Girish Malviya
8 नवंबर, 2020 को नोटबंदी के चार साल पूरे हो गये हैं. प्रधानमंत्री मोदी के उस फैसले का जो परिणाम और असर हुआ और उसे लेकर जो ज्यादातर विश्लेषण आये, उससे यह लगभग साफ हो चुका है कि नोटबंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग बर्बाद कर दिया है.
नोटबंदी से बड़ा आर्थिक घोटाला भारत के इतिहास में नहीं हुआ. अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी के एक साल बाद सात नवंबर, 2017 को भारतीय संसद में कहा था कि ये एक आर्गेनाइज्ड लूट है, लीगलाइज्ड प्लंडर (क़ानूनी डाका) है. चार साल बाद उनकी यह बात बिल्कुल सच साबित हो रही है.
नोटबंदी के तुरंत बाद के हालात यह थे कि उस झटके से 100 से ज़्यादा लोगों की जानें चली गयीं, 15 करोड़ दिहाड़ी मज़दूरों के काम धंधे बंद हो गये हज़ारों उद्योग धंधे बंद हो गये. लाखों लोगों की नौकरियां चली गयीं.
नोटबंदी करने का जो सबसे पहला कारण बताया गया वह था कैश बबल..भारतीय अर्थव्यवस्था में नगदी नोट बहुत ज्यादा हो रहे थे, ऐसा कुछ अंधभक्त अनर्थशास्त्रियों ने बताया था. सरकार के पिट्ठू बने अर्थशास्त्री यह बता रहे थे कि नोटबंदी के पहले बड़ी संख्या में करंसी सर्कुलेशन में आ गयी थी जिसे रोका जाना जरूरी था.
आरबीआइ के मुताबिक, 2016 में नोटबंदी के समय देश की अर्थव्यवस्था में नकदी का चलन 17.97 लाख करोड़ रुपये था. आप हैरान हो जायेंगे जब आज की स्थिति जानेंगे! 25 सितंबर, 2020 तक के जो आंकड़े हमारे पास उपलब्ध है वो बता रहे हैं कि आज करंसी सर्कुलेशन 52 फीसद बढ़कर 25.85 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है. अब कहा गया ‘कैश बब्बल’ ?
ये भी तब है जब देश का जीडीपी ग्रोथ घटता ही जा रहा है 2015-1016 के दौरान जीडीपी की ग्रोथ रेट 8.01 फ़ीसदी के आसपास थी और पिछले 2019-20 वित्तवर्ष में 4.2 है सीधे 4 अंकों का नुकसान हुआ है और इस वित्त वर्ष की तो बात ही छोड़ दीजिए. यदि इस साल ग्रोथ जीरो भी हो जाये तो भी बहुत बड़ी बात हो जायेगी. क्योंकि अभी तक सब माइनस में चल रहा है. जीडीपी ग्रोथ का भट्टा बैठाने में नोटबंदी का योगदान अतुलनीय है.
काले धन पर चोट को भी नोटबंदी करने का कारण बताया गया था. जबकि उसी वक्त RBI के निदेशकों का कहना था कि काला धन कैश में नहीं, सोने या प्रॉपर्टी की शक्ल में ज़्यादा है और नोटबंदी का काले धन के कारोबार पर बहुत कम असर पड़ेगा. आज वह बात सच साबित हुई.
यह भी कहा गया था कि उससे मकान खरीदना सस्ता हो जायेगा, लेकिन रिजर्व बैंक ने इस दावे की भी पोल खोल दी 2019 में. अपनी एक रिपोर्ट में रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया और बृहस्पतिवार को सर्वे जारी करते हुए कहा कि, ‘‘पिछले चार साल में घर लोगों की पहुंच से दूर हुए हैं. इस दौरान आवास मूल्य से आय (एचपीटीआई) अनुपात मार्च, 2015 के 56.1 से बढ़कर मार्च, 2019 में 61.5 हो गया है. यानी आय की तुलना में मकानों की कीमत बढ़ी है.
आतंकवाद नक्सलवाद की कमर तोड़ने के लिए नोटबंदी करना मास्टरस्ट्रोक बताया गया था. लेकिन न आतंकवाद कम हुआ और न ही नक्सली गतिविधियों में कोई कमी आयी. जब नोटबंदी हुई थी, तब मनरेगा के निर्माता अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा था कि नोटबंदी एक पूरी रफ्तार से चलती कार के टायरों पर गोली मार देने जैसा कार्य है. नोटबंदी के चार साल बाद उनकी बात सच साबित हुई है. नोटबंदी कर हमारे प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था के लहलहाते पेड़ पर कुल्हाड़ी मार दी थी, इसका असर कुछ सालों तक ही नहीं बल्कि दशकों तक देखा जाएगा.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.