Satya Sharan Mishra
Ranchi: झारखंड में आदिवासी वोटरों का बीजेपी से मोहभंग हो गया है. आदिवासी वोटों को बचाने के लिए बीजेपी एक के बाद एक ब्रम्हास्त्र का प्रयोग कर रही है. जनजातीय गौरव दिवस के रूप में बीजेपी ने जो तीर छोड़ा है वह लगभग निशाने पर लगता दिख रहा है. झारखंड में किसकी सरकार बनेगी यह तय होता राज्य के 26 फीसदी आदिवासी वोटरों के वोट से. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित झारखंड के 28 विधानसभा सीटें ही राजनीतिक दलों को सत्ता तक पहुंचाती है. आदिवासी वोटरों के सपोर्ट से ही बीजेपी ने 2014 में सत्ता का स्वाद चखा, लेकिन 2019 में आदिवासी वोटरों ने बीजेपी से नजरें फेर ली. नतीजा बीजेपी सत्ता से बेदखल हो गई. दोबारा सत्ता में आने के लिए बीजेपी फिर से आदिवासी वोटरों को लुभाने में जुट गई है. आदिवासी वोटरों के खिसकने की वजहों का रांची से दिल्ली तक मंथन किया गया. आदिवासियों को विकास योजनाओं से जोड़ने, जनजातीय महापुरुषों के गांवों का विकास करने, झारखंड आंदोलनकारियों को सम्मान देने के बाद भी आखिर क्या कमी रह गई कि 2014 में जीते हुए 13 जनजातीय सीटों में से 11 सीटें बीजेपी ने गंवा दी. 2019 में सिर्फ 2 सीटें ही बीजेपी की झोली में आई. हार के कारणों का मंथन करने के बाद बीजेपी ने आदिवासी वोटरों को फिर अपनी ओर खींचने के लिए प्रभावी रणनीति बनाई और उसपर काम शुरू कर दिया है.
2019 में 13 सीटिंग में से सिर्फ 2 एसटी सीटें जीत पाई बीजेपी
2014 के विधानसभा चुनाव में कुल 81 में से अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 विधानसभा सीटों में 13 सीटें भाजपा को मिलीं थीं. इतनी ही सीटें जेएमएम को भी मिली थी. जबकि दो सीटों पर अन्य उम्मीदवार जीते थे. वहीं 2019 में बीजेपी सिर्फ खूंटी और तोरपा सीट पर ही चुनाव जीत सकी. जेएमएम-कांग्रेस और आरजेडी महागठबंधन ने जल-जंगल-जमीन का मुद्दा उठाकर आदिवासी गढ़ों में पैठ जमाई. जेएमएम ने 19 और कांग्रेस ने 6 एसटी सीटें अपने नाम की. कोल्हान और संथाल में आदिवासी सुरक्षित सीटों पर से बीजेपी का सुपड़ा साफ हो गया. जेएमएम के गढ़ संथाल परगना के सातों एसटी सीटें बीजेपी ने खो दीं सिर्फ एक अनुसूचित जाति वाली देवघर सीट को पार्टी बचा सकी. वहीं कोल्हान की 9 आरक्षित सीटों में बीजेपी सारी 9 सीटें हार गई.
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अर्जुन मुंडा को केंद्रीय मंत्री बनाने का भी नहीं मिला फायदा
2000 में जब झारखंड बिहार से अलग हुआ था उस वक्त भी जनजातीय समुदाय के बीच बीजेपी काफी मजबूत थी. 2004 में झारखंड में पहला विधानसभा चुनाव हुआ. उस समय भी बीजेपी के हाथ में जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित सीटों में से दर्जन भर सीटें हाथ में आई थी. 2014 के विधानसभा चुनाव में आंतरिक कलह के बाद भी पार्टी ने 13 जनजातीय सीट को अपने खाते में किया था. इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासी समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए बीजेपी ने अर्जुन मुंडा को केंद्रीय मंत्रिमंडल में आदिवासी कल्याण मंत्री बनाया, लेकिन इससे बीजेपी को एक भी अतिरिक्त सीट का फायदा नहीं बल्कि 11 सीटों का नुकसान ही हुआ.
आदिवासियों को भावनात्मक रूप से बीजेपी की ओर खींचने का दांव
अब एक बार फिर से नये सिरे से बीजेपी आदिवासियों को साधने में जुट गई है. झारखंड से समीर उरांव को बीजेपी ने एसटी मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है. एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक रांची में आयोजित की गई. देशभर के दिग्गज आदिवासी नेता झारखंड में जुटे और आदिवासी वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए रणनीति बनाई. इसके बाद मोदी सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस पर मनाकर बिरसा मुंडा के बहाने आदिवासियों को भावनात्मक रूप से पार्टी की ओर खींचने का दांव खेल दिया है.
2014 में इन 13 एसटी सीटों पर जीती थी बीजेपी
2014 में बीजेपी ने सिमडेगा, खूंटी, गुमला, सिसई, मांडर, खिजरी, बोरियो, दुमका, घाटशिला, मनिका, मनोहरपुर, पोटका और खिजरी एसटी सुरक्षित सीट से जीत दर्ज की थी.
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