Mumbai : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में माना गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े पैमाने पर निजीकरण से फायदे से अधिक नुकसान हो सकता है. लेख में आगाह करते हुए सरकार को इस मामले में ध्यान से आगे बढ़ने की सलाह दी गयी है. हालांकि लेख में कहा गया है कि हाल के वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बाजार का अधिक विश्वास हासिल किया है. उन्होंने कोविड-19 महामारी के झटके को बहुत अच्छी तरह से झेला है.
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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण: एक वैकल्पिक नजरिया…
आरबीआई के बुलेटिन में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण: एक वैकल्पिक नजरिया… शीर्षक से प्रकाशित लेख में कहा गया है कि निजी क्षेत्र के बैंक (पीवीबी) लाभ को अधिकतम करने में अधिक कुशल हैं, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में बेहतर प्रदर्शन किया है. लेख में कहा गया, निजीकरण कोई नयी अवधारणा नहीं है और इसके फायदे और नुकसान सबको पता है.
पारंपरिक दृष्टि से सभी परेशानियों के लिए निजीकरण प्रमुख समाधान है, जबकि आर्थिक सोच ने पाया है कि इसे आगे बढ़ाने के लिए सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता है. लेख के अनुसार सरकार की तरफ से निजीकरण की ओर धीरे-धीरे बढ़ने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि वित्तीय समावेशन और मौद्रिक संचरण के सामाजिक उद्देश्य को पूरा करने में एक शून्य की स्थिति नहीं बने.
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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अकेले अधिकतम लाभ के लक्ष्य द्वारा निर्देशित नहीं होते
शोधकर्ताओं ने कहा है, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े पैमाने पर निजीकरण से फायदे से अधिक नुकसान हो सकता है. सरकार पहले ही दो बैंकों के निजीकरण की घोषणा कर चुकी है. इस तरह तरह धीरे-धीरे निजीकरण की ओर बढ़ने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि वित्तीय समावेश और मौद्रिक नीति का लाभ लोगों तक पहुंचाने के सामाजिक उद्देश्य को पूरा करने में एक शून्य की स्थिति न बने.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बाजार का अधिक विश्वास हासिल किया है
लेख में कई अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा गया कि सरकारी बैंकों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने वाले उद्योगों में वित्तीय निवेश को उत्प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस प्रकार ब्राजील, चीन, जर्मनी, जापान और यूरोपीय संघ जैसे देशों में हरित बदलाव को प्रोत्साहन मिला है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अकेले अधिकतम लाभ के लक्ष्य द्वारा निर्देशित नहीं होते हैं और निजी क्षेत्र के बैंकों के विपरीत वांछनीय वित्तीय समावेशन लक्ष्यों को अपने उद्देश्यों में शामिल करते हैं.
लेख में कहा गया है कि हाल के वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बाजार का अधिक विश्वास हासिल किया है. कमजोर बैलेंस शीट होने संबंधी आलोचना के बावजूद भी आंकड़े बताते हैं कि उन्होंने कोविड-19 महामारी के झटके को बहुत अच्छी तरह से झेला है.
यह भी कहा गया है कि हाल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े स्तर पर विलय से इस सेक्टर में मजबूती आयी है. इससे मजबूत और प्रतिस्पर्धी बैंक सामने आये हैं.
सरकार ने 2020 में 10 राष्ट्रीयकृत बैंकों का चार बड़े बैंकों में विलय कर दिया था
इस प्रकार, शोधकर्ताओं का विचार है कि बड़े स्तर पर विलय के बजाय सरकार ने जो धीरे-धीरे इस ओर कदम बढ़ाने के रुख की घोषणा की है, उसके बेहतर नतीजे होंगे. जान लें कि सरकार ने 2020 में 10 राष्ट्रीयकृत बैंकों का चार बड़े बैंकों में विलय कर दिया था. इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या घटकर 12 रह गई है, जो 2017 में 27 थी. हालांकि रिजर्व बैंक ने एक बयान जारी करके कहा है कि लेख में प्रकाशित बातें लेखकों के अपने विचार हैं और वह आरबीआई की सोच से कतई मेल नहीं खाता.
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