Sunil Kumar
Latehar : कॉरपोरेट पावर लिमिटेड (अभिजीत ग्रुप) के बाना (चकला) प्लांट की स्क्रैप निकासी को लेकर विस्थापितों और अरसिल प्रबंधन के बीच रोज टकराव हो रहा है. असमंजस व तनाव की स्थिति बनी हुई है. इसे रोकने की जरूरत है. विस्थापितों का कहना है कि उनका पक्ष सुने बिना अदालती आदेश प्राप्त कर लिया गया. यह अनुचित है. ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (अरसिल) का कहना है कि ऋण वसूली के लिए परिसंपत्तियों की बिक्री कर भुगतान करने का आदेश उन्हें सरफेसी एक्ट के प्रावधानों के तहत मिला है.
जानकारी के मुताबिक अभिजीत ग्रुप के दिवालिया होने के बाद बैंकरों ने ऐसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (इंडिया) लिमिटेड का दरवाजा खटखटाया था. बैंकरों ने डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल को बताया था कि उनकी राशि अभिजीत ग्रुप में फंसी हुई है. कंपनी के दिवालिया घोषित होने के बाद उसकी संपत्ति बिक्री कर भुगतान करने की उनकी प्राथमिकता सरफेसी एक्ट की धारा 13( 2) के तहत होनी चाहिए. मामले की सुनवाई कोलकाता स्थित ट्रिब्यूनल में हुई थी. दो सितंबर 2015 को बैंकों के कर्ज की सूची के साथ अरसिल ने अभिजीत ग्रुप के खिलाफ सीपीसी की धारा 148 (ए) के तहत सब जज – वन लातेहार की अदालत में एक केविएट वाद दर्ज कराया था. अदालत ने अभिजीत ग्रुप व उसके तमाम इकाइयों को नोटिस जारी किया गया. अरसिल के असिस्टेंट मैनेजर व केविएटर वैभव नागौरी ने सरफेसी एक्ट का हवाला देते हुए 25 जुलाई 2015 को अखबारों में विज्ञापन निकाला. तय तारीख को जब कोई भी पार्टी उपस्थित नहीं हुए तो ट्रिब्यूनल ने अरसिल को अभिजीत कंपनी की समस्त संपत्तियों की बिक्री कर भुगतान करने का आदेश पारित किया. इसके बाद आदेश को लागू करने के लिए सब जज- वन, लातेहार की अदालत में केविएट वाद दाखिल किया गया. दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के प्रावधानों के अनुसार केविएट वाद दाखिल होने के 90 दिनों के भीतर पक्षकारों को हाजिर होना है. लेकिन पक्षकारों के केस दर्ज होने की अगली तिथियों में उपस्थित नहीं होने के कारण अरसिल के पक्ष में एकतरफा आदेश पारित कर दिया गया.
बर्बाद हो रहे हैं लोग
अब विस्थापित अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं. उधर कंपनी अदालती आदेश पर स्क्रैपर की नियुक्ति कर दिया है और अभिजीत ग्रुप की संपत्तियों की नीलामी कर चुका है. अरसिल की ओर से नियुक्त प्लांट हेड बीसी साहू का कहना है कि वह अदालती आदेशों का अनुपालन कर रहे हैं. अदालत द्वारा उनके पक्ष में जो आदेश पारित हुई है, उसका अनुपालन कर रहे हैं. विस्थापितों का कहना है कि अदालत में उनका पक्ष सुने बिना फैसला करा दिया गया है.
मालूम हो कि अभिजीत ग्रुप के कर्मचारियों ने भी बकाये की मांग को लेकर नेशनल ट्रिब्यूनल में वाद दायर कराया है. अभिजीत ग्रुप के सुनहरे दिनों का अंत तब हो गया, जब कोलगेट घोटाले में अभिजीत ग्रुप के मुख्य प्रबंध निदेशक मनोज जायसवाल के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हो गई और उन्हें जेल जाना पड़ा. कोयला खदान का आवंटन रद्द हो जाने के बाद कंपनी के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया और स्थिति इतनी बिगड़ गई कि 90 फीसदी तक तैयार प्लांट को स्क्रैप के रूप में बेचा जा रहा है. औद्योगिक नगरी के रूप में देश के मानचित्र पर उभरता चंदवा अचानक रसातल में चला गया. आज की स्थिति ऐसी है कि अभिजीत ग्रुप को देखकर बाजार में निवेश करने वालों की हालत खराब होती जा रही है. कई महंगी इमारत, होटल, रेस्टोरेंट नीलामी की कगार पर आ गया है. अभिजीत ग्रुप की चमक से लोगों ने विभिन्न वित्तीय संस्थानों से ऋण लेकर अपने प्रतिष्ठानों को खड़ा किया था कि प्लांट के चालू होने से उनकी आमदनी काफी बढ़ जाएगी और ऋण की राशि भी वसूल हो जाएगी. लेकिन इसका उल्टा हुआ. आज चंदवा में भुखमरी की स्थिति हो गई है. महंगे होटलों में कोई रहने वाला नहीं है. कोई किराएदार नहीं मिल रहा है. लोग सड़कों पर उतर गए हैं. विस्थापित अपनी भूमि को देकर न तो वो खेती कर पा रहे हैं और न भूमि का किसी प्रकार का उपयोग कर पा रहे हैं. उनके समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गई है. उधर अभिजीत ग्रुप कर्मियों के सामने भी भुखमरी की नौबत आ गई है. केंद्र व राज्य सरकार की ओर से कोई पहल नहीं होने से पूरी तरह से तैयार पावर प्लांट स्क्रैप में तब्दील होने की कगार पर खड़ा है.
किसे कितना मिलेगा
भारत सरकार की ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक द्वारा पहली फेज में 555 करोड़ रुपये व द्वितीय फेज में 95 करोड़ रुपये की ऋण स्वीकृत की गई थी. ट्रिब्यूनल ने पहले फेज के एवज में 350 करोड़ रुपये व दूसरे फेज के एवज में 50 करोड़ रुपये का भुगतान संपत्तियों की बिक्री कर करने का आदेश पारित किया है. इसी तरह यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का 225 करोड़ रुपए, इलाहाबाद बैंक का 200 करोड़ रुपये, आंध्र बैंक का 125 करोड़ रुपए, इंडियन बैंक का 50 करोड़ एवं आईआईएफसीएल की 300 करोड़ का भुगतान करने का आदेश पारित किया गया है.
कब क्या हुआ
02 दिसंबर 2015 केविएट वाद दाखिल
सुनवाई के लिए तारीख : 23 नवंबर 2015, 27 नवंबर 2015 व 07 दिसंबर 2015. पक्षकार हाजिर नहीं हुए.
07 दिसंबर 2015 : केविएट दाखिल होने के 90 दिन बीतने पर वाद की कार्रवाई समाप्त.
कब कितना लोन
पहला फेज – 2175 करोड़
दूसरा फेज – 2387 करोड़
इन वित्तीय संस्थाओं का पैसा फंसा है
भारतीय स्टेट बैंक – 1601.55 करोड़
एसबीएच – 55. 45 करोड़
एसबीओपी – 60 करोड़
एसबीटी – 60 करोड़
एसबीबीजे – 60 करोड़
भारतीय जीवन बीमा निगम – 150 करोड़
पंजाब नेशनल बैंक – 280 करोड़
आईआईएफसीएल – 200 करोड़
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