. कौन महिला विदेशिया के सहारे जीवन काटना चाहेगी – तकत नैना घुरे रे विदेशिया