Sweta
आज रक्षाबंधन का त्योहार है. बहनों की रक्षा का संकल्प लेने का ये दिन है. और बहनों की रक्षा को लेकर कई संकल्प लिए भी जाते हैं. मगर पूरे शायद ही हों. कोलकाता के अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर से दुष्कर्म को लेकर देश उबल रहा है. चारों ओर बस वी वॉन्ट जस्टिस की शोर और तख्तियां दिख रही हैं. डॉक्टर समुदाय में तो उबाल की कोई कमी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान ले रहा है. ऐसा लग रहा है पूरा देश महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अचानक से चिंतित हो गया है. कम से कम परिस्थितियां तो ऐसी ही देशभर में बनी हुई है. पर, क्या यह सच है या सिर्फ आंखों-कानों का धोखा, यह जानने-समझने की जरुरत है.
हमें कहीं जाने की जरुरत नहीं है. बस अपने हाथ में मौजूद मोबाइल के सोशल मीडिया एकाउंट्स पर थोड़ा घूमने की जरूरत है. आप पाएंगे, जो राजनेता या आम आदमी कोलकाता की घटना पर रोष व्यक्त कर रहे हैं, वही राजनेता व व्यक्ति मणिपुर में महिलाओं को नंगा घुमाने, उनके साथ दुष्कर्म व हत्या करने के अलावा वीडियो बनाने की घटना पर चुप्पी साधे हुए थे. इसके साथ ही आप यह भी पाएंगे कि मणिपुर की घटना पर जो लोग या राजनेता छाती पीट रहे थे, वो कोलकाता की घटना पर या तो चुप हैं या फिर घटना की की घोर निंदा करते दिख रहे हैं. लेकिन उनकी निंदा से वह रोष गायब है, जो मणिपुर की घटना पर बयान देते वक्त दिखता था.
कोलकाता घटना के बाद पिछले हफ्ते वैसी ही घटना उत्तराखंड में भी हुई है, लेकिन उस पर रोष व्यक्त करने वालों की संख्या सोशल मीडिया पर ना के बराबर है. दरअसल हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां अधिकांश लोग अपनी संवेदना यह देखकर व्यक्त करते हैं कि पीड़िता कौन है, क्या है, किस समाज से, किस क्लास की है, किस राज्य की है और सबसे जरूरी कि वहां किसकी सरकार है. यहां किसी को किसी घटना से ना तो दुख है, ना ही तकलीफ, ना ही वह आक्रोश में हैं, वह बस मौका व दस्तूर के हिसाब से बोल और विरोध कर रहे हैं.
अच्छा होता अगर तमाम लोग महिला सुरक्षा को लेकर सच में गंभीर होते. इसकी शुरुआत अपने घरों से करते. सड़क पर अगर कहीं महिलाओं के साथ कुछ होता देखते तो विरोध में खड़े होते. तो फिर आज ना तो इस तरह की घटनाएं होती और ना ही इतना हो हंगामा होता दिखता.
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