Faisal Anurag
आमि अन्य कोथाबो जाबो ना, ऐई देसे तेई थाकबो…: बंगाल के कलाकारों को वह साहस कहां से हासिल होता है कि वे अपने विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति से नहीं कतराते. यदि बॉलीवुड से तुलना की जाए तो यह फर्क साफ नजर आता है. बॉलीवुड के कुछ कलाकार जोखिम उठाते हैं लेकिन वे उतने बड़े नाम नहीं हैं. आमतौर पर सत्ता की हवा के साथ चलने की पहचान बॉलीवुड कलाकारों की रही है. ऐसे अवसर कम ही आए हैं, जब देश के हालात या चुनावों में सत्ता के खिलाफ जाने का वे साहस जुटा पाएं.
स्वरा भास्कर, तापसी पन्नू या अनुराग कश्यप का नाम लिया जा सकता है, जिन्होंने जब तब अपने साहस का प्रदर्शन किया है. लेकिन बंगाल के कलाकारों की पहचान अलग है और उनका गहरा सरोकार आमलोगों से रहा है. बंगाल की राजनीति और बंगाली कलाकारों के बीच एक गहरा संबंध रहा है. बंगाल के कलाकारों के बारे में प्रसिद्ध है कि वे किसी भी सवाल पर बोलने से गुरेज नहीं करते हैं.
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35 से ज्यादा कलाकारों ने मिलकर बनाया है नया वीडियो
बंगाल के जानमाने दर्जनों कलाकारों ने एक बार फिर धूम मचा दी है. पिछले सात दिनों से यूट्यूब पर उनके वीडियो ने लाखों लोगों को आकर्षित किया है. इस वीडियो की खास बात यह है कि यह वोटरों से नफरत के खिलाफ वैज्ञानिक समझ के साथ वोट करने की अपील करता है. इस वीडियो को 35 से ज्यादा कलाकारों ने मिलकर तैयार किया है.
बंगाल में इसने धूम मचा रखी है. भाजपा कैंप में इस गीत को लेकर खासी बेचैनी है, क्योंकि इसके व्यूज हर दिन बढ़ रहे हैं. जिन कलाकारों ने इसमें भाग लिया हे वे बंगाल में जानेमाने नाम हैं. इनमें कई अभी युवा हैं. अरको मुखर्जी, शुबदीप गुहा, अनिर्बान चट्टोपाध्याय, सुरंगना बंदोपाध्याय, संपा विश्वास, रबितोबर्तो मुखर्जी और रिद्धि सेन जैसे कलाकार हैं. अनिर्बान चट्टोपाध्याय ने गीत लिखा है और शुबदीप गुहा ने कंपोज किया है.
हेट-स्पीच पर साधा है निशाना
गीत की शुरुआत रिद्धि सेन से होती है, जो खजुराहो के इतिहास पर एक किताब पढ़ते नजर आते हैं. वे मिथक को इतिहास और इतिहास को मिथ्या बनाने के खिलाफ लोगों को आगाह करते हैं. यह गीत भारत में पिछले सात सालों की उन प्रवृतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करता है जो भारतीय जनता पार्टी के केंद्र में आने के बाद मजबूत हुई है.
बंगाल के इन कालकारों ने यह नहीं कहा है कि किस दल को वोट देना चाहिए लेकिन हेट-स्पीच पर निशाना साधा है. जाहिर है उनके निशाने पर भारतीय जनता पार्टी है. इस गीत का सबसे मार्मिक पंक्ति है ”आमि अन्य कोथाबो जाबो ना, ऐई देसे तेई थाकबो” यानी मैं कहीं अन्य नहीं जाऊंगा, इसी देश में रहूंगा. इस गान में फैज़ अहमद फैज़ के मशहूर नज्म हम देखेंगे..की दो पंक्तियों को कल्पनाशीलता के साथ पेश किया गया है.
पहले चरण की वोटिंग के पहले जारी हुआ वीडियो
यह गीत पहले चरण के मतदान के ठीक पहले जारी किया गया है. बंगाल में प्रगतिशील साहित्य और सिनेमा का एक लंबा सिलसिला है. राममोहन रय और माइकल मधुसूदन दत्त जैसे अनेक लोगों ने मिल कर जिस पुनर्जागरण की नींव रखी, उसे बंगाल के साहित्यकारों और कलाकारों ने पूरी प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ाया. इंडियन एक्सप्रेस में अभिजीत पाठक ने लिखा है : जैसा कि पश्चिम बंगाल में प्रचलित चुनावी राजनीति की विकृति देखी जा रही है, बंगाली भद्रलोक समुदाय के “सांस्कृतिक पूंजी” का भ्रमपूर्ण चरित्र तेजी से स्पष्ट हो रहा है.
हां, यह भद्रलोक वर्ग 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के आरंभ में बंगाल के गौरव के रूप में जाना जाता है. एक विश्वास के साथ रहना पसंद करता है कि वे “अलग” हैं क्योंकि उन्हें राजा राममोहन राय और रवींद्रनाथ टैगोर की विरासत विरासत में मिली है, जो रामकृष्ण के उद्धरण हैं. परमहंस की कथामृत, सुभाषचंद्र बोस की वीरता का जश्न मनाती है, और कुछ “कट्टरवाद” के साथ, मृणाल सेन की फिल्मों को देखती है, या मार्क्स और लेनिन को थोड़ा पढ़ती है. एक तरह से, यह वर्ग हमें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि बंगाल “अद्वितीय” है क्योंकि यह बिहार, यूपी, गुजरात या भारत के किसी अन्य हिस्से में व्याप्त है, जो मुख्य रूप से जाति और धर्म जैसे पहचान चिह्नों को सीमित करने पर आधारित है.”
गीत की रचयिता है अनिर्बान चटर्जी
आज के माहौल में वोटरों को लक्ष्य कर 35 कलाकारों ने अपनी आवाज बुलंद की है. वैसे तो भारतीय जनता पार्टी ने भी बंगाल के चुनाव में बंगाली कलाकारों को अपनी ओर करने का प्रयास किया है. उनके खेमे में कुछ कलाकार आए भी हैं, लेकिन वे उतने बड़े नाम नहीं है. मिथुन चक्रवर्ती इसके जरूर अपवाद हैं, जिन्होंने भाजपा में शामिल होते ही अपने को खतरनाक कोबरा बताया था. तृणमूल के पक्ष में भी अनेक कलाकार हैं, जिनमें कुछ को तृणमूल ने उम्मीदवार भी बनाया है. खेला होबे नामक गीत भी धूम मचा रहा है. भाजपा भी खेला होबे के नारे और गीत के अपने वर्सन के साथ उतारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो अपने भाषणों में खेला होबे की चर्चा अपने नजरिए से जरूर कर रहे हैं.
लेकिन इस बीच में अनिर्बान चटर्जी लिखित गीत का महत्व अलग है. इसमें शामिल कलाकारों के अपने विचार तो हैं लेकिन वे किसी भी पार्टी के सदस्य नहीं हैं. नए मिजाज के कलाकारों की खासियत यह है कि वे संविधान के सहारे बदलाव के बड़े संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं. वैसे तो बंगाल का समाज वैचारिक तौर पर कई खेमों में विभाजित है. इसके बावजूद बंगाल में साहित्य और सिनेमा लोगों के विचारों को गहरे रूप से प्रभावित करता आया है.
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