Ranchi: झारखंड के साथ-साथ बिहार, उत्तर प्रदेश सहित अन्य प्रदेश के कोयला कारोबारी को झारखंड स्टेट मिनिरल्स डेवल्पमेंट कारपॉरेशन (जेएसएमडीसी) व लिकेज का कोयला प्रभावित कर देता है. जानकारी के मुताबिक, जेएसएमडीसी व लिकेज के प्रदेश में करीब चार सौ यूनिट हैं. जो काली कमाई में लगे हैं. कोयला बाजार में इनका काफी प्रभाव रहता है. ये अपने अनुसार, कोयला का दाम बाजार में ऊपर-नीचे कर देते हैं. स्पोर्ट ई-ऑक्शन का कोयला बाजार में इनके सामने ठहर नहीं पाता है.
स्पोर्ट ई-ऑक्शन का कोयला महंगा होता है. जबकि जेएसएमडीसी व लिकेज का कोयला सस्ता होता है, क्योंकि सरकार व सीसीएल द्वारा इन्हें सस्ते दर पर फैक्ट्री चलाने के नाम पर कोयला दिया जाता है. लेकिन इन कोयले से काली कमाई करने वाले माहिर फैक्ट्री संचालक लोग सरकार व सीसीएल से मिले सस्ते कोयले को खुले बाजार में ऊंचे दाम पर बेचकर प्रतिदिन लाखों की कमाई करते हैं.
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साल में करीब 5 लाख टन कोयला फैक्टिरियों के जाता है
खनन सचिव पूजा सिंघल की गिरफ्तारी के बाद जेएसएमडीसी की वसूली की पोल भी खुलने लगी है. झारखंड के रामगढ़, हजारीबाग, बाकारो और धनबाद जिले की सॉफ्ट कोक व हार्ड कोक फैक्टरियों को जेएसएमडीसी के माध्यम से प्रति माह कोयला दिया जाता है. साल में करीब 5 लाख टन कोयला इन फैक्टरियों को मिलता है. अधिकतर फैक्टरियां बंद हैं. फैक्टरी में इस्तेमाल होने वाले कोयले को डेहरी व बनारस की मंडियों में ले जाकर बेच दिया जाता है. यह कारोबार सालों भर और हर सरकार में बेरोकटोक चलता है. फर्क सिर्फ इतना होता है कि दबंग अफसर हो तो काम संगठित तरीके से होता है और वसूली की रकम भी बढ़ जाती है.
वसूली की रकम चौंकाने वाली
प्रशासनिक अफसरों द्वारा वसूली को लेकर सूत्रों ने जो दावा किया है, वह चौंकाने वाला है. खनन विभाग (मुख्यालय) के नाम पर प्रति टन 250 रुपये की वसूली होती है. मतलब हर साल करीब 12.50 करोड़ रुपये. इसके अलावा जिलों के पुलिस प्रशासन के अफसरों के नाम पर भी प्रति टन इतनी ही राशि की वसूली की जाती है. मतलब जिले के अफसरों को भी हर साल 12.50 करोड. खबर है कि पहले खनन विभाग के आला अफसरों को सालाना कुछ लाख रुपये मिलते थे. लेकिन हाल में प्रति माह-प्रति टन के हिसाब से वसूली होने लगी थी.
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