DR. Santosh Manav
झारखंड के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख का मन कोडरमा की गलियों में खूब भटकता है. इन्हें कोडरमा से ‘इलू-इलू’ हो गया है. कारण बताएंगे, इससे पहले यह भी जान लीजिए कि जामताड़ा से कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी का मन भी कोडरमा से जुड़ गया है. दोनों नेता कांग्रेस के हैं. इरफान अंसारी संथाल परगना के जामताड़ा से विधायक हैं. जामताड़ा जिला भी है और दुमका लोकसभा का हिस्सा है. इरफान 2014 और 2019 में लगातार जीते. कांग्रेस से लोकसभा सदस्य रहे फुरकान अंसारी इनके वालिद (पिता) हैं. बादल पत्रलेख दुमका जिला के जरमुंडी से विधायक हैं. 2014 और 2019 में लगातार जीते. जरमुंडी गोड्डा लोकसभा का हिस्सा है. आखिर संथाल परगना के दो कांग्रेसी नेताओं का मन कोडरमा में क्यों भटक रहा है ? ठहरिए, कुछ और जान लीजिए.
जब मैं बादल बन जाऊं , तुम भी बारिश बन जाना
बादल पत्रलेख कोडरमा आते रहते हैं. कोडरमा के कांग्रेसजन उन्हें खूब फोन करते हैं. पत्रलेख की ओर से कभी अनाज बांटा जा रहा है, कभी लोगों को आर्थिक सहायता दी जा रही है. जिले से कांग्रेस के नेता बमबम हैं. उन्हें रांची में एक सहारा और ठिकाना मिल गया है. कोडरमा में बादल की छवि गंभीर नेता की बन रही है. अब बादल पत्रलेख के कोडरमा प्रेम का कारण भी जान लीजिए. उनकी दिली ख्वाहिश कोडरमा से लोकसभा का चुनाव लड़ने की है. कांग्रेस के कुछ नेताओं से उन्होंने अपनी भावना बांटी है. संथाल परगना में लोकसभा की तीन सीटें हैं. दुमका, राजमहल और गोड्डा. दुमका और राजमहल आदिवासियों के लिए आरक्षित है. गोड्डा सीट से हैवीवेट बीजेपी नेता निशिकांत दुबे सांसद हैं. यहां से जेवीएम के प्रदीप यादव लड़ते रहे हैं. प्रदीप अब कांग्रेस में हैं. सो, उनका दावा बरकरार रहेगा. ऐसे में बादल को कोडरमा अपने लिए आसान लग रहा है.
कोई लौटा दे वो प्यारे-प्यारे दिन
कोडरमा लोकसभा की राजनीति में कांग्रेस के पास दमदार चेहरा नहीं है. यहां से कांग्रेस नेता तिलकधारी सिंह 1984 और 1999 में जीत चुके हैं. तिलकधारी सिंह अब 90 पार हैं. 1999 के बाद इस सीट पर कांग्रेस को विजयश्री नहीं मिली. गठबंधन में सीट जेवीएम के बाबूलाल मरांडी को चली जाती थी. बाबूलाल यहां से जीते और हारे भी. बाबूलाल फिर से बीजेपी के ‘बाबू’ हो गए हैं. इसलिए बादल को कोडरमा में बारिश की उम्मीद है. कांग्रेसजन खुश हैं कि वर्षों बाद कांग्रेस का उम्मीदवार होगा. तय मानकर चलिए कि सब कुछ ठीक रहा, तो बादल कोडरमा से कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं.
इरफान अंसारी का ‘मन ललचाए रहा न जाए’
अब इरफान अंसारी की बात. कोडरमा की राजनीति में इरफान अंसारी भी जमकर हस्तक्षेप कर रहे हैं. वरिष्ठ अधिकारियों को उनके फोन आते रहते हैं. कई बार इरफान अधिकारियों से बातचीत का आडियो खुद वायरल कर देते हैं. एक दारोगा ने अल्पसंख्यक समाज के एक व्यक्ति को गालियां बकी, वीडियो वायरल हुआ, तो पुलिस अधीक्षक को फोन करके इरफान अंसारी ने दारोगा का तबादला करवा दिया. इतना ही नहीं, पुलिस अधीक्षक से बातचीत का आडियो भी वायरल किया. इस बातचीत में कार्रवाई नहीं होने पर विधानसभा में सवाल उठाने की बात इरफान अंसारी कह रहे हैं. अंदाज चेतावनी भरा है. कोडरमा में रामनवमी पर सामाजिक तनाव हुआ, तो इरफान के फोन वरिष्ठ अधिकारियों को गए. कहा जा रहा है कि अधिकारियों ने इरफान अंसारी की भावना का पूरा ख्याल रखा. कोडरमा लोकसभा सीट से 1991 में जनता दल की टिकट पर मुमताज अंसारी जीते थे. झारखंड में गोड्डा और कोडरमा सीट ही मुस्लिम उम्मीदवार के अनुकूल मानी जाती है. ऐसे में इरफान का मन भी ‘मन ललचाए रहा न जाए’ वाला हो सकता है.
इरफान या बादल में कौन ?
इरफान अंसारी रामनवमी शोभायात्रा में लाठी भांजने वाले नेता हैं. खुद को भगवान शंकर का भक्त भी बताते हैं. बैद्यनाथ धाम में पूजा करने चले जाते हैं. सुर्खियों में बने रहते हैं. ऐसे में कोडरमा उन्हें अपना सकता है. कोडरमा विधानसभा क्षेत्र से भी कांग्रेस गायब है. 1980 और 1985 में यहां से कांग्रेस के राजेंद्र नाथ दा ऊर्फ हीरू बाबू जीते. 1990 में जनता दल के टिकट पर रमेश यादव जीते. उनके असामयिक निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी अन्नपूर्णा देवी यादव जीतती रहीं. फिर बीजेपी की नीरा यादव जीत रही हैं. कांग्रेस यह सीट राजद के लिए छोड़ती रही. बेचैन कांग्रेसजनों को उम्मीद है कि बादल 32 साल बाद उनके पुराने दिन ले आएंगे ? कोडरमा विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस का उम्मीदवार होगा. जिला कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री केबी सहाय के पौत्र मनोज सहाय कांग्रेस के पुराने दिन लौटाने के लिए मेहनत भी कर रहे हैं. उन्होंने कहा-कौन चुनाव लड़ेगा, यह आलाकमान तय करेगा. पर तय है कि बादल जैसे नेता यहां से चुनाव लड़ते हैं, तो सब उन्हें प्यार करेंगे. क्या सच में ?