Faisal Anurag
एक हैं बिप्लव देब और दूसरे हैं सुशील कुमार मोदी. देब त्रिपुरा के मुख्यमंत्री हैं और मोदी बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं और संप्रति राज्यसभा के सदस्य हैं. लेकिन दोनों के बीच एक समानता है, दोनों ही भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं. लेकिन दोनों के बयान अक्सर न केवल विवादास्पद होते हैं बल्कि कई बार तो हास्यास्पद भी. देब ने तो अपने राज्य के अफसरों को एक तरह से अदालतों की अवमानना से नहीं डरने को कहा है, क्योंकि पुलिस उनके पास है. यह एक संगीन वक्तव्य है. नौकरशाही,राजनेता और आमलोग अदालतों के फैसलों को मानने के लिए बाध्य हैं. लेकिन देब का यह बयान न केवल निरंकुशता का परिचयाक है, बल्कि संविधान के मूल्यों के खिलाफ भी है. यदि इसी बात को कोई आम नागरिक या विपक्ष का नेता बोल दे तो उसकी इस देश में खैर नहीं. भाजपा की सरकारें उसके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करा देंगी. 1975 में जब जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ पुलिस और पारा मिलिटरी से बेजा आदेशों को नहीं मानने के लिए कहा था तो उन्हें देशद्रोही करार दिया गया था. बाद में इमरजेंसी लगी और जे.पी गिरफ्तार कर लिए गए.
हालांकि देब ने कोई पहली बार ऐसा नहीं कहा है. लेकिन भारतीय जनता पार्टी के आलकमान ने उस पर किसी तरह का संज्ञान नहीं लिया है. त्रिपुरा वह राज्य है, जहां भाजपा ने 1977 से जारी वामफ्रंट की सरकार को पराजित कर सत्ता हासिल किया और देब को मुख्यमंत्री बनाया. देब के सत्ता में आने के बाद से ही त्रिपुरा में विपक्ष के कार्यालयों पर लगातार हमले हुए और राजनैतिक हत्याओं का सिलसिला शुरू हो गया. यहां तक कि आदिवासी नेताओं को भी नहीं बख्शा गया. लोकतंत्र के चीरहरण का त्रिपुरा प्रतीक बन गया. अब देब ने न केवल अदालतों को चुनौती दी है,बल्कि अधिकारियों को हर तरह के कानून से परे हट कर केवल उनके ही आदेश को मानने को कहा है. यह आदेशनुमा वक्तव्य वास्तव में एक छोटे से राज्य के नेता की निरंकुश और संविधान की अवज्ञा करने वाली मानसिकता को ही उजागर करता है.
देब ने तो यहां तक कह दिया है कि वे ‘बाघ’ हैं और सारी शक्तियां उनमें ही निहित हैं. दुनिया का बड़ा से बड़ा तानाशाह भी इस तरह की बात कहने का साहस नहीं दिखा पाता. उसे भी लोकतांत्रिक होने का नाटक करना षड्यंत्र है. लेकिन भारत जहां विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच कार्यो को विभाजन संविधान ने ही कर दिया है,उसी लोकतांत्रिक देश में इस तरह की धमकी भरी बाते कहीं जा रही हैं. जिस तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन करने की छूट दी गयी है और देशद्रोह को हथियार बना कर विरोधियों को कुचलने का प्रयास किया है, उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ कई बार चेतावनी दे चुके हैं. अनेक अदालती फैसलों में भी इसी तरह की चेतावनी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट समय-समय पर देता रहा है.
त्रिपुरा में बिप्लब देब की सरकार लोगों की आकांक्षाओं पर खरी नहीं है. पिछले ही दिनों नेतृत्व परिवर्तन को लेकर भाजपा का आंतरिक असंतोष मीडिया की सुर्खियों में रहा है. लेकिन सवाल इससे कहीं ज्यादा संजीदा हैं कि आखिर इस तरह का साहस और निडरता कहां से हासिल हो रहा है. विपक्ष के नेताओं ने इसपर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है: मुख्यमंत्री ने सीधे तौर पर अदालत और कानून के शासन को कमजोर किया है. इससे उन उपद्रवियों, असामाजिक तत्वों को प्रोत्साहन मिलेगा, जो पिछले साढ़े तीन वर्षों से शांति भंग कर रहे हैं, जो कि राज्य के लिए एक बड़ा खतरा है. यह वही विप्लब देब हैं, जिन्होंने एक बार कहा था ‘ ‘महाभारत के युग’ के दौरान इंटरनेट मौजूद था. उन्होंने यह भी कहा था कि रवींद्रनाथ टैगोर ने अंग्रेजों के विरोध में अपना नोबेल पुरस्कार लौटा दिया था.
बिहार में 15 सालों तक उपमुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी ने बिहार के युवाओं को ढोल बजाने को कहा है. जब नौकरिया गोल हो गयी हैं, जूनियर मोदी ने कहा है कि युवाओं को गांवों में खेतों में शौच के लिए जा रहे लोगों के पीछे ढोल बजाने की जरूरत है. जूनियर मोदी वित्त मंत्री रह चुके हैं. नरेंद्र मोदी ने युवाओं को पकौड़ा बानो कर रोजगार के अवसर की बात कही थी और जूनियर मोदी युवाओं से ढोल बजवाना चाहते हैं. इस पर बिहार के ही एक युवा ने टिप्पणी की है ‘खुले में शौच के खिलाफ जागरूकता जरूरी है, लेकिन युवा नौकरी ढूंढें या शौच के खिलाफ ढोल बजाएं?’ यह बयान उस दौर में दिया जा रहा है, जब कोरोना की वजह से बीते डेढ़ साल में लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं, अनगिनत लोग बेरोजगार हो गए. Centre for Monitoring Indian Economy यानी CMIE की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ही देश में एक करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हुए हैं, इनमें से लाखों लोगों को तो अब तक दोबारा कोई नौकरी भी नहीं मिल पाई है. CMIE के आंकड़ों के मुताबिक, अकेले 2021 के अगस्त महीने में ही 15 लाख लोगों की नौकरी चली गई और इनमें से 13 लाख लोग ग्रामीण इलाकों के हैं. तो युवाओं को नौकरी चाहिए, न कि ढोल बजाने का काम.
सुशील मोदी ने हाल ही में इतिहास को झुठलाते हुए कहा था कि नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो मुख्यमंत्री भी रहे हैं. जूनियर मोदी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह और एच डी देवगौड़ा जो कि क्रमश: उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे और बाद में प्रधानमंत्री के तथ्य को ही खारिज कर दिया.