Garhwa: झारखंड अजब है और यहां गजब कारनामे भी होते हैं. ताजा वाकया गढ़वा दक्षिणी वन प्रमंडल का है, जहां वन प्रमंडल पदाधिकारी ने वन संरक्षक, गढ़वा को पत्र लिखकर तथ्यों के संबंध में उचित मार्गदर्शन का आग्रह किया है, ताकि अग्रेतर कार्रवाई की जा सके. मामला तीन निजी कंपनियों द्वारा वन संरक्षण अधिनियम-1980 के तहत विभिन्न वन प्रमंडल में ली गयी वन भूमि के बदले में क्षतिपूरक गैर वन भूमि दिये जाने जाने से जुड़ा है.
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तीन निजी कंपनियों से जुड़ा है मामला
दरअसल Electro steel Casting Limited, Kolkata के सारंडा वन प्रमंडल के दिसंबुरू माइंस, Usha Martin, Kolkata के नार्थ डाल्टनगंज वन प्रमंडल के लोहारी कोल माइंस और Hindalco Induastries Limited, Mumbai के वेस्ट हजारीबाग वन प्रमंडल के डुमरी कोल माइंस प्रोजेक्ट के लिए क्षतिपूर्ति के रूप मं 171 एकड़ जमीन हस्तांतरित करने की प्रक्रिया चल रही है. इस प्रक्रिया के दौरान दक्षिणी गढ़वा के डीएफओ अभिरूप सिन्हा ने अपनी जांच रिपोर्ट में पाया कि जो जमीन हस्तांतरित की जा रही है, वह दिनांक 09/01/1953 की तारीख से ही बिहार सरकार के नोटिफिकेशन सं. C/PF/10154/52-149-R के अंतर्गत नोटिफाईड फॉरेस्ट लैंड है. बिचौलियों ने पहले फॉरेस्ट की जमीन कंपनियों को बेची और फिर कंपनी ने फॉरेस्ट की जमीन फॉरेस्ट को ही क्षतिपूरक के रूप में लौटाने का प्रस्ताव दे दिया.
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किस कंपनी को देनी है कितनी जमीन
M/s Elecrto Steel Casting Limited, Kolkata को गढ़वा दक्षिण वन प्रमंडल में 105.59 एकड़ जमीन क्षतिपूरक के रूप में उपलब्ध करानी है. इसमें 58.91 एकड़ अधिसूचित वन भूमि है. M/s Usha Martin, Kolkata की 116.56 एकड़ भूमि में से 79.23 एकड़ अधिसूचित वन भूमि है और M/s Hindalco Industries Limited, Mumbai के कुल 40.91 में 34.15 एकड़ अधिसूचित वन भूमि है.
मुख्यालय से चिट्ठी हो जाती है गायब
इस संबंध में वन प्रमंडल पदाधिकारी ने जांचोपरांत पाया कि सीमांकित वन सीमा के बाहर,जो अधिसूचित वन भूमि है उसे अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया गया है. वन प्रमंडल पदाधिकारी इस संबंध में जांच प्रतिवेदन देते हुए आगे की कार्रवाई के लिए मुख्यालय से दिशानिर्देश मांग रहे हैं, लेकिन कई पत्रचार के बाद भी उन्हें कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है. बताया जाता है कि यह चिट्ठी मुख्यालय में ही दबा दी जा रही है. वन प्रमंडल पदाधिकारी ने विगत माह नवंबर के 12 तारीख को प्रधान मुख्य वन संरक्षक को पत्र भेजा है, लेकिन एक माह बीत जाने के बाद भी उन्हें कोई निर्देश नहीं मिला है.
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FIR दर्ज करने के बजाय अधिकारी मांग रहे मार्गदर्शन
जानकार बताते हैं कि गड़बड़ी का पता चलते ही कि वन प्रमंडल पदाधिकारी को संबंधित मामलों में FIR दर्ज करनी चाहिए थी, लेकिन उनकी ओर से भी फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. इस संबंध में वन प्रमंडल पदाधिकारी अभिरूप सिन्हा ने बताया कि मामले की सत्यता के लिए उन्होंने वरीय अधिकारियों से पत्रचार किया है. वहां से जैसा निर्देश प्राप्त होगा उसके अनुसार अग्रेतर कार्रवाई की जायेगी.
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