Bokaro : दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) बोकारो की एक और होनहार प्रतिभा ने राष्ट्रीय फलक पर अपने स्कूल, शहर और राज्य का मान बढ़ाया है. संयुक्त विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) की पीजी परीक्षा 2022 में डीपीएस की छात्रा रह चुकी शचि सिन्हा ने देशभर में प्रथम स्थान प्राप्त किया है. परीक्षा के प्राणी-विज्ञान (जूलॉजी) विषय में उसने सर्वाधिक 288 अंक हासिल किये हैं.
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भारत और विदेश के 570 परीक्षा केंद्रों में परीक्षा हुई थी आयोजित
बता दें कि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी)- पीजी 2022 का आयोजन किया था. सीयूईटी की परीक्षा बीते 1 सितंबर से 7 सितंबर और 9 सितंबर से 12 सितंबर को आयोजित की गयी थी. यह परीक्षा देशभर के 269 शहरों और विदेशों के चार शहरों के कुल 570 परीक्षा केंद्रों पर हुआ था.
12वीं की पढ़ाई करियर की दशा-दिशा करती है तय- शचि
शचि ने लगातार डॉट इन के संवाददाता से बात करते हुए कहा कि वर्ष 2017 में डीपीएस बोकारो से 92.6 प्रतिशत अंकों के साथ 12वीं की परीक्षा पास की थी. उसने कहा कि 10वीं के बाद 12वीं कक्षा ही करियर की दशा-दिशा तय करती है. आज उसे जो भी सफलता मिली है, उसमें डीपीएस बोकारो ने एक अहम भूमिका निभाई है. उसने यहां के पठन-पाठन, शिक्षकों के मार्गदर्शन और सहयोग को अपनी सफलता का महत्वपूर्ण कारक बताया. वहीं डीपीएस बोकारो के प्राचार्य ए. एस. गंगवार ने शचि को उसकी इस सफलता पर बधाई दी और उसके उज्जवल भविष्य की कामना भी की. ए. एस. गंगवार ने कहा कि शचि की सफलता पूरे विद्यालय परिवार के लिए गौरव की बात है.
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अपने पिता को आदर्श मानती है शचि
एक खास बातचीत में शचि ने अपनी सफलता का श्रेय अपने शिक्षकों के मार्गदर्शन, माता-पिता के सहयोग और अपनी कड़ी मेहनत को दिया है. उसने कहा कि वह रोजाना लगभग छह घंटे पढ़ाई किया करती थी. पढ़ाई में विषयों की बार-बार पुनरावृत्ति और समय-प्रबंधन को उसने अपनी सफलता में महत्वपूर्ण बताया. शचि ने कहा कि जीवन में एक लक्ष्य बनाकर दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ उसे प्राप्त करने की दिशा में कठिन परिश्रम आवश्यक है. कठिनाइयों से संघर्ष के बाद ही इस तरह की कामयाबी मिल पाती है. शचि अपने पिता धनबाद निवासी कॉरपोरेट लॉयर उमेश सिन्हा को अपना आदर्श मानती है. शचि ने कहा कि उन्हीं से जीवन की सीख और कठिनाइयों से जूझना सीखा है.
अपनी मां से सीखी पढ़ाई में उत्कृष्टता की कला
शचि ने कहा कि उसने पढ़ाई में उत्कृष्टता अपनी मां रत्ना सिन्हा से सीखी है. लॉ कर चुकीं उसकी मां ने उसका हमेशा से ही मार्गदर्शन किया है. उसने बताया कि 12वीं के बाद चोटिल हो जाने के कारण लंबे समय तक उसकी पढ़ाई बाधित रही. उस परिस्थिति में भी उसने अपना धैर्य, अपनी उम्मीद और दृढ़ इच्छाशक्ति को बनाये रखा. असफलता से घबराकर हताश होने वाले छात्र-छात्राओं के लिए भी शचि ने यही संदेश दिया है. उसने कहा कि जीवन में विकल्प हमेशा बना रहता है. बस आशा और आत्मविश्वास बनाये रखना चाहिए.
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शचि पुणे से कर रही एमएससी की पढ़ाई
विदित हो कि शचि ने धनबाद के माउंट कार्मेल स्कूल से 10वीं तक की पढ़ाई की थी. इसके बाद 12वीं की पढ़ाई डीपीएस बोकारो से पूरी की. तत्पश्चात उसने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से जूलॉजी में बीएससी (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की. वह वर्तमान में पुणे स्थित सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय में बायोटेक्नोलॉजी से एमएससी (स्नातकोत्तर) कर रही है. शचि से छोटी एक बहन और एक छोटा भाई है. उसने यह भी कहा कि कभी भी माता-पिता ने बेटा-बेटी में फर्क नहीं समझा, बल्कि घर की बड़ी संतान होने के कारण उसे ही सबसे ज्यादा स्नेह और सहयोग मिलता रहा है.
बीमारियों पर करना चाहती है रिसर्च
शचि ने कहा कि वह एमएससी के बाद पीएचडी करना चाहती है. अर्थराइटिस सरीखे दर्द वाली बीमारियों पर शोध करते हुए कुछ खास दवा बनाना चाहती है, ताकि लोगों की पीड़ा दूर करने में वह सहायक बन सके. उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य एक सफल व्याख्याता (प्रोफेसर) और शोधकर्ता (रिसर्चर) बनना है. शचि को पढ़ाई के अलावा चित्रांकन में भी काफी रुचि है.
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