Bermo: कोयलांचल के सीसीएल कथारा स्थित गोविंदपुर परियोजना द्वारा अतिक्रमण के कारण कोनार नदी का अस्तित्व संकट में है. गोविंदपुर परियोजना अपने विस्तार के लिए कोयला उत्खनन कार्य कर रही है. और ओवर बर्डेन को कोनार नदी के किनारे डंप कर दी है. परिणामस्वरूप एक स्वतंत्र नदी नाले में तब्दील होती जा रही है. झारखंड की जीवनदायिनी इस नदी में किसी तरह का प्रदूषण नहीं है. जड़ी बूटियों से युक्त यह नदी कोनार डैम से निकल कर बोकारो थर्मल तक स्वच्छ रहती है. लेकिन बोकारो थर्मल के बाद डीवीसी के कचरायुक्त पानी के बहाव के कारण नदी प्रदूषित हो जाती है.
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कोनार नदी का अस्तित्व पर संकट के बादल
गोमिया की एक बड़ी आबादी को इस नदी से पानी मिलता है. जबकि मुख्यतः बोकारो थर्मल के डीवीसी परियोजना के लिए ही बांध से पानी दिया जाता है. नदी के दोनों किनारे बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी निवास करती है. जिनके लिए यह जीवन यापन का मुख्य साधन है. शुरुआती दिनों में नदी के किनारे बसने वालों के लिए ये नदी जीवनदायिनी थी. नदी के पानी का उपयोग लोग हर काम में किया करते थे. लेकिन धीरे-धीरे जब इस नदी पर इंटेक वेल बनाया गया और यहां से पानी लेकर ग्रामीणों एवं आवासीय कॉलोनी में पेयजल आपूर्ति की जाने लगी, तो यह ग्रामीण जलापूर्ति योजना के लिए और भी जरूरी हो गया.
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जीवनदायिनी कोनार नदी की उपयोगिता
बहुराष्ट्रीय कंपनी ऑरिका का भी इसी नदी पर इंटेक वेल है. वह भी अपने आवासीय कॉलोनी में इसी नदी का पानी लेकर आपूर्ति करती है. वहीं गोमिया और सीसीएल के स्वांग कोलियरी को भी इस नदी से पानी लेकर कॉलोनी में पानी मुहैया कराती है. इस नदी से आम आदमी से लेकर पशु-पक्षी भी पानी का उपयोग करते हैं. गोमिया के खम्हरा, ससबेड़ा, करमटिया, गंझूडीह, लहरियाटांड सहित अन्य गांव की ग्रामीण जनसंख्या आज भी दैनिक कार्य से पेयजल तक का उपयोग करती है. लेकिन गोविंदपुर परियोजना के उत्खनन के दौरान दोनों ओर से अतिरिक्त भार डाल दिया गया है. लिहाजा नदी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है. कहीं-कहीं यह नदी नाले के रूप में भी तब्दील हो गई है. जिला खनन पदाधिकारी नदी के किनारे बनाने वाले ईंट भट्ठों पर कार्रवाई की, लेकिन सीसीएल ने नदी पर अतिक्रमण कर नाले में तब्दील कर दिया हैं.
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