Shyam Kishore Choubey
जाता हुआ दिसंबर झारखंड के सियासी माहौल में अहम रहा. हर किरदार भौकाल टाइट करने में मशगूल दिखा. यह वो दौर है, जिसमें भौकाली सियासत के लिए हमारे नेता कुछ भी कर गुजरने में परहेज नहीं करते. इस महीने के अंतिम तिहाई हिस्से की शुरुआत के ठीक पहले 20 दिसंबर को झारखंड विधानसभा ने 1932 का खतियान आधारित स्थानीयता विधेयक एक बार फिर वॉयस वोट से पारित कर दिया. नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने यह कहकर अपना भौकाल टाइट करना चाहा कि ये लोग ‘32 के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, देंगे तो हमलोग ही देंगे. यह विधेयक बहुत हड़बड़ी में सवा साल पहले 5 सितंबर 2022 को इसी सूरत में पारित कर मंजूरी के लिए राजभवन भेजा गया था. इसमें एक महत्वपूर्ण क्लॉज था कि केंद्र सरकार द्वारा संसद से पारित कराने और संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के बाद इसे लागू किया जाएगा. बूझनेवाले बूझते रहें. न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी. तत्कालीन गवर्नर रमेश बैस मौन साधे रहे.
वर्तमान राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कतिपय सुझावों के साथ विधानसभा को विधेयक लौटा दिया था. राजभवन का कहना था कि विधेयक के अनुसार राज्य में थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियां केवल स्थानीयों के लिए आरक्षित करना विधिसम्मत नहीं होगा. सरकार, जिसमें राजनीति शास्त्र के अनुसार प्रतिपक्ष भी शामिल रहता है, ने बतर्ज ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया इसे दोबारा पास कर दिया. यह सत्तापक्षीय इंडिया का भौकाल बना, क्योंकि प्रतिपक्षी एनडीए ठीक वैसे ही कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था, जैसे संसद के मानसून सत्र में 23 सितंबर को महिला आरक्षण बिल पारित कराते समय प्रतिपक्षी इंडिया कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था. यही सूरत 2020 में महागठबंधन द्वारा सरना धर्म कोड लागू करने का प्रस्ताव असेंबली में लाने और पास कराने के दौरान आयी थी. यह बिल 11 नवंबर 2020 को विशेष सत्र की मार्फत लाया गया था, जो दिल्ली में पड़ा हुआ है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का भौकाल 27 दिसंबर को तब दूसरी बार टाइट हो गया, जब झारखंड हाईकोर्ट ने उनके सहित कुछ रिश्तेदारों के विरुद्ध दाखिल पीआईएल खारिज कर दिया. यह पीआईएल उनके नाम 0.88 डिसमिल की स्टोन माइन्स और बीवी-साली के नाम प्लॉट आवंटन को लेकर सुनील कुमार महतो ने दाखिल किया था. हेमंत का तर्क था कि बेशक, यह खदान उनके नाम आवंटित की गयी थी, लेकिन उन्होंने बिना ऑपरेट किये उसे सरेंडर कर दिया था. मुख्यमंत्री रह चुके भाजपा के तत्कालीन उपाध्यक्ष रघुवर दास ने इसी विषय को लेकर तत्कालीन गवर्नर रमेश बैस को 12 फरवरी 2022 को ज्ञापन सौंप हेमंत की विधायकी निरस्त करने की मांग की थी. राजभवन ने उस ज्ञापन को चुनाव आयोग भेजकर लीगल ओपिनियन मांगी थी. उसकी राय 25 अगस्त 2022 को सीलबंद लिफाफे में आ गयी थी. तभी से हेमंत पर अनिश्चय के बादल मंडराने लगे थे. बहुत शोर मचा कि उनकी विधायकी चली जायेगी. बहुत संभव है, इसी कारण 5 सितंबर 2022 को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर 1932 का खतियानी स्थानीयता विधेयक पारित कराया गया था.
हैरानी की बात यह कि चुनाव आयोग द्वारा राजभवन को भेजी गयी राय आज तक जाहिर नहीं की गयी. हालांकि पिछले साल दिवाली के मौके पर अपने गृह नगर रायपुर गये तत्कालीन गवर्नर रमेश बैस ने यह कहकर राजनीति के प्याले में तूफान ला दिया था कि चुनाव आयोग का लिफाफ खोल दिया तो ‘एटम बम’ गिर जायेगा. उन्होंने बाद में रांची में पत्रकारों के सवाल पर हंसते हुए कहा था कि लिफाफ पर इतनी पक्की गोंद लगी है कि खोले नहीं खुल रही. अवांतर ही सही, लेकिन एक बात याद आ रही है. अनगड़ा स्टोन माइन्स को लेकर फरवरी 2022 में गवर्नर से हेमंत की शिकायत करनेवाले रघुवर दास प्रायः डेढ़ साल बाद 19 अक्टूबर 2023 को ओडिशा का गवर्नर बन गये. हो गया न उनका भौकाल टाइट!
गुजरा साल और गुजर रहा साल झारखंड की गड्डमड्ड सियासत में कई गहरे जख्म छोड़ने के लिए जाना जायेगा. पिछले साल मई से ईडी द्वारा की जा रही ताबड़तोड़ कार्रवाई में मुख्यमंत्री के तत्कालीन विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्र के अलावा कई कारोबारी और सत्ता के गलियारों में सालोंसाल से सक्रिय बिचौलिए ही नहीं, सचिव और डीसी स्तर के दो आईएएस पदाधिकारी भी जेलबंद हैं. इस दौरान मनरेगा घोटाला, पत्थर खनन घोटाला, भूमि घोटाला, शराब घोटाला आदि-आदि की गूंज-अनुगूंज सुनी जाती रही. जमीन संबंधी मामले में खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी अगस्त से अबतक छह बार समन कर चुका है. वे इसे नजरअंदाज तो नहीं कर सके, लेकिन किसी न किसी सूरत में उसके दफ्तर न जाकर अपना भौकाल टाइट रखे हुए हैं.
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, इंडिपेंडेन्ट सरयू राय तक अरसा पहले से कहते रहे कि हेमंत सरकार दिसंबर नहीं पार कर पाएगी. मजे की बात दिसंबर ही पार कर गया और शीत सत्र के अंतिम दिन 21 दिसंबर को हेमंत सोरेन ललकारते दिखे, ‘हम अपना कार्यकाल पूरा करेंगे और राज्य में अगली सरकार भी बनाएंगे. वे बंद कमरे में हमारे सामने कुछ और बोलते हैं, बाहर जाकर सरकार के विरोध में आग उगलने लगते हैं’. उधर संसद के शीत सत्र में 18 दिसंबर तक 92 विपक्षी सांसद सस्पेंड किये गये तो इधर 19 दिसंबर को झारखंड विधानसभा के शीत सत्र में भाजपा के मुख्य सचेतक विरंची नारायण, उप मुख्य सचेतक जेपी पटेल और भानु प्रताप शाही सस्पेंड कर दिये गये. हो गया न हर तरफ का भौकाल बरोबर!
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.