Hazaribag : सदर अस्पताल अपग्रेड होकर अब शेख भिखारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल बन चुका है. नाम तो बदल गए, लेकिन हाल नहीं बदला. लोग सोचने पर विवश हैं कि आखिर कब समस्याएं दूर होंगी. इतने बड़े मेडिकल कॉलेज अस्पताल में आज भी मरीज को उनके परिजन टांग कर बेड तक ले जाते हैं.
इस मेडिकल कॉलेज अस्पताल का हाल देखकर समझा जा सकता है कि न तो यहां मरीजों को इधर-उधर शिफ्ट करने के लिए ट्रॉली-स्ट्रेचर है और न ही वार्ड ब्वॉय. परिजनों को खुद यह काम करना पड़ता है. अगर मरीज को वार्ड में शिफ्ट करना है, तो कई बार दो-तीन मंजिल सीढ़ियां भी तय करनी पड़ती हैं.
एक लंबे समय तो अस्पताल में लिफ्ट रहते हुए भी चालू हालत में नहीं था. अब लिफ्ट की सुविधा भी मिली, तो ग्रामीण क्षेत्र से मरीज के साथ आनेवाले परिजनों को इसकी जानकारी नहीं है. न कोई जानकारी देनेवाला कि सदर अस्पताल में लिफ्ट भी है.
सोमवार को इचाक से आए एक मरीज मो. ताहिर के परिजन कहते हैं कि यहां कोई कुछ बतानेवाला नहीं. कान में मोबाइल लगाकर कई कर्मी बैठे रहते हैं और आवाज देने पर भी नही सुनते.
खपरियावां से आए मरीज कृष्णा राम ने बताया कि वह अपनी बहन को लेकर मेडिकल कॉलेज अस्पताल आया कि सभी सुविधाएं मिल जाएंगी. लेकिन यहां हालात देखकर वह दंग रह गए.
यहां स्ट्रेचर तक की व्यवस्था नहीं. बहन का पांव टूटा हुआ था. वह छत से गिर गई थी. उसका एक्स-रे करवाने के लिए परिवार के सदस्यों के साथ मिल टांगकर ले जाना पड़ा.
इमरजेंसी वार्ड (ट्रामा सेंटर) के हालात भी कुछ अच्छे नहीं हैं. कभी डॉक्टर ही नदारद रहते हैं, तो कभी वार्ड ब्वॉय. मरीजों की सुध लेनेवाला कोई नहीं रहता. इतना ही नहीं 10 रुपए का टोकन कटाने के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता है.
इस संबंध में अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ अजय कुमार कहते हैं कि यहां कम से कम 18 वार्ड ब्वॉय की जरूरत है. फिलहाल महज छह वार्ड ब्वॉय ही काम कर रहे हैं. किसी प्रकार काम चलाया जा रहा है.
स्वास्थ्य विभाग मुख्यालय को इसकी सूचना भी दी गई है. अब तक वार्ड ब्वॉय बहाल नहीं हुए हैं. स्ट्रेचर रहते हुए भी उस पर मरीज को लाने-ले जानेवाले वार्ड ब्वॉय की कमी है.