Adityapur (Sanjeev Mehta) : हर साल 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन खासतौर पर सभी देशों को हमारी ओजोन लेयर को बचाने और इस ओर ध्यान आकृष्ट कराने के लिए मनाया जाता है. इस दिन लोगों को पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूक किया जाता है. हर साल एक नई थीम के साथ अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस मनाया जाता है. यह जानकारी देते हुए क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के क्षेत्रीय पदाधिकारी जितेंद्र कुमार ने बताया कि हम अपने शरीर को अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने के लिए सनस्क्रीन लगाते हैं. ठीक उसी तरह पृथ्वी को भी घातक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने का काम पृथ्वी के ऊपर बनी एक ओजोन परत करती है. ओजोन (O3) ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक रंगहीन गैस है. ये एक हल्का नीला, जीवन के लिए हानिकारक, बदबूदार और अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है जो समताप मंडल में ऊपर मौजूद होती है. ओजोन का बहुत ऊपर होना ही इसे हमारे लिए हानिकारक होने के बजाय फायदेमंद बनाता है. अगर यह पृथ्वी के वायुमंडल के करीब होती तो, इसका ग्रीनहाउस प्रभाव हमारे लिए हानिकारक होता, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और इससे जुड़ी अन्य आपदाएं होती.
इसे भी पढ़ें : चाईबासा : सदर अस्पताल में बच्चे की मौत, डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप
एक सप्ताह तक चलेगा जागरूकता अभियान
इसे लेकर अगले एक सप्ताह तक स्कूलों-कॉलेजों में और कल कारखानों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होंगे. उन्होंने बताया कि ओजोन हानिकारक यूवी रेडिएशन या सोलर रेडिएसन को कम करता है. इस तरह ये हमें कई बीमारियों जैसे सनबर्न, त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद आदि से बचाती है. ओजोन लेयर के बिना, सभी इंसानों और जानवरों की इम्यून सिस्टम खराब हो जाएगा, और महासागरों में फाइटोप्लांकटन उत्पादकता में नकारात्मक बदलाव देखने को मिलेगा. हमारे लिए चिंता की बात है कि ओजोन परत को ग्रीनहाउस गैसों खासकर क्लोरो फ्लोरोकार्बन से काफी नुकसान पहुंच रहा है. यह ओजोन परत का क्षरण करके पृथ्वीवासियों के लिए खतरा पैदा कर रही है. ओजोन-क्षयकारी पदार्थों में हेलोकार्बन रेफ्रिजरेंट, सॉल्वैंट्स, प्रोपेलेंट और फोम-ब्लोइंग एजेंट जैसे निर्मित रसायन हैं.
इसे भी पढ़ें : किरीबुरू : वन विभाग ने सारंडा जंगल में पौधरोपण किया शुरू
ओजोन परत संरक्षण के लिए जनभागीदारी जरूरी
बात अगर ओजोन संरक्षण के उपायों की करें तो इसके लिए भारत ने साल 1991 में वियना कन्वेंशन और 1992 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया था. भारत 1993 से ओजोन विघटनकारी पदार्थों को धीरे-धीरे बाहर करने में लगा हुआ है. इस काम में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानि यूएनडीपी ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हालांकि ओजोन परत की संरक्षण के लिए जो सरकारी कोशिशें हो रही हैं, उनमें जनभागीदारी भी काफी जरूरी है.