- अभी झारखंड के सिर्फ तीन हॉस्पिटल मेदांता, मेडिका और टीएमएच में ही है किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा
- पिछले पांच साल में सिर्फ 32 रोगियों का ही किया जा सका है प्रत्यारोपण
Saurav Shukla
Ranchi: अंगदान के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 13 अगस्त को दुनिया भर में विश्व अंगदान दिवस के रूप में मनाया जाता है. लोगों में जागरूकता फैलाई जाती है ताकि लोग मृत्युपरांत अंगदान करें, जिससे जरूरतमंद को समय पर अंग मिल सके और उसकी जान बचाई जा सके. लेकिन झारखंड इसमें काफी पिछे है. झारखंड में अंगदान के आंकड़ों पर गौर करें तो जानकर हैरानी होगी कि पिछले पांच सालों में झारखंड में सिर्फ 6 ही लोगों के परिजनों ने मरने के बाद मृतक का देहदान किया है. जबकि अंगदान एक भी नहीं किया गया है. अंगदान के लिए इच्छा जताने वाले भी राज्यभर में न के बराबर हैं.
नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन रिकॉर्ड (सोटो) के अनुसार, देश भर में 4.63 लाख लोगों ने अब तक अंगदान के लिए शपथ पत्र भरा है. जबकि झारखंड स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (सोटो) के गठन के बाद पिछले पांच सालों में सिर्फ 19 लोगों ने ही अंगदान की इच्छा जताते हुए शपथ पत्र भरा है. यह राष्ट्रीय आंकड़े की तुलना में 0.001% भी नहीं है. जबकि ट्रांसप्लांट की बात करें तो झारखंड के सिर्फ तीन अस्पताल मेदांता, मेडिका और टीएमएच में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा है. इन तीनों अस्पतालों में भी पिछले पांच सालों में महज 32 लोगों की किडनी ट्रांसप्लांट की जा सकी है.
सोटो के स्टेट कोऑर्डिनेटर डॉ. राजीव रंजन के अनुसार, झारखंड में लोगों के बीच अंगदान के प्रति जागरूकता की भारी कमी है. कारण यहां ट्रांसप्लांट का नही होना है. लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए पहले राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में अंग प्रत्यारोपण की सुविधा शुरू करानी होगी.
झारखंड में अभी सिर्फ प्राइवेट अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट की व्यवस्था, इसलिए ट्रांसप्लांट में रूचि नहीं लेते लोग
झारखंड में अभी सिर्फ तीन प्राइवेट अस्पतालों में ही किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा है. यहां ट्रांसप्लांट का खर्च काफी अधिक है. यही वजह है कि लोग यहां ट्रांसप्लांट कराने से कतराते हैं और दूसरे राज्यों में जाकर ऑर्गन डोनेशन के साथ-साथ ट्रांसप्लांट कराकर वापस लौटते हैं. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में पिछले 2 साल से किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया चल रही है. प्रक्रिया अभी फाइलों में ही है. स्वास्थ्य विभाग की अनुमति मिलते ही रिम्स में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू की जा सकती है. यहां ट्रांसप्लांट शुरू होने से सीधे तौर पर ट्रांसप्लांट के लिए लोगों के पलायन में कमी आएगी.
राज्य के किसी भी अस्पताल में हार्ट, लंग्स, लीवर और स्कीन ट्रांसप्लांट की व्यवस्था नहीं
अंगदान में लोगों की रूचि नही लेने का प्रमुख कारण यह भी है कि यहां हार्ट, लंग्स, लीवर और स्कीन आदि के ट्रांसप्लांट की भी व्यवस्था किसी भी अस्पताल में नही है. जबकि रिम्स में हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए एक्सपर्ट डॉक्टरों की टीम है. सीटीवीएस के हेड डॉ. विनित महाजन ने पत्र लिखकर रिम्स प्रबंधन से हार्ट ट्रांसप्लांट शुरू करने की अनुमति भी मांगी है. स्वास्थ्य विभाग से अनुमति मिलते ही रिम्स में हार्ट ट्रांसप्लांट शुरू हो जाएगा. हालांकि इसमें अभी एक साल से अधिक समय लगने की संभावना है. इसके अलावा लंग्स व लीवर ट्रांसप्लांट के लिए झारखंड में एक्सपर्ट डॉक्टर ही नहीं हैं. वहीं, स्कीन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट के लिए रिम्स में प्लास्टिक सर्जरी की पूरी टीम है. अंगदान के माध्यम से ऑर्गन मिले तो किसी का हाथ, किसी का पैर किसी भी रोगी में जोड़ा जा सकता है.
सोटो रिकॉर्ड: झारखंड में किडनी ट्रांसप्लांट के 250, हार्ट-लंग्स ट्रांसप्लांट के 50 से ज्यादा मरीज वेटिंग में
इधर, सोटो रिकॉर्ड की माने तो झारखंड में किडनी ट्रांसप्लांट के करीब 250 मरीज प्रतिक्षा में हैं. ये सभी रेगुलर डायलिसिस के रोगी हैं. जिन्हें चिकित्सक ने किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी है. इसमें रिम्स के ही 150 से ज्यादा रोगी हैं. इसके अलावा रिम्स में चिकित्सीय परामर्श लेने के बाद हार्ट और लंग्स ट्रांसप्लांट के लिए दूसरे राज्य जाने वाले करीब 50 रोगी भी वेटिंग में हैं.
किडनी ट्रांसप्लांट के आंकड़ों पर एक नजर
साल किडनी ट्रांसप्लांट
2019- 16
2020- 1 (कोविड के कारण)
2021 – 2
2022- 7
2023- 6
कुल – 32