California : धरती की ओर फ्रांस के एफिल टॉवर से लंबा ऐस्टरॉयड काफी तेजी से बढ़ रहा है. इस ऐस्टरॉइड के इस हफ्ते के अंतर में धरती के बेहद नजदीक पहुंचने की संभावना है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी इस एस्टरॉइड को संभावित रूप से खतरनाक बताया है. इस ऐस्टरॉइड का नाम 4660 Nereus रखा गया है. नासा ने बताया है कि यह ऐस्टरॉइड के 11 दिसंबर को पृथ्वी की कक्षा से गुजरने की संभावना है. हालांकि, यह धरती के वायुमंडल में प्रवेश नहीं करेगा. नासा ने बताया कि 4660 Nereus ऐस्टरॉइड का व्यार 330 मीटर से अधिक है. यह ऐस्टराइड लगभग 3.9 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर पृथ्वी से संपर्क करेगा. इस ऐस्टरॉइड से हमारी धरती को कोई तत्काल खतरा नहीं है. इस ऐस्टरॉइड का पूर्ण परिमाण 18.4 है. नासा 22 से कम परिमाण वाले ऐस्टरॉइड्स को संभावित रूप से खतरनाक घोषित करती है.
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क्या होते हैं Asteroids
ऐस्टरॉइड्स वे चट्टानें होती हैं जो किसी ग्रह की तरह ही सूरज के चक्कर काटती हैं लेकिन ये आकार में ग्रहों से काफी छोटी होती हैं. हमारे सोलर सिस्टम में ज्यादातर ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति यानी मार्स और जूपिटर की कक्षा में ऐस्टरॉइड बेल्ट में पाए जाते हैं. इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं. करीब 4.5 अरब साल पहले जब हमारा सोलर सिस्टम बना था, तब गैस और धूल के ऐसे बादल जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे छूट गए, वहीं इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स में तब्दील हो गए. यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता. कोई भी दो ऐस्टरॉइड एक जैसे
100 साल तक के ऐस्टरॉइड पर नासा की नजर
अगर किसी तेज रफ्तार स्पेस ऑब्जेक्ट के धरती से 46.5 लाख मील से करीब आने की संभावना होती है तो उसे स्पेस ऑर्गनाइजेशन्स खतरनाक मानते हैं. NASA का Sentry सिस्टम ऐसे खतरों पर पहले से ही नजर रखता है. इसमें आने वाले 100 सालों के लिए फिलहाल 22 ऐसे ऐस्टरॉइड्स हैं जिनके पृथ्वी से टकराने की थोड़ी सी भी संभावना है.
ऐस्टरॉइड से धरती को कितना नुकसान?
पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल होने के साथ ही आसमानी चट्टानें या ऐस्टरॉइड टूटकर जल जाती हैं और कभी-कभी उल्कापिंड की शक्ल में धरती से दिखाई देती हैं. ज्यादा बड़ा आकार होने पर यह धरती को नुकसान पहुंचा सकते हैं लेकिन छोटे टुकड़ों से ज्यादा खतरा नहीं होता. वहीं, आमतौर पर ये सागरों में गिरते हैं क्योंकि धरती का ज्यादातर हिस्से पर पानी ही मौजूद है.
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