Ranchi : रेलवे स्टेशनों पर छोटे-मोटे रोजगार कर अपनी जीविका चलाने वाले वेंडरों की हालत दयनीय हो गयी है. कोरोना से पहले ये लोग रेलवे स्टेशनों और आस-पास छोटा-मोटा रोजगार और काम-धंधा करके अपना गुजारा कर लेते थे. लेकिन ट्रेनों का आवागमन बहुत कम होने और स्टेशनों में इंट्री बंद हो जाने के कारण ऐसे लोग अब सड़कों पर आ गये हैं. कोई दूसरा काम-धंधा नहीं होने के चलते वे स्टेशन के आसपास ही ग्राहकों का इंतजार करते हैं. हालांकि स्टेशन के बाहर भी पुलिसवालों का झमेला है, लेकिन पेट की आग के आगे वे मजबूर हैं.
रांची स्टेशन पर ठेले पर चना-चबेना बेचकर गुजारा करनेवाले पिंटू ने बताया कि कोरोना और लॉकडाउन से पहले वह हर रोज तीन-चार सौ रुपये कमा लेता था. लेकिन आठ महीने से कमाई पूरी तरह से बंद है. दुर्गा-पूजा और पर्व-त्योहार के दौरान कुछ स्पेशल ट्रेनें चलीं, लेकिन इससे गुजारे भर की कमाई होना मुश्किल है. बान्हो यादव और अनिल शर्मा जैसे वेंडरों की भी यही पीड़ा है.
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दोना – पत्तल बेचने वाले भी परेशानी
नियमित और लोकल ट्रेनों के बंद होने से लोकल वेंडरों के साथ साग-सब्जी, जंगली फल, लकड़ी, दातून, दोना-पत्तल आदि बेचने के लिए रेलवे स्टेशनों पर निर्भर सुदूर गांव-देहात की गरीब महिलाओं के सामने भी भूखों मरने की नौबत आ गई है. रांची और आसपास के छोटे स्टेशनों, जैसे टाटीसिलवे, गंगाघाट, गौतमधारा, किता, मुरी, सिल्ली आदि जगहों से आकर ग्रामीण महिलाएं वनोत्पाद और स्थानीय वस्तुएं रेल यात्रियों को बेचकर अपना जीविकोपार्जन करती हैं. प्लेटफार्म पर शाम से दर्जनों ग्रामीण महिलाएं जंगल से तोड़ कर लाये पत्तों से दोने और पत्तल बनातीं और अहले सुबह अपने उत्पाद बेचकर घर निकल जाती थीं. अब इन महिलाओं और उनके बच्चों के सामने भी भूखों मरने की नौबत है.
यही हाल स्टेशन के अंदर रेलवे के अपने अधिकृत वेंडरों का भी है. ठेके पर खानपान के स्टॉलों, भोजनालयों और अन्य स्टॉल चलानेवालों की कमाई ठप पड़ी है. स्टाफ को मेहनताना देने के पैसे तक नहीं हैं. इसके अलावा ठहराव वाले स्टेशनों में भी कई बाहरी वेंडर छोटे-छोटे व्यवसाय करते हैं. ये सभी वेंडर स्टेशन के बाहर और अंदर ठेले-खोमचे लगाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे. फिलहाल इन स्टेशनों में सन्नाटा छाया हुआ है और यात्रियों की आवाजाही पूरी तरह से ठप है, तो कारोबार और रोजगार को सवाल ही नहीं है.
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वेंडरों की पीड़ा
“हमलोगों की जिंदगी रेलगाड़ी के साथ-साथ चलती है. परिवार का बुरा हाल है. आठ महीनों से कारोबार ठप है. अभी कुछ स्पेशल ट्रेनें चल रही है. उम्मीद से स्टेशन आता हूं, लेकिन कमाई नहीं हो रही है.”
-बान्हो यादव, लोकल वेंडर, रांची स्टेशन
“कुछ स्पेशल ट्रेनें चल रहीं हैं. जब प्लेटफार्म पर ट्रेनों के आने का समय होता है तो यहां ठेला लेकर चला आता हूं. कुछ बिक्री होती है, लेकिन इससे गुजारा नहीं होता.”
-पिंटू कुमार, रांची स्टेशन
“स्टेशन के बाहर मिनरल वाटर और सफर के दौरान यात्रियों के लिए अन्य छोटी-मोटी जरूरी सामान बेचता हूं. गाड़ी ही नहीं चल रही तो गुजारा कैसे होगा.”
- अनिल शर्मा, लोकल वेंडर, रांची स्टेशन
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