Lucknow : प्रियंका गांधी ने रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर बताया है कि बात क्यों नहीं बनी. जान लें कि उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी सक्रिय हो गयी हैं. चुनावों की तारीख तय होने से पहले यह चर्चा भी थी कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल होने वाले हैं, जिनकी यूपी चुनाव में अहम भूमिका होगी. हालांकि समय के साथ यह चर्चा गायब हो गयी. कांग्रेस-पीके के बीच बात बन नहीं पायी.
इसे भी पढ़ें : फिर देश के टॉप 5 मुख्यमंत्रियों में शामिल हुए उद्धव, भाजपा का एक भी सीएम नहीं, योगी टॉप नाइन में भी नहीं
यह पार्टनरशिप शुरू नहीं हो पायी
यह बात प्रियंका गांधी ने स्वीकार करते हुए कहा कि यह संभव नहीं हो पाया. एनडीटीवी को दिये इंटरव्यू में प्रियंका गांधी ने कहा कई कारणों से यह पार्टनरशिप शुरू नहीं हो पायी. कहा कि मुझे लगता है कि कई वजहों से यह संभव नहीं हो सका. मैं इसके डीटेल में नहीं जाना चाहती. कई ऐसे मामले थे जिनपर सहमति नहीं बन पायी. इसीलिए चर्चा भी आगे नहीं बढ़ पायी. प्रियंका गांधी के अनुसार कांग्रेस में किसी बाहरी की एंट्री को लेकर कोई विवाद नहीं था. प्रियंका गांधी ने इनकार करते हुए कहा कि इसका कांग्रेस में किसी बाहरी व्यक्ति को लाने की अनिच्छा से कोई लेना-देना नहीं है.
इसे भी पढ़ें : मुंबई : 20 मंजिला कमला बिल्डिंग में लगी आग, 13 दमकल गाड़ियां मौके पर मौजूद
अनिच्छा होती तो इतनी चर्चाएं नहीं होतीं
उन्होंने कहा कि ‘अगर अनिच्छा होती तो इतनी चर्चाएं नहीं होतीं. कहा कि हां, प्रशांत किशोर की कांग्रेस में शामिल होने की संभावना वास्तव में थी, लेकिन कुछ बिंदुओं पर यह नहीं हो पाया. बता दें कि प्रशांत किशोर ने पिछले साल सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ कई दौर की चर्चा की थी. प्रशांत किशोर की राहुल गांधी के घर जाने की तस्वीरों ने अटकलों को हवा दी थी. कहा जाता है कि कांग्रेस में उनका प्रवेश हो गया था.
बातचीत टूट जाने के बाद प्रशांत किशोर ने तीखा हमला बोला था
हालांकि इस बातचीत के टूट जाने के बाद प्रशांत किशोर ने तीखा हमला बोला था. उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए किसी भी व्यक्ति का दैवीय अधिकार’ नहीं है. वह भी तब जब पार्टी पिछले 10 वर्षों में हुए चुनावों में 90 प्रतिशत से अधिक हार गयी हो. इससे पहले प्रशांत किशोर का 2017 के यूपी चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ सहयोग बुरी तरह विफल रहा था. अखिलेश यादव-कांग्रेस गठबंधन को पछाड़कर भाजपा ने हासिल की थी.