LagatarDesk : इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति आज अपना 71वां जन्मदिन मना रही है. सुधा का जन्म 19 अगस्त 1950 को कर्नाटक के शिगगांव में हुआ था. सुधा मूर्ति के पिता डॉक्टर थे और मां हाउसवाइफ. उनका पालन-पोषण आम भारतीय परिवार की तरह हुआ. बता दें कि सुधा टेल्को कंपनी की पहली महिला इंजीनियर बनी थीं. इंजीनियर के साथ-साथ वो एक अच्छी लेखिका भी हैं. 2006 में अपनी समाजसेवा के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.
इंफोसिस की नींव रखने में सुधा मूर्ति का हाथ
इंफ़ोसिस का नाम सुनते ही एन आर नारायणमूर्ति का नाम सबके दिमाग में आता है. नारायणमूर्ति ही वो शख्स हैं जिनकी वजह से आज इंफोसिस को भारत की ही नहीं बल्कि दुनिया की टॉप आईटी कंपनियों में गिना जाता है. लेकिन ये बहुत कम लोग जानते हैं कि इस कंपनी को किसके पैसों से बनाया गया है. आपको बता दें कि नारायणमूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति के पैसे से इंफोसिस की नींव रखी गयी है.
देशभर में 16 हजार से अधिक टॉयलेट सुधा ने बनवाये
सुधा उस वक्त टाटा इंडस्ट्रीज में काम करती थी. उन्होंने नारायणमूर्ति को 10,000 रुपये दिये थे. जिससे उन्होंने इस कंपनी को शुरू किया था. बता दें कि जब इंफोसिस की शुरुआत हुई तो सुधा ने सबसे पहले देशभर में 16 हजार से अधिक टॉयलेट बनवाये. ताकि किसी लड़की को लड़के के टॉयलेट में ना जाना पड़े.
उस दौर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की
सुधा की पढ़ाई की बात करें तो उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई हुबली के कॉलेज से की. उन्हें कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने गोल्ड मेडल पहनाया. उस वक्त में लड़कियों का इंजीनियरिंग करना अनोखी बात थी. सुधा मूर्ति के घर वाले इस बात से सहमत नहीं थे. लेकिन सुधा की जिद के आगे सबको झुकना पड़ा.
कॉलेज में एडमिशन के लिए प्रिंसिपल ने रखी थी 3 शर्तें
खबरों की मानें तो एडमिशन के लिए कॉलेज के प्रिंसिपल ने सुधा के सामने 3 शर्तें रखीं. पहली शर्त थी कि उन्हें ग्रेजुएशन खत्म होने तक साड़ी में ही आना होगा. दूसरी शर्त कि उन्हें कैंटीन नहीं जाना होगा. तीसरी और अंतिम शर्त थी कि सुधा कॉलेज के लड़कों से बात नहीं करेंगी. सुधा ने एक टीवी शो में बताया था कि पहली दो शर्तें तो उन्होंने पूरी की. लेकिन तीसरी उनके कॉलेज के लड़कों ने पूरी नहीं होने दी. जैसे ही सुधा ने फर्स्ट ईयर में टॉप किया. सारे लड़के खुद उनसे बात करने के लिए आने लगे. सुधा ने शो में बताया था कि कॉलेज में 599 लड़कों के बीच वे अकेली लड़की थीं.
जब जेआरडी टाटा तक को झुकना पड़ा
सुधा ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस जैसे नामी संस्थान से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स किया. जब वो पीजी के आखिरी साल में थीं. तब उन्होंने आज के टाटा मोटर्स और उस जमाने के टेल्को में नौकरी निकली थी. सुधा ने इसका एक विज्ञापन अपने इंस्टीट्यूट में भी देखा. उसमें लिखा था कि महिला उम्मीदवारों को आवेदन करने की जरूरत नहीं. तब उन्होंने सीधे जेआरडी टाटा को एक लेटर भेजा.
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जेआरडी टाटा को लेटर लिखकर जतायी थी नाराजगी
उन्होंने लिखा कि महान टाटा परिवार हर क्षेत्र में आगे रहा है. आपने ही भारत में उच्च शिक्षा की चिंता साल 1900 से की थी. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना में भी आपके मदद से हुई. सौभाग्य से मैं इसी कॉलेज में पढ़ती हूं. लेकिन मुझे हैरानी है कि टेल्को जैसी कंपनी लिंग के आधार पर भेदभाव कर रही है.
टेल्को कंपनी की पहली महिला इंजीनियर बनी थीं सुधा
10 दिन के अंदर सुधा को एक लेटर मिला. जिसमें उन्हें पुणे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. इंटरव्यू के बाद सुधा मूर्ति का सेलेक्शन हो गया. सुधा मूर्ति ने इतिहास रच दिया. सुधा टेल्को कंपनी में चुनी जाने वाली पहली महिला इंजीनियर बन गयीं. 24 साल की सुधा की जिद के सामने जेआरडी टाटा को भी अपना फैसला बदलना पड़ा.
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