Faisal Anurag
क्या जनवरी में किसानों के लंगर खाने का हक पूरी तरह चुका दिया जायेगा? केंद्र के साथ छठे के दौर की बातचीत के बाद यह सवाल अहम हो गया है. सरकार किसानों की चार में से दो मांगों को पूरा करेगी. यानी बिजली के प्रस्तावित कानून से पीछे हटेगी और परालीवाले प्रावधान को रद्द कर देगी. लेकिन इन दोनों मांगों पर केंद्र पहले भी नरमी दिखा चुका है. 4 जनवरी को होने वाली वार्ता ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि किसानों की दो महत्वपूर्ण मांगों पर फिर से चर्चा होगी. यानी तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने और एमएसपी के लिए कानून बनाने के लिए केंद्र तैयार हो जायेगा? किसान नेताओं ने संकेत दिया है कि वे इन दो मांगों पर कोई बीच का रास्ता तैयार करने को तैयार नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक कहते रहे हैं कि तीनों कानूनों में मामूली संशोधन तो किये जा सकते हैं, लेकिन निरस्त करना संभव नहीं है. केंद्र आर्थिक सुधारों के लिए तीनों कानूनों को जरूरी मानता है और भारत के कारपारेट भी चाहते हैं कि कानूनों से छेड़छाड़ नहीं की जाये.
किसान अपने लंगर का खाना लेकर छठे दौर की बातचीत में गये थे. केंद्रीय कृषि मंत्री ने भी किसान नेताओं के साथ ही लंगर का ही खाना खाया. इसके बाद दो मुद्दों पर सहमति की हामी केंद्र ने भर दी. इसीलिए किसानों ने कहा कि लंगर के खाने का कुछ हक मंत्री ने अदा किया है, लेकिन पूरा हक अदा करना उतना आसान नहीं दिख रहा है. जयपुर-दिल्ली मार्ग पर धरना दे रहे योगेंद्र यादव ने बातचीत के बाद कहा कि पूंछ निकल गयी है, लेकिन हाथी का निकलना अभी बाकी है. उनके इस कथन का निहितार्थ गहरा है. देश भर से किसानों को समर्थन मिल रहा है. पटना और तमिलनाडु में हुए किसानों के बड़े प्रदर्शनों से किसानों का आंदोलन मजबूत हुआ है. किसान नेता अच्छी तरह समझ रहे हैं कि कानूनों को रद्द करने से कम किसी बात को किसान नहीं मानेंगे. किसान नेताओं ने सामूहिक विचार-विमर्श से निर्णय लेने की प्रक्रिया को अपना कर आंदोलन में किसी तरह के भटकाव की राह बंद कर दी है.
किसान संगठन भी समझ रहे हैं कि इस अवसर को जाया नहीं किया जा सकता है, क्योंकि किसानों के सवाल पर देश में जनमत उनके पक्ष में दिखने लगा है. हरियाणा के निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी जेजेपी की करारी शिकस्त के बाद केंद्र के लिए भी संदेश साफ है. संदेश यह है कि आने वाले दिनों में राजनैतिक तौर पर हिंदी इलाकों में भी किसानों की एकजुटता उसके लिए चिंता का सबब बन सकती है. ज्यादा देर तक वार्ता का दौर नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि किसान इस रणनीति से नावाकिफ नहीं है कि वार्ताओं का जाल उनके आंदोलन के लिए घातक हो सकता है. यही कारण है कि दिल्ली कूच का नया आह्वान किया गया है. किसानों से कहा गया है दिल्ली के चार संपर्क मार्गों पर जारी धरने में वे बड़ी संख्या में आयें. तापमान शून्य से भी नीचे है, बावजूद इसके किसानों का संकल्प कमजोर नहीं है. ऐसे संकल्पबद्ध किसान आंदोलन से निपटना आसान भी नहीं है. किसान आंदोलन पर केंद्र के किसी प्रोपेगेंडा का असर नहीं हुआ है. किसानों ने वैकल्पिक सूचना तंत्र खड़ा कर सरकार और मुख्यधारा मीडिया के प्रचार को निस्तेज कर दिया है. किसानों के आंदोलन ने कई मानदंड बनाये हैं, जो न केवल अपनी प्रकृति में नये हैं, बल्कि केंद्र के लिए भी पेचीदा है.
इस बीच द वायर के संपादकों में एक एमके वेणु एक ट्वीट आंदोलन के बीच खूब चर्चा में है. वेणु के अनुसार मोदीजी के नये कृषि कानून के इस्तेमाल का ताजा नतीजा बीजेपी शासित और कृषि मंत्री के गृहराज्य मध्यप्रदेश से ही सामने आ गया है. करीब 200 किसानों से पांच करोड़ रुपये की उनकी मूंग और चने की फसल खरीद कर मंडी से बाहर के खरीददारों ने चेक थमाये. किसानों की फसल खरीददारों के गोदाम में पहुंच गयी और किसानों के घर उनके बाउंस हुए चेक. इस तरह की अनेक खबरे सोशल मीडिया पर आ रही हैं.
केंद्र सरकार के लिए 4 जनवरी की वार्ता भी अहम है, क्योंकि उन्हें अपनी दो-टूक राय रखनी होगी. 4 जनवरी को लंगर के खाने के हक की अदायगी होगी या नहीं, यह तभी पता चल सकेगा.