Pravin Kumar
Chatra: स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत बनने वाले शौचालयों में अनियमितता का मामला सामने आया है. जिला विधि शाखा की ओर से अनियमितता में शामिल स्वयं सहायता समूहों के अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्षों पर सर्टिफिकेट केस किया गया है. इसके बाद भी सरकारी राशि की वसूली नहीं की जा सकी है. मिली जानकारी के अनुसार, जिले में कागजों पर 7500 शौचालय बनाए गये हैं. इसमें करीब 9 करोड़ की लागत बतायी गई है. अनियमितता के मामले जिले के विभिन्न पंचायतों से सामने आयी हैं.
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लापरवाह कर्मियों को किया चुका है कार्यमुक्त
शौचालय निर्माण में अनियमितता के आरोप में जिला स्वच्छ भारत मिशन में काम करने वाले कोऑर्डिनेटर, इंजीनियरों को कार्यमुक्त कर दिया गया है. काम ले हटाए गए कार्मियों में राजीव रंजन चौबे, मनजीत कुमार कैशल, राजेश कुमार सिंह, डीपीएमयू चतरा के नाम शामिल हैं. उनपर कार्य में लापरवाही बरतने, मनमाने तरीके से कार्य करने, निर्मित शौचालय की उपयोगिता प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने में उदासीन रवैया अपनाने का आरोप लगा है. इसके बाद 21 अप्रैल 2022 को इन सभी को कार्य मुक्त कर दिया गया था.
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बिना काम कराए निकाल लिए 9 करोड़
यह पूरा मामला वर्ष 2018-19 का है. जिला के 135 स्वयं सहायता समूहाें ने बिना शौचालय निर्माण के ही पूरी राशि निकाल ली. जिला जल एवं स्वच्छता मिशन की सख्ती के बाद भी 7500 शौचालय नहीं बनाए गए. सरकार के द्वारा एक शौचालय निर्माण के लिए 12000 हजार रुपये दिये गये थे. जिसे लेकर विधि शाखा के द्वारा सर्टिफिकेट केस किया गया था. सर्टिफिकेट केस करने के बाद आनन-फानन में कुछ स्वयं सहायता समूहों ने शौचालय निर्माण का कार्य पूरा कर उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा करा दिया ,लेकिन अभी भी 9 करोड़ से अधिक की राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं मिला है.
जिसे लेकर विधि शाखा के द्वारा वारंट जारी करने की प्रक्रिया की जा रही है. करीब 68 स्वयं सहायता समूह और विलेज वाटर सैनिटेशन कमिटियों के अध्यक्ष सचिव और कोषाध्यक्ष के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी किया जा रहा है. इसके बाद भी सरकारी राशि जमा नहीं की ताे उनके घर कुर्क किए जाएंगे. वहीं जिला जल स्वच्छता समिति के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर अविक अंबाला ने कहा कि अन्य करीब 68 समितियाें ने 9 करोड़ का उपयाेगिता प्रमाण पत्र नहीं दिया है.
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तीन साल बाद भी उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दे पाई समितियां
जिले के स्वयं सहायता समूहाें को शौचालाय निर्माण के लिए जल स्वच्छता समिति से कराेड़ाें रुपए एडवांस मिला था. तीन साल बाद जब उनसे उपयाेगिता प्रमाण पत्र मांगा गया ताे वे नहीं दे पाए. इसी बीच कई ग्रामीणाें ने शाैचालय न बनने की शिकायत की. इसके बाद विभाग ने जांच शुरू की ताे पता चला की हजाराें शाैचालयाें का निर्माण ताे हुआ ही नहीं. इसके बाद कार्रवाई शुरू हुई.