Faisal Anurag
विरासत का वह साझापन जिसने भारत को विविधता का गुलदस्ता बनाया और असहमति,भिन्न रहन-सहन,पहनावा,भाषा को एक सूत्र में विविधिता के साथ और अपनी महक और गुण के साथ पिरोये एक गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है. कर्नाटक का हिजाब विवाद हो या फिर धर्म संसदों के माध्यम से मुसलमानों के खिलाफ नफरत का खुला प्रदर्शन संविधान के समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों पर प्रहार ही है. फ्रांसीसी विचारक वाल्टेयर ने अठारहवीं सदी में कहा था “मैं तुम्हारे विचारों से नहीं हूं, फिर भी तुम्हें वो कहने के अधिकार की रक्षा के लिये जान भी दे सकता हूं.” 21 सदी के भारत का जो वैश्विक चेहरा बनाया जा रहा है, वह इन तमाम आधुनिेक विचारों-मूल्यों का निषेध करता नजर आ रहा है.
इतिहास को बदलने की हड़बड़ी हो या फिर अपने ही देश के नागरिकों के एक समूह की जीवनशैली को दी जा रही चुनौतियां आजादी के मूल्यों के विपरीत एक ऐसे नए भारत का संकेत दे रही हैं, जिसमें विविधता और सामाजिक बहुलता के लिए स्थान नहीं है. कर्नाटक जिसे देवराज अर्स,एस.एम. कृष्ण और एस.डी. देवगौड़ा ने टेकनोलॉजी का हब बनाया था. तब एक ऐसे भारतीय तकनीकी समाज और विचारों की बात की जा रही थी, जहां एक विश्व नागरिक उभरेगा और सिलिकन वैली के एकाधिकार को चुनौती देगा.
द टेलिग्राफ जैसे अहम अखबार ने कर्नाटक के संदर्भ में एक बेहद संजीदा शीर्षक दिया है ” State of the union – mr.modi see how your maryadapurshottam are treating a student ” यह शीर्षक 21वीं सदी के भारत के उस पन्ने पर अफसोस जाहिर कर रहा है कि भारत का जो संविधान लोगों के रहन-सहन,पहनावे,प्रार्थना के तरीके की स्वतंत्रता की गारंटी करता है,उसे एक शिक्षण संस्थान में कुछ उत्पाती किस तरह एक ऐसे दृश्य में बदल रहा है जो भयावह है.
दुनिया ने धर्म के नाम पर बनने वाले देशों का हश्र देखा है, जो अंतत: देशों की वैज्ञानिक चेतना,सांस्कृतिक कलात्मक रचनात्मकता और अंधविश्वसी रूढ़ियों के कारण इंसानों की तबाही का दस्तावेज है. पड़ोस के देश पाकिस्तान में जिया उल हक के शासन का दौर है. जिया के पाकिस्तान ने जिस तरह की रूढ़ियों को अपनाया उसकी भारी कीमत वह देश आज तक भुगत रहा है. अफ्रीका के भी अनेक देशों ने संकीर्ण धार्मिक राष्ट्रवाद की भारी कीमत चुकाया है. आधुनिक और औद्योगिक यूरोप तो तब ही अस्तित्व में आया, जब उसने चर्च की सत्ता से खुद को मुक्त किया. इओर्डानो ब्रूनो एक इतालवी डोमिनिकन दार्शनिक, गणितज्ञ, कवि, ब्रह्माण्ड संबंधी सिद्धांतकार थे.
वह अपने ब्रह्मांड संबंधी सिद्धांतों के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें विचारों की स्वतंत्रता और खोज के लिए इटली के चर्च ने जिंदा जलवा दिया. 20 जनवरी 1600 को पोप क्लेमेंट VIII ने ब्रूनो को एक विधर्मी घोषित किया और सजा सुनायी. चर्च की सत्ता ने दुनिया में वैज्ञानिक अन्वेषकों और विचारकों को जहर दिया,सलीब दिया और जिंदा जलाया. लेकिन रेनेसों ने हालात बदले और यूरोप में चर्च के राजनीतिक हस्तक्षेप के खिलाफ विरोध किया और वैज्ञानिक खोजों का केंद्र बना. लेकिन एशिया और अफ्रीका के ज्यादातर देश अब भी एक अंधकार भरे सुरंग में उलझे हुए हैं.
कर्नाटक के शिक्षण संस्थान में जिस तरह एक हिजाब पहनी लड़की के खिलाफ नारे लगाए गए, उसे लेकर दुनियाभर की अनेक मीडिया में चर्चा है. शिक्षा के अधिकार के लिए आंतकियों की गोली खाने वाले नोबल पुरस्कार से सम्मानित मलाला यूसुफजई ने इस ट्वीट किया, ‘हिजाब पहने हुए लड़कियों को स्कूल में एंट्री देने से रोकना भयावह है. कम या ज्यादा कपड़े पहनने के लिए महिलाओं का वस्तुकरण किया जाता रहा है.’ उन्होंने लिखा कॉलेज हमें पढ़ाई और हिजाब के बीच चयन करने के लिए मजबूर कर रहा है. लड़कियों को उनके हिजाब में स्कूल जाने से मना करना भयावह है. महिलाओं कम या ज्यादा पहनने पर के लिए सामाजिक प्रताड़ना दी जाती है.
भारतीय नेताओं को मुस्लिम महिलाओं के हाशिए पर जाने को रोकना चाहिए. कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने भी कहा है हिलाओं का शोषण बंद होना चाहिए., ‘बिकनी हो, घूंघट हो, जींस हो या हिजाब, ये महिलाओं का अधिकार है कि वो क्या पहनना चाहती हैं. और ये अधिकार भारत का संविधान सुनिश्चित करता है.’
मुख्य सवाल तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खमोशी. मॉब लिंचिंग हो या फिर धर्म संसद से जहर उगलने वाली बातें या फिर शिक्षण संस्थानों का ताजा संदर्भ,बतौर एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुप्पी साध ली है.
चूंकि उत्तर प्रदेश ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जाल में फंसने से अब तक इंकार किया है तो कर्नाटक आंच को अब यूपी के वोट की फसल के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. यही नहीं अगले साल कर्नाटक में भी विधानसभा के चुनाव होंगे और हाल ही में हुए निकाय चुनाव भाजपा के लिए एक दु:स्वप्न साबित हुए हैं. राष्ट्रपति के अभिभषण के जबाव में राज्यसभा में 1984 को लेकर प्रधानमंत्री ने टिप्पणी किया, तो क्या केंद्र सरकार का यह फर्ज नहीं है कि वह, नागरिकों के चयन की स्वतंत्रता जिसकी गारंटी संविधान देता है, की हिफाजत में खुल कर सामने आए.