Ranchi : राजधानी का पानी लोगों की सेहत बिगाड़ रहा है. यहां सतही जल के साथ भूजल की भी गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है. अगर अब भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आनेवाले समय में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ेंगी. इस संबंध में बीआईटी मेसरा के सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग ने गत वर्ष एक अध्ययन किया था. अध्ययन से पता चला था कि रांची के पानी में कुल घुलित ठोस (टीडीएस) लगातार बढ़ रहा है. साथ ही, यहां के पानी में खारापन स्वीकार्य सीमा से कहीं अधिक है. शहर के विभिन्न 44 लोकेशन के पानी की जांच की गयी थी.
एक वर्ष से चल रहा था शोध कार्य
बीआईटी मेसरा के सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग की ओर से रांची और आसपास के क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता पर गत वर्ष एक शोधकार्य कराया गया. इसके तहत विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ तनुश्री भट्टाचार्य, डॉ सुकल्याण चक्रवर्ती और डॉ पूनम तिर्की ने लगभग एक वर्ष में यह शोध अध्ययन पूरा किया. टीम ने तीन मौसम- गर्मी, बरसात और सर्दी के दौरान पानी की गुणवत्ता को परखा. इसमें रांची नगर निगम के 44 लोकेशन से ट्यूबवेल और कुएं के पानी के नमूने इकट्ठा कर उनकी जांच की गयी थी.
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रांची के पानी में लगातार बढ रहा पानी में टीडीएस
बीआईटी मेसरा द्वारा किए गए शोध पाया गया कि पानी में सामान्य भौतिक पैरामीटर पीएच, कुल भंग ठोस (टीडीएस), कुल क्षारीयता और कुल कठोरता डब्ल्यूएओ की स्वीकार्य सीमा से कहीं अधिक है. भूजल प्रभावित हो रहा शोध में निकलकर आया कि रांची के ग्रामीण व शहरी औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में पानी अम्लीय है. पर्यावरणविदों ने आशंका जताई कि अम्लीय पानी जलीय चट्टानों से लवण के विघटन को प्रभावित कर सकता है और भूजल में धातु और कुल घुलित ठोस (टीडीएस) भार को बढ़ा सकता है. वाणिज्यिक क्षेत्र में बाइकारबोनिट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम, सल्फेट्स और क्लोराइड टीडीएस बढ़ाने का काम रहे हैं.
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पानी के अधिक दोहन ने बढाई परेशानी, कई इलाकों में स्थिति गंभीर
शोध में टीम ने पाया कि भू-जल और सतही जल भी प्रदूषण से अछूते नहीं रहे हैं. अनियमित मानसून और जल संसाधनों के अधिक दोहन से पानी की गुणवत्ता और मात्रा रूप से प्रभावित हो रही है. धुर्वा व एदलहातु में फ्लोराइड की मात्रा अधिक धुर्वा और एदलहातु में चट्टानी क्षेत्रों के पानी में फ्लोराइड अधिक पायी गयी है. जल विशेषज्ञों का कहना है कि फ्लोराइड के स्रोत प्राकृतिक रूप से चट्टानों और मिट्टी के खनिजों के टूटने या अपक्षय से हो सकते हैं. रांची में आर्सेनिक अभी तक खतरनाक अवस्था में नहीं है, लेकिन चिंता का विषय है. कोकर के टुनकीटोला में सर्वाधिक आर्सेनिक पाया गया. इसका कारण इस क्षेत्र में फाउंड्री-फोर्ज उद्योग और ऑटोमोबाइल सर्विसिंग केंद्र होना माना जा रहा है. पूर्व में पत्थलकुदवा में आर्सेनिक पाया जा चुका है.
रांची के पानी में निर्धारित मात्रा से तीन गुणा ज्यादा फ्लोराइड
डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुसार पानी में आर्सेनिक की 0.1 मिलीग्राम प्रति लीटर मौजूदगी स्वीकार्य है. वहीं, फ्लोराइड की 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर मौजूदगी स्वीकार्य है. लेकिन, रांची के पानी में इनकी मौजूदगी दो से तीन गुना ज्यादा पाई गयी. स्वास्थ्य को पानी में आर्सेनिक की अधिकता से त्वचा संबंधी बीमारी और आगे चलकर कैंसर का खतरा हो सकता है. रांची के पानी में आर्सेनिक की अधिकता अभी कैंसर के खतरे के स्तर पर नहीं पहुंची है. लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो खतरा उत्पन्न हो सकता है. पानी में फ्लोराइड की अधिकता से दांत संबंधी बीमारियां, फ्लोरोसिस की समस्या हो सकती है. फ्लोराइड की अधिकता से आगे चलकर हड्डियां कमजोर होने का खतरा रहता है.
जामुन पत्ती की राख से हो सकता फ्लोराइड कम
बीआईटी मेसरा की शोध टीम ने पानी से फ्लोराइड हटाने के लिए कई देसी तरीकों को आजमा कर देखा. इसमें पाया गया कि जामुन पत्ती की राख प्राकृतिक जल से फ्लोराइड को हटा सकती है. इस तरह पानी में स्वच्छ करने में कोई अतिरिक्त खर्च भी नहीं आएगा. टीम ने जामुन के झरे हुए पत्तों का इस्तेमाल राख बनाने के लिए किया था. इस राख को पानी में डालने पर देखा गया कि 85 प्रतिशत फ्लोराइड हट गया और पानी पीने योग्य बन गया.
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