Ranchi: जनजातीय समाज के ऐसे लोग, जो अपना मूल धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपना चुके हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) को मिलने वाले लाभ से वंचित किया जाए. यह मांग पिछले 40 वर्षों से हो रही है. स्व. कार्तिक उरांव ने भी संसद में इस मामले को उठाया था. 310 सांसदों का हस्ताक्षरयुक्त समर्थन पत्र लोकसभा में रखा था लेकिन मामला लंबित रह गया. तब से आज तक जनजातीय समाज के लोग लगातार यह मांग कर रहे हैं कि धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासियों को एसटी को मिलने वाली सुविधाएं समाप्त की जाएं. न तो उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाए और न ही आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने की छूट मिले. जनजातीय समाज के जिन लोगों द्वारा यह मांग की जा रही है, उनका तर्क यह है कि धर्म परिवर्तन कर चुके आदिवासी ही एसटी को मिलने वाले लाभ सबसे ज्यादा उठा रहे हैं. जनजाति सुरक्षा मंच इस मांग को लेकर देशभर में अभियान चला रहा है. अलग-अलग राज्यों में यह मांग जोर पकड़ने लगी है. मंच ने रविवार को राजधानी रांची में डी-लिस्टिंग रैली निकाली, जो शहर के विभिन्न हिस्सों से गुजरती हुई रांची कॉलेज मैदान पहुंची, जहां विशाल रैली हुई. रैली में प्रदेश के अलावा पूरे छत्तीसगढ़ से भी आदिवासी समाज के लोगों ने हिस्सा लिया.
संसद में उठाएंगे मामला, केंद्र कानून बनाए : सुदर्शन भगत
रैली को संबोधित करते हुए लोहरदगा के भाजपा सांसद सुदर्शन भगत ने कहा कि धर्मांतरित आदिवासियों को एसटी को मिलने वाले लाभ से हर हाल में वंचित किया जाना चाहिए. इसे लेकर केंद्र सरकार को एक कानून बनाना चाहिए. वह इस मांग को लोकसभा में भी उठाएंगे. उन्होंने कहा कि स्व. कार्तिक उरांव का भी सपना रहा है कि ऐसे धर्मांतरित आदिवासियों को एसटी को मिलने वाले लाभ से वंचित किया जाना चाहिए. पूरा जनजातीय समाज एकजुट होकर स्व. कार्तिक उरांव के सपनों को साकार करने का प्रयास करेगा.
सरकार पर जनदबाव बनाना होगा : कड़िया मुंडा
पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष और पद्मश्री कड़िया मुंडा ने कहा कि 40 वर्ष पूर्व स्व. कार्तिक उरांव ने 310 सांसदों के समर्थन पत्र के साथ मामले को लोकसभा में उठाया था. किन्हीं कारणों से यह मांग उस समय पूरी नहीं हो पाई. बाद में यह मांग उठती रही, जो आज भी जारी है. यह ठीक है कि केंद्र में 10 वर्षों से भाजपा की सरकार है मगर सरकार के चाहने से क्या होगा. जनदबाव बनाना होगा. नहीं तो मांग पूरी नहीं होगी. जनजाति सुरक्षा मंच अब इस मामले को लेकर देशभर में अभियान चला रहा है. आदिवासियों को जागरूक कर रहा है. इसके सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं. आदिवासी इस मामले को लेकर एकजुट हो रहे हैं. जनदबाव को देखते हुए केंद्र सरकार को निश्चित ही इस मामले में कोई निर्णय लेना होगा.
हमारा काम जनदबाव बनाना है, बाकी सरकार का : गणेशराम भगत
जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक और छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री गणेशराम भगत ने कहा कि यह मांग कोई नई नहीं है. वर्षों पुरानी है. मंच द्वारा देशभर में इसे लेकर अभियान चलाया जा रहा है. इसके तहत ही रांची में रैली की गई. हमारा काम मांग को सशक्त तरीके से उठाना और सरकार पर जनदबाव बनाना है. इससे कोई मतलब नहीं है कि केंद्र में भाजपा की सरकार है, तो उसे करना चाहिए या नहीं. जनदबाव के आगे एक न एक दिन चाहे कोई भी सरकार हो, उसे झुकना ही पड़ेगा. रैली की अध्यक्षता जगलाल पाहन ने की. मौके पर कैलाश उरांव, जगरनाथ महतो, प्रदीप लकड़ा, संदीप उरांव, मेघा उरांव, सोमा उरांव आदि लोगों ने अपने विचार रखे.
क्या हैं मांगें
–धर्मांतरित आदिवासी, जो ईसाई और मुस्लिम धर्म अपना चुके हैं, उन्हें तत्काल अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर किया जाए.
-राजनीतिक दल लोकसभा या विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीटों के लिए ऐसे धर्मांतरित आदिवासियों को टिकट न दें.
-पंचायत स्तर तक ऐसे आदिवासियों को बेनकाब किया जाए, जिन्होंने धर्म बदल लिया है और एसटी को मिलने वाली सुविधा का लाभ उठा रहे हैं.
-धर्मांतरण के बावजूद एसटी कोटे से आरक्षण का लाभ लेकर नौकरी कर रहे लोगों को चिह्नित कर उनके खिलाफ न्यायालय में केस किया जाए.
-केंद्र के साथ ही साथ राज्य सरकारें धर्मांतरित आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति के लाभ से वंचित करने के लिए कानून बनाए.
– देशभर के तमाम सांसद, विधायक धर्म बदलने वाले आदिवासियों को एसटी के लाभ से वंचित करने के लिए कानून बनाने की पहल करें
-जो आदिवासी धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, उन्हें आदिवासी रीति-रिवाज, पूजा-पाठ, शादी-विवाह, पर्व -त्योहार में हिस्सा लेने से रोका जाए.
– धर्मांतरित आदिवासियों को गांव, पंचायत, प्रखंड और जिला स्तर पर चिह्नित कर उनकी सूची बनाई जाए, ताकि उन्हें एसटी को मिलने वाले लाभ लेने से रोका जा सके.