सारिका भूषण, साहित्यकार
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै नकाराय नमः शिवाय ।।
Lagatar Desk: सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं. त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं. शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं. “शि” का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, जबकि ‘व’ का अर्थ देने वाला यानी कल्याणकारी या शुभकारी. शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं. तभी तो शिव से सृष्टि चक्र में गति है.
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आदि-देव हैं शिव
यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता ही बताया गया है. शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है जिसका अर्थ है कि वह मानव शरीर से पैदा नहीं हुए हैं. इसीलिए इन्हें ‘आदि-देव’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘हिंदू पौराणिक कथाओं का सबसे पुराने “भगवान” . शिव का रूप अत्यंत मनोहारी है. उनके कंठ में सर्प (सांप) उनका कंठहार है, रुद्राक्ष उनका आभूषण है, हाथ में त्रिशूल, शरीर पर भस्म साथ ही नेत्रों में उनके परमानंद और चेहरे पर भोलापन है. भोलेनाथ को इसी दिव्य रूप में वरण करने के लिए देवी पार्वती ने युगों तक कठिन तपस्या की थी.
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भगवान शिव-देवी पार्वती का विवाह
शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था, जिसे हम महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं. देवी पार्वती पूर्वजन्म में भगवान शिव की पहली पत्नी राजा दक्ष की पुत्री सती थीं. इसी सती ने जब यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी थी. बाद में उन्होंने ही हिमवान और हेमावती के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया और फिर शिवजी से विवाह किया.
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मंगल सूचक पर्व
महाशिवरात्रि वह महारात्रि है जिसका शिव तत्व से घनिष्ठ सम्बन्ध है. यह पर्व शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है. उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है. शिवपुराण के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव भगवान शिव, करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे. यही वजह है कि इसे हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महापर्व के रूप में मनाया जाता है.
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मां पार्वती को मिला अमरत्व
कहते हैं सती के आत्मदाह के बाद शंकर भगवान ने उनके शरीर के अंशों से 51 पीठों का निर्माण किया, जिन्हें हम शक्तिपीठ के नाम से जानते हैं. लेकिन शिव ने सती के मुंड को अपनी माला में गूंथ लिया. इस तरह 108 मुंड की माला शिव ने पूर्ण करके धारण कर ली. हालांकि बाद में, सती का अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ. इस जन्म में पार्वती को अमरत्व प्राप्त हुआ और फिर उन्हें शरीर का त्याग नहीं करना पड़ा. भगवान शिव और देवी पार्वती के दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश और पुत्रियां अशोकसुन्दरी, अय्यपा, मनसा देवी और ज्योति हुईं.
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क्षणेरुष्टा-क्षणे तुष्टा
भोलेबाबा को क्षणेरूष्टा-क्षणेतुष्टा भी कहते हैं यानी ये जितना जल्दी ग़ुस्सा होते हैं उससे कहीं ज़्यादा जल्दी से प्रसन्न हो जाते हैं. कहते हैं शिवलिंग में मात्र जल चढ़ाकर या बेलपत्र अर्पित करके भी शिव को प्रसन्न किया जा सकता है. शास्त्रों के मुताबिक हरा रंग भोलेनाथ का प्रिय रंग होता है. ऐसे में सिर्फ सावन सोमवार में ही नहीं बल्कि भक्त शिवरात्रि के दौरान भी हरे रंग के वस्त्र धारण करते हैं. हरे रंग के अलावा संतरी, पीले, सफेद और लाल रंग भी शिव को प्रिय हैं. जल में दूध के साथ सफेद तिल मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाने से सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं. एक रोचक बात यह है कि शिवलिंग किसी भी स्थान से टूट जाए, उसे बदलने की परंपरा नहीं है. क्योंकि भगवान शिव ब्रह्मरूप होने के साथ-साथ निराकार भी है.
महाशिवरात्रि महादेव का भी अत्यंत प्रिय दिन हैं तभी तो इस दिन पूरी दुनिया में भक्त पूर्ण आस्था के साथ शिव में रम जाते हैं. शिव पर अटूट विश्वास भक्तों के लिए जीवनदायिनी है. शिव पूजन-भजन-कीर्तन निःसंदेह शांतिदायिनी है. शिव सकारात्मकता एवं संपूर्णता की ओर प्रेरित करती एक सशक्त शक्ति भी हैं. ऐसे महादेव की महाशक्ति को शत-शत नमन है.
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