Abhay Verma
Giridih : सदर अस्पताल के सौंदर्यीकरण पर विगत 10 वर्षों के दरम्यान दो चरणों में ढ़ाई करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं की कमी है. आलम यह है कि इस अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन तक नहीं है. एक अल्ट्रासाउंड मशीन की कीमत 10 लाख रुपए के करीब है. सौंदर्यीकरण के नाम पर किए गए खर्च की राशि से अल्ट्रासाउंड समेत अन्य मशीनों की व्यवस्था की जा सकती थी. कोरोना संकट में अल्ट्रासाउंड के लिए सदर अस्पताल प्रबंधन को नर्सिंग होम की सहायता लेना पड़ा. वर्ष 2010 में सदर अस्पताल के रखरखाव, रंग रोगन व मार्बल के काम पर 1.42 करोड रुपए खर्च किए गए. इसके बाद वर्ष 2018 में पुनः सदर अस्पताल के रखरखाव और फेवर ब्लॉक पर 1.9 करोड़ रुपए खर्च किए गए.
जुटाए जाते जरूरी संसाधन
वरिष्ठ अधिवक्ता सह कांग्रेस नेता अजय कुमार सिन्हा का कहना है कि सदर अस्पताल की बाहरी चमक पर खर्च करने से बेहतर होता कि यहां जरूरी संसाधन जुटाए जाते. सड़क हादसे में घायल लोगों के लिए अत्याधुनिक वेंटीलेटर की जरूरत होती है. सदर अस्पताल में यह सुविधा आज भी नहीं है. पेयजल की सुविधा नहीं है. दो वर्ष पूर्व वाटर फिल्टर इंस्टॉल किया गया था. चंद महीने बाद ही इसके पार्ट-पूर्जे निकाल लिए गए. परिसर में सुलभ शौचालय का भी निर्माण किया गया, लेकिन उसमें भी ताले लटक रहे हैं.
सोलर प्लांट पर 91 लाख खर्च
सदर अस्पताल में रोशनी के लिए सोलर प्लांट पर वर्ष 2018 में 91 लाख रुपए खर्च किए गए. चंद महीने बाद ही यह खराब हो गया. सदर अस्पताल समेत जिले के 15 स्वास्थ्य केंद्रों में सोलर लाइट लगाने की फिर तैयारी चल रही है.
विभागीय हस्तक्षेप नहीं
सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. उपेंद्र दास ने बताया कि भवन निर्माण व रखरखाव पर किए जाने वाले खर्च में विभाग हस्तक्षेप नहीं करता. रांची स्थित मुख्यालय ही कार्य एजेंसी को देता है. स्वास्थ्य विभाग कार्य पूरा होने पर केवल एनओसी देता है. एनओसी देते वक्त प्रबंधन को कार्य की गुणवत्ता का ख्याल रखना चाहिए. सोलर लाइट मामले में ही एजेंसी को एनओसी सिविल सर्जन के बजाए सदर अस्पताल प्रबंधक ने दिया. यह मामला अभी जांच के लिए विचाराधीन है.
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