Ghatshila : आज के दौर में पंचायत चुनाव भी हाईटेक हो गया है. प्रत्याशियों को नामांकन दाखिल करने से लेकर मतगणना तक भारी भरकम खर्च करनी पड़ती है. मगर एक दौर था, जब पंचायत चुनाव मामूली खर्चे पर होता था. 500 से 1000 रुपए खर्च होते थे. 1978 के पंचायत चुनाव में निर्वाचित हुए कई मुखिया आज भी हैं, जो गुमनाम से हो गए हैं. ऐसे ही एक पूर्व मुखिया हैं चाकुलिया के बड़ामारा पंचायत के गौरी शंकर महंती. गौरी शंकर महंती तब और अब के पंचायत चुनाव का अंतर बताते हैं.
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अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 350 मतों से हराया था
72 वर्षीय गौरी शंकर महंती बड़ामारा पंचायत से मुखिया पद के लिए बिहार सरकार के कार्यकाल में 1978 के पंचायत चुनाव में उम्मीदवार बने थे. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी पालूराम सोरेन को 350 मतों से हराया था. उनका चुनाव चिन्ह धान ओसाता हुआ किसान था. वे 1996 में मुखिया का पावर सीज होने तक इस पंचायत के मुखिया थे. गौरी शंकर महंती कहते हैं कि तब उन्हें चुनाव में लगभग 800 रुपए खर्च करने पड़े थे. मतदान केंद्रों में सिर्फ बीड़ी, खैनी और माचिस से काम चल जाता था. कार्यकर्ताओं को खर्चा देने या फिर मतदाताओं को कुछ देने की परंपरा ही नहीं थी. इतना हो हल्ला और शोर-शराबा नहीं था. प्रतिद्वंदिता तो थी, परंतु व्यवहार मित्रवत ही रहता था. चुनाव प्रचार के लिए साइकिल से गांव में जाया जाता था.
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पहले पंचायत में हथकड़ी व हाजत भी थे
गौरी शंकर महंती ने कहा कि आज के पंचायत चुनाव में भारी भरकम रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं. चुनाव में पैसे का खेल जमकर हो रहा है. चुनाव जीतने के लिए पानी की तरह पैसे बहाए जा रहे हैं. मतदाताओं को प्रलोभन दिया जाता है. तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. चुनाव में आपसी वैमनस्यता बढ़ रही है. उनके समय में अफसरशाही पंचायत के जनप्रतिनिधियों पर हावी नहीं थे. गांव में छोटे-मोटे झगड़े और विवाद का निपटारा आपस में मिल-बैठकर कर लिया जाता था. ऐसे मामले थाना नहीं जाते थे. दोषियों के लिए पंचायत भवन में हथकड़ी भी रहती थी और हाजत भी.
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पंचायत सुनाती थी सजा
छोटे-मोटे मामलों में दोषियों को सजा भी दी जाती थी. विकास के मुद्दे पर मिल बैठकर चर्चा होती थी. जनता की राय ली जाती थी. आज स्थिति विपरीत है. चुनाव में भारी भरकम खर्च होने के कारण भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है. कमीशनखोरी प्रथा का जन्म हुआ है. पंचायत के जनप्रतिनिधियों पर नौकरशाही हावी है. विकास के नाम पर सरकारी राशि की बंदरबांट हो रही है. आम जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है.